November 22, 2024

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की कविताएँ

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खुशियों का पुष्पन-पल्लवन…

धरती से धड़ाधड़ जंगल कटते जा रहे हैं
कंक्रीट के महल खड़े होते जा रहे हैं
हमारे गाँव शहर में और शहर
महानगर में बदलते जा रहे हैं
कल-कल करती नदियों पर
बांध बना कर उनके प्रवाह को
हम अवरुद्ध करते जा रहे हैं…

पहाड़ों-पर्वतों को प्रयोगशाला
बना कर हम नित तोड़ रहे हैं
प्रकृति की बेशुमार संपदाओं को
हम दोहन करते चले जा रहे हैं
भौतिकता की अंधी दौड़ में
क्या हम सचमुच दृष्टिहीन हो गए हैं?…

हमने धृतराष्ट्र की तरह आँखों पर
मजबूत पट्टी बांध ली है
हम दिखावे की दुनिया में दौड़ रहे हैं
उचित-अनुचित, सही-गलत, न्याय-अन्नाय का
फैसला अपनी सुविधानुसार कर ले रहे हैं
अनुचित कार्य से यदि हमें लाभ हो रहा है
उसे हम न्याय के तराजू पर सही कह रहे हैं…

जबकि अंतरात्मा जानती है कि
ये वास्तव में गलत है
अगर लाभ है तो हम
गलत लोगों के साथ खड़े होकर
नारा लगाते हैं और धरना देते हैं
हम जोरदार प्रदर्शन करते हैं…

धरा और प्रकृति के सुंदरतम
मूल्यवान संपदा को आखिर
किस अधिकार के तहत
हम मिटा दे रहे हैं
प्रकृति ने सोच समझकर
इनको बनाया होगा
हमारे द्वारा किए जा रहे
विनाश के खेल को
प्रकृति अच्छी तरह से देख रही है…

अगर इसी तरह विनाश का खेल
मनुष्य द्वारा खेला जाता रहा
तो प्रकृति का सौंदर्य खत्म हो जाएगा
मनुष्यों, पशु-प्राणियों और जंतुओं का
जीवित रहना नामुमकिन होगा
भूकंप, असमय वर्षण, आंधी-तूफान
नित नई महामारियों का आगमन
चारों ओर बस! हाहाकार होगा
हमें करना होगा इस पर चिंतन-मनन
आसपास खाली जमीं पर
पेड़-पौधों का करना होगा सृजन
तभी हम सभी के जीवन में होगा
खुशियों का पुष्पन-पल्लवन…
★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★

महत्वाकांक्षी युद्ध…

आज तक मैंने पढ़ा है
नफरत और प्रेम में
अंततः प्रेम की ही जीत होती है
यह भी पढ़ा है कि जीत आखिर में
सत्य की होती है
शांति और युद्ध में
शांति चिरस्थाई होती है
तमाम भयानक युद्ध के इतिहास को
किताबों में पढ़ा है
सिरफिरों की महत्वाकांक्षाओं ने
ऐसे युद्धों को मढ़ा है
उन्ही युद्ध की विभीषिका को
आज हम प्रत्यक्ष होते हुए देख रहे हैं
रूस और यूक्रेन के युद्ध को बंद होने की पहल
सभ्यता और अपने को शक्तिशाली राष्ट्र का
ढिंढोरा पीटने वाले क्यों नहीं कर रहे हैं…

कितनी वीभत्स दृश्य की खबरें
रूस-यूक्रेन युद्ध की सुनाई दे रही हैं
मानवता और सभ्यता की अंतिम हदें
इस युद्ध में पार हो रही हैं
अखबारों में पढ़कर और टीवी में देख
रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं
अविश्वसनीय लगता है कि
आज इस आधुनिकता के दौर में भी
मनुष्य के वर्चस्व की महत्वाकांक्षा
या इक अनोखी जिद
हिमालय की ऊंची चोटियों जैसी हैं
जिसका परिणाम है कि हँसते-खेलते देश को
बमबारी करके तहस-नहस कर दिया गया
पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया गया
दिखाया जा रहा है कि
हम सर्वश्रेष्ठ और बलशाली हैं
क्या ? दिखाई नहीं दे रहा कि
भूख से बिलखते बच्चे क्रंदन कर रहे हैं
कितने सुखद सपने संजोए होंगे उस नवदंपति ने
अभी कुछ दिन ही सुखद पल साथ बिताए होंगे
जिनकी अभी हाल में शादी हुई होगी
रात में साथ सोए रहे होंगे और बमबारी हो गई
पूरा घर उड़ गया और रक्त की धार उनके अंग-भंग
शरीरों से बह रहे होंगे…

आदमी की कीमत ऐसे युद्धक्रांताओं की
नजर में कुछ भी नहीं है
चारों ओर सिर्फ बर्बादियों के निशान
मलवे में अपने घर की न रह गई हो पहचान
जहाँ सड़कें और बाजार गुलजार रहते थे
आज वहाँ सिर्फ सुनसान
स्कूलों में जहाँ बच्चों की
किलकारियाँ गूँजती थी
आज वे स्कूल खंडहर नजर आ रहे हैं
बच्चे अनाथ होकर सड़कों पर घूम रहे हैं
बचे हुए लोग दाने-दाने को मोहताज हैं
आखिर कब बंद होंगे ऐसे महत्वाकांक्षी युद्ध
यूक्रेन में शांति के कब संदेश देंगे बुद्घ…
★★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★★
सृजन के लिए नए शब्द…

जब तुम मंद-मंद मुस्कराती हो
किसी बात पर खिलखिलाती हो,
मेरे सृजन के लिए इक नई ऊर्जा
इक नई प्रेरणा बन जाती हो
हृदय में सुखद एहसास का
इक नया अध्याय लिख जाती हो…

तुम्हारे स्पर्श, तुम्हारा मेरी आँखों में झाँकना
तन-मन की वेदना अचानक छू मंतर हो जाती है
दिन भर ऑफिस के काम की थकान
पता नहीं कैसे गुम हो जाती है
सोचता हूँ तुम्हारा संबल और सहयोग
यूँ ही मुझे यदि मिलता रहे
गगन छूने का हौसला खुद-बखुद
मुझमें पनपने लगेगा
अथाह सागर में डूबना पड़े तो
वहाँ से भी मोती चुन कर लाऊँगा…

अकेला कभी छोड़कर न जाना मुझे
वरन मेरे सृजन संसार की मृत्यु निश्चित है
सपनों के नीले आकाश में
तुम्हारे संग उड़ने लगता हूँ
हसीन-रंगीन ख्वाब बुनने लगता हूँ
मेरी धड़कन में माधुर्य संगीत बजने लगता है
मेरे सृजन में नई कविताओं के
नए शब्द जुड़ने लगते हैं
कविताओं में फूल महकने लगते हैं…
★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★

जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े पथ…

वक्त के थपेड़ों से घबराता हूँ
कभी ठोकर इतनी जोर से लगती है
गिर भी पड़ता हूँ, पर डरता नहीं हूँ
मुश्किलों का सामना करता हूँ
संभल कर आगे बढ़ता हूँ…

मानता हूँ, कि जब वक्त अच्छा न चल रहा हो
तो खराब दौर में पराए तो पराए हैं
अपने भी साथ चलने को तैयार नहीं होते हैं
क्रोध तो आता है, खुद में जब्त कर जाता हूँ
अपने बुरे वक्त का विश्लेषण करता हूँ
कदापि हिम्मत न खोता हूँ
दुगने उत्साह से चल पड़ता हूँ…

