खेतों में कविताएं बोने वाले किसान कवि बल्ली सिंह चीमा को पांच लाख का पुरस्कार
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के.अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के…जैसी कालजयी रचना लिखने वाले बल्ली सिंह चीमा को पंजाब सरकार ने साहित्य शिरोमणि सम्मान देने की घोषणा की है. इस सम्मान के तहत उन्हें पांच लाख रुपए प्रदान किए जाएंगे.
गौरतलब है कि कुमाऊँ ( उत्तराखंड ) की तराई के एक छोटे से गाँव बख्शी पीर मढ़ैया में रहने वाले बल्ली सिंह चीमा अब भी परिवार के जीवन-यापन के लिए खेतों में हल चलाते हैं. ऐसे समय जबकि किसान आंदोलन चल रहा है तब बल्ली सिंह चीमा के सम्मान की खबर सुखद झोंके की तरह आई है. यह उस किसान कवि का सम्मान है जो अपने खेतों में कविताएं बोता है. किसान कवि को दिल से बधाई. खूब सारी बधाई.
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के ।
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के ।
कह रही है झोपडी औ’ पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के ।
बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के ।
हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेडि़याँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के ।
एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के ।
तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में ।
देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के ।