सुनने से श्रेष्ठ है पढ़ना, और पढ़ने से भी श्रेष्ठतर है लिखना – रुचि वर्मा का उपन्यास विमोचित
ब्रह्मवीर सिंह
एक लेखक के तौर पर मैं मानता हूं कि लेखन की सभी विधाओं में उपन्यास लेखन दुरूह कार्य है। सभी पात्रों को सफर पर ले जाना और उन्हें मुकम्मल तौर पर मंजिल पर पहुंचा देना, वह भी भावनाओं के साथ…बेहद ही कठिन है। यूं तो हर तरह का लेखन ही सृजन का प्रतीक है और साधना का कार्य है। पर उपन्यास…जो लिख सकता है वही समझ सकता है। जीवन का बड़ा हिस्सा सृजन में खप जाता है। जब कोई उपन्यास लिखता है तो मैं कभी यह नहीं विचार करता कि श्रेष्ठ है या नहीं, मैं उसके श्रम के प्रति श्रद्धा भाव रखता हूं।
**मेरी सहयोगी और मानस पुत्री रुचि वर्मा ने यह श्रमसाध्य कार्य किया उसके लिए वह बधाई और सराहना की अधिकारी है। रुचि ने इश्क का एक टुकड़ा का लेखन किया है। उसका पहला उपन्यास उम्मीदों पर खरा उतरता है। रुचि एक बेहतरीन पत्रकार है, वह शानदार लेखक बन सकती है, ऐसा मुझे लगता है। उसे नई यात्रा के लिए मंगलकामनाएं…ईश्वर उसे नई ऊंचाइयां दें।
**जीवन में डा. हिमांशु द्विवेदी जैसे शख्स हों तो लेखन की यात्रा की कठिनाइयां सरल हो जाती हैं। मैंने दो पुस्तकें लिखीं, दोनों का विमाेचन कार्य डा. हिमांशु जी ने अपने हिस्से ही रखा। दंड का अरण्य और अभिमत, दोनों पुस्तकें पाठकों तक पहुंची तो उसके पीछे डा. हिमांशु जी का स्नेह ही था। वैसा स्नेह उन्होंने रुचि को भी दिया। एक जीवन में सबके हिस्से में खुशियां परोस देने का कार्य जो शख्स करता है उसके लिए श्रद्धा भाव सहज उपजता है।