जिंदगी तुमसे अच्छे कर्म करने का
मैं वादा करता हूँ
कांटो का ताज मुझे मिला है
पर सोचता हूँ कि कांटो के साथ
गुलाब भी खिला होता है
दुःखों के पहाड़, मेरे लक्ष्य में विघ्न करेंगे
मुझे खुद पर पूर्ण विश्वास है
जिंदगी को खूबसूरत बनाने का
मेरे द्वारा किए जा रहे प्रयास हैं
निश्चित ही बेहतर करूँगा
निश्चय ही श्रेष्ठ करूँगा
और सफलता का वरण करूँगा
इसी उम्मीद में अकेले ही
मैं निकल पड़ता हूँ…

माना कि सत्य मौन है
लेकिन सत्य अटल है
अंततः सत्य सफल होता है
सत्य का अनुगमन कर
जिंदगी को अब तक जिया है
भले ही सफलता का अमृत रस
अभी तक नहीं पिया है
वक्त ने मेरा साथ नहीं दिया है
अनीति के सरल सुगम पथ पर
विजय श्री का न करूँगा आह्वान
मुझे नहीं चाहिए ऐसा सम्मान
सद के टेढ़े-मेढ़े पर्वत पर
मैं आनंदमग्न होकर चढ़ता हूँ…
★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★

औरतें रिश्ते प्यार से निभाती हैं…

गेहूँ काटती और धान रोपते हुए गाना गाती
औरतें कितनी सुंदर लगती हैं…
किचेन में खाना बनाती, बच्चों का टिफिन बनाती,
बच्चों को तैयार करती औरतें कितनी अच्छी होती हैं…
मकान को सजाकर घर बनाती औरतें
कितनी अच्छी लगती हैं…
सास, ससुर, ननद, पति, बेटे के लिए दिन भर
काम करने वाली औरतें कितनी सहनशील होती हैं…
घर का काम निपटा कर समय से
नौकरी करने जाने वाली औरतें कितनी जिम्मेदार होती हैं…
सुबह चाय, बच्चों का टिफिन, खाना बनाना,
कपड़ा सफाना, बिस्तर लगाना,
बच्चों को खाकर सुलाना फिर देर रात से सोना
औरतें रोजाना कर जाती हैं…

यहीं नहीं बात खत्म हो जाती है बल्कि…
औरतें घर का सामान, सब्जी, दवाई और
आवश्यक सामान भी खरीद कर लाती हैं…
अनपढ़ जाहिल पुरुषों से औरतें गाली, मार
और दुत्कार भी पाती हैं…
फिर भी औरतें रिश्तों को प्यार से निभाती हैं…
संबंधों को कितने करीने से सजाती हैं..
आजकल औरतें घर के साथ-साथ
अन्य सामाजिक दायित्वों को भी निभाती हैं…
अंतरिक्ष से लेकर पहलवानी में दांव आजमाती हैं…
सांसद से लेकर गाँव की प्रधान तक बन जाती हैं..
महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी और महाश्वेता जैसी
प्रतिष्ठित साहित्यकार हो जाती हैं…
पी टी उषा, शाइना नेहवाल, पी वी सिंधू, मीराबाई चानू
लवलीना आदि खेलों में पताका फहराती हैं…

नारियाँ हर क्षेत्र में परचम लहराती हैं…
घर, समाज और देश का नाम और शान बढ़ाती हैं…
सोचता हूँ, विचारता हूँ कि यदि नारियाँ न होती?
पुरुषों के लिए जीवन कितना मुश्किल होता
जीवन कितना अस्तव्यस्त रहता
सच में नारी ही एक माँ, बहन, जीवनसाथी
और दोस्त का निःस्वार्थ किरदार निभाती हैं…
अपने संतान को संस्कार देकर एक इंसान बनाती हैं…
हमारा संसार कितना खूबसूरत बनाती हैं…
हम कितने भी लैंगिक समानता की बातें करते हैं
आज भी औरतें अपना उचित अधिकार न पाती हैं…
घर और समाज में उचित स्थान नहीं पाती हैं…
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★★★★★★

बाबूजी को कभी हारते नहीं देखा…

कितनी मुश्किलें हों, कितनी परेशानियाँ हों
बाबूजी जी कभी हारते नहीं देखा
कभी मन की पीड़ा, हृदय के दर्द को
किसी से कहते नहीं देखा
कभी-कभार बरामदे में या जाड़े में
अम्मा से कुछ जरूर चर्चा किया करते थे
वट वृक्ष की तरह पूरे परिवार को
सदैव छाँव दिया करते थे
आगे बढ़ने की सलाह दिया करते थे…

हम भाई और इकलौती बहन को
सूरज की तरह रोशनी देते रहे
हमारे तम को हरते रहे
काबिल बनाने की जो भी
युक्तियाँ हो सकती थी
जीवन भर करते रहे
कभी कर्ज में डूबते रहे
कभी कर्जदारों की धौंस भी सहते रहे
पर लायक बनने को सचेत करते रहे…

बाबूजी सपने देखते थे
उनके बच्चों बड़े ओहदे पर पहुँच कर
अपने पैरों पर खड़े हो जाए
किसी अच्छे पद पर नियुक्त हो जाएँ
सत्य पर चलने की उनकी निष्ठा
आसपास कई गाँवों में उनकी थी खूब प्रतिष्ठा
निर्णय लेने की उनमें गजब की थी क्षमता
परिवार, आसपास, गाँव और समाज के
दुखदर्द में पूरी शिद्दत से खड़े रहते थे
सच को कहने से कभी न डरते थे
आज बड़ा होकर उनके दिखलाए पथ पर
चलने की कोशिश करता हूँ
पर थोड़ी सी मुश्किल होने पर
बहुत परेशान हो जाता हूँ
तब बाबूजी के मुश्किलों में जीने की कला
याद करने लगता हूँ
बाबूजी के कभी न हारने की
हिम्मत एवं हौसलें को दिल से सलाम करता हूँ
आँखों में आँसू भर लिया करता हूँ…
★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★

सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार…

हमारे जीवन में सुख-दुःख आते हैं
कभी हँसाते हैं तो कभी रुलाते हैं
ऐसे ही हमारे मन-मस्तिष्क में
विचारों का प्रवाह होता है
कभी सकारात्मक, तो कभी नकारात्मक
विचार आने पर हम आगे बढ़ते रहते हैं
सकारात्मक विचार की राह
जब हम पकड़ते हैं
तो जीवन में खुशियों के अंबार लग जाते हैं
और जब हम नकारात्मकता को
अपने जीवन में प्रभावी होने देते हैं
तो शुरुआत में भले ही हमें
धन-दौलत या पद-प्रतिष्ठा मिले
आगे चलकर हमें परेशान होना पड़ता है
हमें संकटों का सामना करना पड़ता है…

यह तो निश्चित है कि सकारात्मकता से
हमें जीत मिलनी तय है
इस पथ पर चलने पर कुछ भी नहीं भय है
नकारात्मक होने पर वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह
हमारे मन-मस्तिष्क में होने लगता है
और हम कुपथ पर चल पड़ते हैं
मार्ग में हमें कंटक भले न मिले
अंत में हम हार कर निराश हो जाते हैं
हम अपना जीवन संकट में बिताने के लिए
मजबूर हो जाते हैं
अपना जीवन भी गंवाते हैं
जीवन की सांझ बेला में
खाली हाथ होकर पछताते रहते हैं…
★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★

मेरे सृजन का आधार…

मेरी प्रत्येक कविता तुम्हारे प्रेम के एहसास से
अंकुरित और पुष्पित पल्लवित होती है..
हृदय के अथाह सागर के किसी कोने में
जब तुम्हारे प्रेम की एक बूंद पड़ती है..
सृजन उर से अचानक उद्गारित
होकर कोरे कागज पर शब्दों को गढ़ लेती हैं..
और स्वतः मुखरित होकर
लिखती-बढ़ती चली जाती हैं..
सच में अप्रितम-अनुपम है
हमारे अपरिमित प्रेम का व्यास
तुम्हारी और मेरी सांसों की हर धड़कन
एकाकार होकर कविताओं के सृजन के लिए
एक मनोहारी परिदृश्य
खुद ही निरूपित हो जाता है..
शब्द स्वयं ही सृजित हो कर
आकार ग्रहण करने लगते हैं…

