पं. सप्रे के प्रयासों से हुआ हिन्दी नवजागरण का उदय : श्री विजयदत्त श्रीधर
पं.माधवराव सप्रे की सार्ध शती (१५०वीं जयंती) पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
नागपुर, 23 दिसम्बर : पं. माधवराव सप्रे के प्रयासों से हिन्दी नवजागरण का उदय हुआ। लोकमान्य तिलक को आदर्श मानकर राष्ट्रीय विचारों को जन-मन में संचारित करने के लिए सप्रेजी ने कलम के माध्यम से अलख जगाई। सप्रेजी के व्यक्तित्व व कृतित्व का सार बताते हुए पद्मश्री श्री विजयदत्त श्रीधर ने स्वतन्त्रता आंदोलन काल की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग तथा महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुम्बई के संयुक्त तत्वावधान में पं. माधवराव सप्रे शोध संस्थान, रायपुर व महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, नागपुर के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। बीज वक्तव्य देते हुए श्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि स्वतन्त्रता आंदोलन को प्रखर बनाने के लिए पत्रकारिता, साहित्य, समाज सुधार, स्वदेशी आंदोलन महत्त्वपूर्ण आयाम सिद्ध हुए। सप्रेजी ने पत्रकारिता और स्वतन्त्रता आंदोलन के लिए ‘मनुष्य-निर्माण’ किया। मनुष्य का चयन करना और उन्हें प्रशिक्षित कर कार्य में लगाने की विलक्षण प्रतिभा उनमें थी।
संगोष्ठी पं. माधवराव सप्रे की १५०वीं जयंती के अवसर पर आयोजित की गई है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के सह-निदेशक श्री सचिन निम्बालकर तथा पंडित सप्रे के पौत्र श्री अशोक सप्रे आभासी माध्यम से जुड़े थे तथा उन्होंने भी सभा को संबोधित किया।
पंडित सप्रे के कार्य का मूल ‘राष्ट्रीयता’’ है : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने उद्बोधन में कहा कि पं. सप्रे के कार्य का मूल ‘राष्ट्रीयता’’ है। भारत की राष्ट्रीयता की अवधारणा को सप्रेजी ने बहुत प्रखरता से उठाया था। भारत की सांस्कृतिक विरासत, उपासना पद्धति जैसे भारतीय जीवन-मूल्यों को उन्होंने राष्ट्रीयता का आधार बताया है। सप्रेजी स्वयं के बजाय कार्य को अधिक महत्त्व देते थे। वे प्रतिस्पर्धा में नहीं सामूहिकता में विश्वास रखते थे। दूसरों को साथ लेकर, उन्हें अवसर प्रदान कर उनका विकास करना, यह सप्रेजी की विशेषता थी।
नागपुर विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु प्रो. संजय दुधे ने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि हिन्दी भाषा देश कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने का कार्य करती है। परदे के पीछे कार्य करनेवाले के कारण ही मंच का व्यक्ति प्रसिद्ध होता है। सप्रेजी का कार्य ऐसा ही था। व्यक्ति भाषा से नहीं वरन विचारों से विद्वान होता है। हमारे देश में वैचारिक सम्पदा है। इन विचारों का शाश्वत विकास करने की क्षमता हिन्दी भाषा में है। प्रस्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मनोज पाण्डेय ने सप्रे जी की कर्मभूमि नागपुर से आजादी के अमृतोत्सव वर्ष और सप्रे जी की १५०वीं जयंती पर इस आयोजन की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। इस अवसर पर नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. पाण्डेय द्वारा संपादित पुस्तक “पं. माधवराव सप्रे – व्यक्ति और कृतित्व” तथा “अनुवाद : स्वरूप और चुनौतियाँ”, हिन्दी विभाग की छात्र केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका “विद्यार्थी-दृष्टि”, “संगोष्ठी स्मारिका”, सप्रे संग्रहालय द्वारा प्रकाशित सार्ध शती ग्रंथ तथा छत्तीसगढ़ मित्र द्वारा प्रकाशित “संगोष्ठी विशेषांक” का विमोचन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संतोष गिरहे ने तथा संचालन आकांक्षा बांगर ने किया।
इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय था – “भारतीय नवजागरण : भारतबोध का परिप्रेक्ष्य” तथा द्वितीय सत्र का विषय था -‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम : कलम की भूमिका’। प्रथम सत्र की अध्यक्षता भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने की। इस दौरान उत्तर-पूर्व पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलॉंग के प्रो. हितेन्द्र मिश्र तथा लोकमत समाचार, नागपुर के सम्पादक श्री विकास मिश्र ने बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित किया। जबकि द्वितीय सत्र की अध्यक्षता दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्री प्रकाश दुबे ने की तथा विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के भाषाविज्ञान अध्ययनशाला के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चितरंजन कर, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे, तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने संबोधित किया। प्रथम सत्र का संचालन डॉ. सुमित सिंह ने तथा द्वितीय सत्र का संचालन प्रा. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने किया। आभार प्रदर्शन प्रा. दिलीप गिरहे तथा प्रा. जागृति सिंह ने किया।
– लखेश्वर चंद्रवंशी
मीडिया प्रभारी
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डॉ. मनोज पाण्डेय
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग