November 21, 2024

भाग 71- अनाम आत्मकथा : हमारी कमज़ोरी हम ही दूर करें

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राजन ने अनुभव किया है कि दुनिया में आदमी को और कोई इतना परेशान नहीं करता जितना उसकी स्वयं की कमज़ोरी, गलत आदतें, व्यसन, और उसके स्वयं के दुर्गुण। संसार की सारी बाधाओं को आदमी अपनी कमज़ोरियों के कारण और कठिन बना लेता हैं । जैसे लालची आदमी किसी से झूठ बोलकर उधार लेता है फिर धीरे धीरे उसकी आदत बन जाती है। झूठ बोलने से हर आदमी का आत्मबल टूटने लगता और एक आदमी बीमार पढ़कर मृत्यु वरण करता है।
जेल में अधिकांश अपराधी अपनी मानसिक, आरती और शारीरिक कमजोरियों के कारण आते हैं। समाजीकरण में बचपन से बच्चे की आदतों को सुधारा जा सकता है। कुछ दिन पहले एक डॉन का बेटा जेल आ गया । तथाकथित डॉन जानता था कि बेटा क्या करता है। पिता होने नाते समझाय भी होगा। किंतु दूसरे व्यक्ति ने आपको आपकी कमजोरी की ओर ध्यान दिलाया भी होगा तो उसका आभार मानने की बजाय हम उस पर क्रुद्ध हुए हो जाते हैं। यहां रोकने टोकने वाले को अपना शत्रु मानने लगते हैं।
गौतम बौद्ध ने कहा है कि इस दुनिया का बहुत मुश्किल कार्य अगर कोई है तो वह प्रज्ञावान होना है । स्वयं की कमजोरियों को पहचान कर आत्म निरीक्षण बड़ा कठिन काम है। राजनैतिक दल सब अपनी पार्टी और उद्देशों की तारीफ करते हैं और दूसरी पार्टी की बुराई। वोटर्स सारी ज़िंदगी समझ नहीं पाता अपना आदर्श नेता किसे माने ? आदमी, समूह और समुदाय स्वयं के दोषों को दूर करने का प्रयास करें तो देश की अनेक समस्याएं अपने आप सुलझ सकती हैं। यह काम हर कोई अकलमंद और साहसी ही कर सकता है। जीवन को सफलता और आनंद की ओर ले जाना है तो अपनी कमजोरियों की इतिश्री करें।
राजन के जीवन में अनेक उतर चढ़ाव आए वो मानते रहे कि यह जरुरी नहीं कि जीवन में हमेशा प्रिय क्षण ही आएं । दूसरे लोगों का प्यार सम्मान और अनुकूल व्यवहार ही हमें प्राप्त हो। अपमान, शोक, वियोग, हानि, असफलता आदि तमाम स्थितियां आती और जाती भी रहती हैं।उनका डटकर सामना करें पर कमज़ोर आदमी उनका सामना नहीं कर पाता।
कमज़ोर आदमी की आदत होती है कि ज़रा सी बात पर परेशान हो जाना, निराश हो जाना, रोना , उत्तेजित हो जाना, क्रोध में आकर ना कहने योग्य बात को कह जाना और ना करने योग्य कार्य को कर जाना, यह सब मनुष्य की आंतरिक कमज़ोरी, दुर्बलता, जड़ता के लक्षण हैं। सभी को अपने मानसिक और शारीरिक और आर्थिक शक्ति को बढ़ाने की आवश्यकता है।
राजन ने कठिन से कठिन विकट स्थिति में विवेक पूर्वक और धैर्यपूर्वक निर्णय लेकर कैदियों को जीने की कला सीखा कर समाजोपयोगी बनाया। कुछ पल जीवन में उत्तेजना और क्रोध के आते हैं । उन पलों में आत्म नियंत्रण करना बड़ी कला है। संत कबीर कहते हैं,,वाणी ऐसी बोलिए,मन का आपा न खोए,, औरन को शीतल करे आप भी शीतल होय।।
अपने आचरण को शुद्ध रखो। अपने शब्द और किया गया हर काम स्थिति को और बना/बिगाड़ देता है। इसलिए अपनी हर स्थिति/ कमज़ोरी को दूर कर मौन और मुस्कुराहट को अपना आभूषण बनायें। संसार का चक्र/ कुचक्र ऐसे ही चलता रहेगा, मुस्कुराकर हर क्षण को स्वीकार कर आगे बड़ो,
शेष भाग 72
-राजेन्द्र जी रंजन

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