ग़ज़ल
वो जुबाँ पर सवार होती तो।
बात कुछ धार-दार होती तो।
जान लेती मलाल भीतर के,
जब नज़र भी कटार होती तो।
बात अपना कहा बदल लेती,
एक की जब हज़ार होती तो।
उनके चहरे की वो हँसी नकली,
अब हमें नागवार होती तो।
आज जिसकी ख़ुशी रखी हमनें,
जीत वो बार -बार होती तो।
इन बहारों से दोस्ती रखती,
तितली गर होशियार होती तो।
पास रहती वो दूर होकर भी,
मुझ सी वो बेकरार होती तो।
फिर अंधेरो का डर नहीं होता,
रोशनी आर -पार होती तो।
2
जिसको मैंने देखा था।
बिल्कुल तेरे जैसा था।
वैसा ही पाया उसको ,
जैसा मैंने सोचा था ।
वो सुबह से पहले का,
सपना कोई सच्चा था।
हँसता-खिलता आँखों में,
वो फ़ूलों सा चेहरा था ।
काम वही आयाअक़्सर,
जो ग़ैरों में अपना था ।
क्या उसकी तारीफ़ करूँ,
वो अच्छों में अच्छा था।
3
हालत उतरे चहरे की।
कह देती है खामोशी।
बातें बढ़ती रहती हैं ,
कह-सुन कर झूठी-सच्ची।
घर की चार- दीवारी में,
दुनियाँ है अपनी-अपनी।
होना हो जिसको पूरा,
होती हैं उल्टी गिनती ।
उठती गिरती लहरों पर,
चलती है लेक़िन कश्ती ।
दिल छू जाए बात वही,
लगती है हमको अच्छी।
4
कहीं मुश्किल ,कहीं आसां मिला है।
यही इस जिंदगी का सिलसिला है।
रखी हमनें हमेशा ही तसल्ली,
भले सबसे हमें हक कम मिला है।
मनाही में रज़ा हम ढूंढ लेंगे,
यहाँ हमको किसी से क्या गिला है।
बचा है बाग में वो ही अकेला,
कहीं इक फूल जो छुपकर खिला है।
हमारे सामने होकर जो गुज़रा,
कहीं रुकता नहीं वो काफ़िला है।
5
ग़ज़ल
आ गई मझधार फिर से।
खुल गई पतवार फिर से।
मौज से कश्ती मिली तो,
मिल गई रफ़्तार फिर से ।
कर नहीं पायी कही जब,
घिर गई सरकार फिर से।
बात अपनी ज़िद पकड़कर,
बन गई तकरार फिर से।
ज़िन्दगी आकर के हद में,
हो गई घर-बार फिर से।
आ गया किरदार रब का,
जब हुई दरकार फिर से।
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
9893119724