November 24, 2024

आज जयंती : बाबा गुरु घासीदास

0

गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी, जिला बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम महंगूदास व माता का नाम अमरौतिन था। घासीदास जी के जन्म के समय यहाँ की धरती अराजकता, अस्थिरता, अत्याचार अनाचार और आडम्बर और जाति भेद से पीड़ित थी। यह मराठा और ब्रिटिश शासन का संधिकाल था। यहाँ के भाग्य की डोर नागपुर राजघराने से जुडी थी।

इनका बचपन जीवन की कटु अनुभूतियों में बीता। वर्ण व्यवस्था से उपजी मानव मानव की दूरियाँ, शोषण, अंधविश्वास आदि अनेक सामाजिक कारणों ने इन्हें चिन्तक बना दिया। इनकी जिज्ञासा शांत करने इनके पिता बालक घासीदास को ग्राम मानाकोनी की निजी शाला मे प्रवेश दिलाना चाहा पर जाति भेद ने यह होने नहीं दिया। इस घटना ने घासीदास जी को विरक्तता की ओर उन्मुख कर दिया। इससे चिंतित पिता ने इनका विवाह सुफरा नामक कन्या से इनका विवाह कर दिया। किन्तु पिता की मृत्यु, बड़े पुत्र का अपहरण, भाइयों के अलगाव ने वैराग्य की ओर पूर्णतः धकेल दिया। वे वन में चले गए। छह माह बाद उनका पता चला। वे छाता पहाड़ पर औरा-धौरा पेड़ के नीचे धूनी रमा कर बैठे थे। यहीं उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। इस ज्ञान को उन्होंने समाज में प्रचार किया और लोग उनके अनुयायी होने लगे।

गुरु घासीदास जी ने अपने विश्वकल्याणकारी सिद्धांतों को लेकर छत्तीसगढ़ का दौरा किया। भंडारपुरी, रतनपुर, पनाबरस, भोरमदेव, डोंगरगढ़, कांकेर और दंतेवाडा मिलाकर सात पड़ावों में इन्होने अपनी यात्रायें की। यह सभी पड़ाव रावटी कहलाते हैं। रायपुर गजेटियर के अनुसार 1820-30 के बीच छत्तीसगढ़ की 12% जनता इनकी अनुयायी थी। इस घटना को रायपुर गजेटियर ने ‘सतनाम आन्दोलन’ लिखा है। इस महान आत्मा के सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार ने सामाजिक चेतना और कार्य के लिए ‘गुरु घासीदास सम्मान’ स्थापित किया है।

गुरु घासीदास जी के संदेश बेहद सरल, स्पष्ट और कल्याणकारी हैं जो व्यर्थ के चिंतन, आडम्बरों की मलिनता को साफ़ कर देते हैं। पढ़कर देखिये –

1 एक योनि के सारे जीवों की एक ही जाति होती है। इस तरह सभी मानवों की एक ही जाति है। मानव, बन्दर, कुत्ता, बिल्ली आदि योनियाँ हैं जो कि प्राकृतिक है अतः किसी की जाति पूछने की आवश्यकता ही नहीं है।
2 प्रत्येक जाति के जीव का धर्म एक ही होता है। धर्म प्राकृतिक है। मनुष्य का धर्म मानवता है।
3 धर्म का ज्ञान समस्त जीवों को है किन्तु मानव बुद्धिमान होने के कारण अपने मानव धर्म का अतिक्रमण करता है और दुःख पाता है। अतः धर्म का ज्ञान मानव के लिए है।
4 सत आत्मा को कहते हैं। आत्मा ज्ञानी है किन्तु कर्ता नहीं है। समानता और स्वतंत्रता आत्मा का स्वभाव है।
5 आत्मा के मुख्य गुण सत्य, अहिंसा, करुणा, प्रेम, परहित आदि हैं जिसे शरीर रुपी कर्ता के माध्यम से कार्यों में परिणित करना ही धार्मिक कार्य है।
6 कार्य के प्रत्येक क्षेत्र में मानव धर्म का पालन करना ही जीवन है।

गुरु घासीदास जी का देहावसान 1850 में हुआ किन्तु अपने विचारों और कार्यों से वे अमर हैं। छत्तीसगढ़ में इनके जन्मदिन पर राजकीय अवकाश व शुष्क दिवस रहता है।

गुरु घासीदास जी की जयंती पर उन्हें नमन… 💐
पियूष कुमार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *