November 24, 2024

अजिता त्रिपाठी की दो कविताएं

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मां की बिंदी लगी है
घर के दरवाजे पर
और पिता की कलम
पड़ी है मेज पर
मां सर सहलाती है
पिता साथ चलते हैं
हाथ पकड़ कर
इस तरह दोनों को हमेशा
करीब पाती हूं
मैं!!!!

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शांत सी तस्वीर उनकी
पर आंखें हैं कि चुप नहीं होती
और मुंह है कि जबान नहीं खोलती
जबान न खोलते हुए भी
बहुत कुछ कह जाने की खासियत है उसकी
वो तस्वीर न जाने कितनी छिपी हुई
स्मृतियों का करती है प्रतिनिधित्व
जिसमें कुछ गम है, कुछ में कम है
कुछ में कैद हैं खिलखिलाहटें उसकी
हसीन तस्वीरों को चाट रहा है दीमक
और गमगीन तस्वीरें लेमिनेट सी पड़ी हैं
शायद दीमक हमसे ज्यादा समझते हैं
दुनिया को तभी तो
हसीन तस्वीरों को चट कर जाते हैं
और गमी तस्वीरों को छोड़ जाते है
जमाने के लिए….

अजिता त्रिपाठी
शोध छात्रा, हिंदी भवन
विश्वभारती, शांतिनिकेतन
731235
Mbl.9800903026

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