एक दौर था चला गया!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राज.
मो. 9001321438
एक दौर था चला गया
कुछ अमिट लकीरें
जीवन को तराशती है
खोलकर बुनती है फिर
गढ़ती जाती है नये अक्स।
अतीत के पत्थर पर
खुदा है एक महाकाव्य
अंध समय के थपेड़े
गढ़ते है नये बर्तन
किसी कुम्भकार के जैसे।
उदास किस्सें कसमकश
निर्धूम ज्वाला हृदय में
सुलगती एक चिंगारी से
आकार लेते है दुःख
समय पाकर हर बार।
चला गया वो एक दौर था!
आँसुओं की मूक भाषा
पीड़ा गाती अपना राग
स्वच्छंद काल-व्याली
डस जाती आशाओं को
निकल कहाँ पाती थी
व्यथा की वो सिसकियाँ
चला गया वो एक दौर था।