November 21, 2024

‘टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014’ के लिए कवयित्री अनामिका को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020

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नई दिल्ली। जानी-मानी कवयित्री और उपन्यासकार अनामिका को वर्ष 2020 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ दिए जाने पर सभी ने उन्हें बधाई दी है। अनामिका को यह पुरस्कार उनके चर्चित कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगन्त-थेरी गाथा : 2014’ के लिए दिया गया है जो राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अनामिका ने कहा, मेरे इस कविता-संग्रह में कस्बों, गाँवों, ट्रेनों की, बसों, पंचायत-घरों की स्त्रियों और विस्‍थापित स्त्रियों का बुद्ध से काल्पनिक संवाद है। ये स्त्रियाँ बुद्ध से अपने जीवन का दुख कहती हैं, ये मैंने कल्पना की है। मैंने यह भी कल्पना की है कि बुद्ध में उन स्त्रियों को अपने जीवन का आदर्श पुरुष दिखता है और बुद्ध उनसे सखा भाव में किस प्रकार बात करते हैं। उन्होंने कहा, राजकमल ने इस कविता संग्रह को प्रकाशित कर इन औरतों की बात आगे तक पहुँचाने में सहयोग किया है। मुझे प्रसन्नता है कि इन स्त्रियों का बुद्ध से यह काल्पनिक संवाद अब और दूर तक पहुँचेगा। इस अवसर पर राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किए जाने के लिए हम अनामिका जी को हार्दिक बधाई देते हैं। हमें बेहद खुशी और गर्व है कि उन्हें जिस कविता-संग्रह के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है उसको राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। उन्होंने कहा, यह एक दुर्लभ अवसर है जब हिन्दी कविता के स्‍त्री स्वर को पहली बार यह पुरस्कार दिया जा रहा है।

शंकर और वीरप्‍पा मोइली को भी बधाई

राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, बांग्ला भाषा के जाने-माने कथाकार शंकर और कन्नड़ भाषा के वरिष्‍ठ लेखक वीरप्‍पा मोइली को भी साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा ने हमारी खुशी और बढ़ा दी है। राजकमल प्रकाशन को इन दोनों रचनाकारों की कृतियों हिन्दी में प्रकाशित करने का सौभाग्य हासिल है। हम इन दोनों रचनाकारों को भी यह प्रति‌‌‌ष्ठित पुरस्कार मिलने की बधाई देते हैं।

टोकरी में दिगन्त-थेरी गाथा : 2014’ पर क‌वि केदारनाथ ‌सिंह की ‌टि‌‌‌प्‍पणी

अनामिका के नए संग्रह ‘टोकरी में दिगन्त—थेरी गाथा : 2014’ को पूरा पढ़ जाने के बाद मेरे मन पर जो पहला प्रभाव पड़ा, वो यह कि यह पूरी काव्य-कृति एक लम्बी कविता है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे दृश्य, प्रसंग और थेरियों के रूपक में लिपटी हुई हमारे समय की सामान्य स्त्रियाँ आती हैं। संग्रह के नाम में 2014 का जो तिथि-संकेत दिया गया है, मुझे लगता है कि पूरे संग्रह का बलाघात थेरी गाथा के बजाय इस समय-सन्दर्भ पर ही है। संग्रह के शुरू में एक छोटी-सी भूमिका है, जिसे कविताओं के साथ जोडक़र देखना चाहिए। बुद्ध अनेक कविताओं के केन्द्र में हैं, जो बार-बार प्रश्नांकित भी होते हैं और बेशक एक रोशनी के रूप में स्वीकार्य भी। इस नए संकलन में अनेक उद्धरणीय काव्यांश या पंक्तियाँ मिल सकती हैं, जो पाठक के मन में टिकी रह जाती हैं। बिना किसी तार्किक संयोजन के यह पूरा संग्रह एक ऐसे काव्य-फलक की तरह है, जिसके अन्त को खुला छोड़ दिया गया है। स्वयं इसकी रचयिता के अनुसार ‘‘वर्तमान और अतीत, इतिहास और किंवदन्तियाँ, कल्पना और यथार्थ यहाँ साथ-साथ घुमरी परैया-सा नाचते दीख सकते हैं।’’ आज के स्त्री-लेखन की सुपरिचित धारा से अलग यह एक नई कल्पनात्मक सृष्टि है, जो अपनी पंक्तियों को पाठक पर बलात् थोपने के बजाय उससे बोलती-बतियाती है, और ऐसा करते हुए वह चुपके से अपना आशय भी उसकी स्मृति में दर्ज करा देती है। शायद यह एक नई काव्य-विधा है, जिसकी ओर काव्य-प्रेमियों का ध्यान जाएगा। समकालीन कविता के एक पाठक के रूप में मुझे लगा कि यह काव्य-कृति एक नई काव्य-भाषा की प्रस्तावना है, जो व्यंजना के कई बन्द पड़े दरवाज़ों को खोलती है और यह सब कुछ घटित होता है एक स्थानीय केन्द्र के चारों ओर। कविता की जानी-पहचानी दुनिया में यह सबाल्टर्न भावबोध का हस्तक्षेप है, जो अलक्षित नहीं जाएगा। —केदारनाथ सिंह

अनामिका के लेखन पर वरिष्‍ठ साहित्‍कारों के मन्‍तव्य

अनामिका अपने लोक को बखूबी जानती हैं। जैसे ही रचना-लोक में प्रवेश करती हैं, जीते-जागते जानदार चित्र सामने आते हैं। भाषा बदल जाती है। सारे मुक्ति-संघर्षों के सूत्र उनसे ही जुड़ते हैं…एक मुकम्मिल तस्वीर बनती है और मुक्ति का आधार व्यापक होता चला जाता है। स्त्री-मुक्ति के नए आयाम यहाँ खुलते हैं। अनामिका के यहाँ स्त्री-मुक्ति मानव-मुक्ति का उत्स है। —नामवर सिंह

अनामिका की भाषा सही मायने में परतदार भाषा है : लोक से गहरे जुड़ी पढ़ी-लिखी स्त्री की परतदार भाषा! जड़ों से जुड़े आधुनिक स्त्री-मन की क्लिष्ट गहराइयों की बंकिम समझ का एक नमूना हम अनामिका के ताज़ा-तरीन, अछूते रूपकों में पाते हैं। एक साथ दो-तीन धरातलों पर जीनेवाले स्त्री-मन की यथेष्ट समझ इन रूपकों में व्यक्त होती है। जातीय स्मृतियों की सफल ‘रीराइटिंग’ इनके यहाँ पूरी महीनी से दर्ज है। —मीनाक्षी मुखर्जी

अनामिका का परिचय

जन्म : 1961 के उत्तरार्द्ध में मुज़फ्फरपुर, बिहार।

शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य से पीएच.डी.।

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कृतियाँ : पोस्ट एलिएट पोएट्री : अ वॉएज फ्रॉम कांफ्लिक्ट टु आइसोलेशन, डन क्रिटिसिज़्म डाउन दि एजेज, ट्रीटमेंट ऑव लव ऐंड डेथ इन पोस्ट वार अमेरिकन विमेन पोएट्स (आलोचना); स्त्रीत्व का मानचित्र, मन माँजने की ज़रूरत, पानी जो पत्थर पीता है, साझा चूल्हा, त्रिया चरित्रम् : उत्तरकांड (विमर्श); गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, समय के शहर में, अनुष्टुप, कविता में औरत, खुरदुरी हथेलियाँ, दूब-धान, टोकरी में दिगन्त : थेरी गाथा : 2014, पानी को सब याद था (कविता); प्रतिनायक (कहानी); एक ठो शहर था, एक थे शेक्सपियर, एक थे चार्ल्स डिकेंस (संस्मरण); अवान्तर कथा, दस द्वारे का पींजरा, तिनका तिनके पास (उपन्यास)।

अनुवाद : नागमंडल (गिरीश कारनाड), रिल्के की कविताएँ, एफ्रो-इंग्लिश पोएम्स, अटलांत के आर-पार (समकालीन अंग्रेजी कविता), कहती हैं औरतें (विश्व साहित्य की स्त्रीवादी कविताएँ) तथा द ग्रास इज़ सिंगिंग।

सम्मान : राजभाषा परिषद् पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, गिरिजाकुमार माथुर सम्मान, परम्परा सम्मान, साहित्य सेतु सम्मान, केदार सम्मान, शमशेर सम्मान, सावित्रीबाई फुले सम्मान, मुक्तिबोध सम्मान और महादेवी सम्मान आदि।

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