November 22, 2024

“प्रकृति”
तुम्हारा कुछ पल आ जाना
तुम्हारा कुछ पल आ जाना ही काफी हो जाता है।
पर आज जी नहीं भरा इतने दिन मुलाकात भी न हुई।
यूँ ही छोड़ जाते हो आज तो तुमसे कुछ बात भी न हुई।
तुमने कैसा असर किया ये जादू है कैसा सुनो,
कुछ देर और ठहर जाते तो अच्छा होता ,
चाँद भी देखो मुस्कुराए अभी रात भी न हुई।
वक़्त को गुजरते कितनी देर लगती है भला,
तुम आए और चले गए जी भरके मुलाकात भी न हुई।
आँखों की कश्ती में तुम्हारी तस्वीर के साये ,
और उतर रहे थे कुछ ख़्वाब ,
रुखसारों पर चुप चाप कोई आवाज़ भी न हुई।
तुम्हारें धड़कनो से लग जाने की उम्मीद में थे,
की लम्हा फिसल गया और फ़रियाद भी न हुई।
वो मोम की तरह पिघल जल जल रोशनाई मेरी,
कोरे कागज़ पर उतर अभी हमराज भी न हुई।
तुम्हारा कुछ पल आ जाना ही काफी हो जाता है।
पर आज जी नहीं भरा इतने दिन मुलाकात भी न हुई।
दीपा साहू “प्रकृति”
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“तुम उस जहाँ में”
उस रात में कुछ और भी राज़ दफ़्न हैं,
तेरे आँखों के समुन्दर में एहसास दफ़्न हैं।
मोती जब लुढ़क आये पलकों के सिपी से,
चमकते हर मोती में तेरे प्यार के ज़ज़्बात दफ़्न हैं।
मेरी मुट्ठी पे देख समेट लिया मैंने अश्कों को
तेरे जाने के बाद मेरे दिल में तेरे होने के राज़ दफ़्न हैं।
कोई न जान पाया मेरे गम के आँसू तू खुश है न,
मेरी मुस्कुराहट में जो उस रात के हालात दफ़्न हैं।
तुम्हें जब बुलाया उस आसमान के फ़रिश्तें ने,
तुम्हारी रूह जा रही थी ये काया मेरे हाँथो में छोड़,
तुमसे जो वादें किये थे हँसने के वो नाराज़ दफ़्न हैं।
पर यादें तुम्हारी सिसकती हैं, दिल के दीवारों में,
तुम उस जहाँ में हो कही मेरी यहाँ कायनात दफ़्न हैं।
दीपा साहू “प्रकृति”
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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