तुम्हारा स्पर्श केवल हमारे प्रेम को
परिलक्षित नहीं करता..
बल्कि सृंजन के लिए एक नया संवाद
स्फुटित होने लगता है..
सृजन के लिए नई खुशबू की
सोंधी महक उठती है…

तुम्हारी मधुर मुस्कान से
मेरी पीड़ा खत्म हो जाती है
सृंजन के लिए नई उर्जा का
प्रवाह होने लगता है..
नई कविताओं के लिए
इंद्रधनुषी रंग दिखाई देते हैं
तुम्हारे प्रेम की अभिव्यक्ति ही
मेरे सृजन का आधार है..
सच में तुम्हारी यादें ही
मेरा सुंदर सृजन संसार है.
ताजी हवा के झोंके से जिस तरह
ठंडक का अहसास होता है
उसी तरह तुम्हारी स्मृतियाँ
मेरा सृजन सुखद साकार है…
★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★

सृजन का प्रयास…

कविता और कहानियों को जीते हुए अच्छा लगता है
कविता और कहानियाँ लिखते हुए अच्छा लगता है
मुझे मिलती हैं संतुष्टि, सुकून और सुखानुभूति
कितना श्रेष्ठ, समृद्ध और कल्याणकारी है
हमारे साहित्य का अतीत
श्रेष्ठ साहित्यकारों को पढ़ते हुए
मन में सृजन के बीज अंकुरित होते हैं
प्रकृति का सौंदर्य, नदियों का कल-कल
सूर्य का तम हर कर धरा को आलोकित करना
और कई प्रतिमान शब्दों के रूप में
पुष्पित-पल्लवित हो मेरे सृजन को देते आकार
मेरे हृदय के भाव को करते हैं साकार
मन में नई उमंग और खुशियों को देते हैं विस्तार…

श्रमिक के पसीने की बूंदें सृजन की इमारत गढ़ती हैं
अन्नाय और शोषण की कहानियाँ कहती हैं
आधी रात तक जग कर एक-एक शब्द को पिरोना
साहित्य के प्रति प्रीत को बयां करती है
मुझे सृजन में संगीत की प्यारी धुन सुनाई देती है
आशा की नई किरणें दिखाई देती है…

सृजन में पसंद है लिखना, बच्चों की मुस्कान
सृजन से हरियाली की कोशिश, दिखे जहाँ वीरान
क्रांति और ओज का भावप्रवण संदेश सृजन से
सच में सृजन से प्रयास हो कि कैसे अच्छा बने इंसान
नई दिशा और दशा का बोध कराने का व्यक्त हो ज्ञान
हताश और अवसादग्रस्त हो दिखते हैं कृशकाय
साहित्य सृजन में रम कर हम हो जाते हैं जवान
और धीरे-धीरे हमारी बनने लगती है इक पहचान…
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★★★★★

कविता में संभावना…

मुरझाए चेहरे पर जब आ जाए मुस्कान,
टूटे दिलों में फिर से आ जाए जान
मानवता को अपनाए जब इंसान
हरियाली में जब बदल जाए रेगिस्तान
सच में कविता ऐसा ही करती अनुसंधान…

घुप्प अंधेरे में जब दिखे प्रकाश
नई राह दिखे, जब हम हो निराश
कुरीतियों का जब हो जाए सर्वनाश
हृदय में हो आनंद और हो उल्लास
सच में कविता से होते हैं हमें ऐसे एहसास…

हम सीख जाएं सभ्यता और संस्कार
हमारा सबके साथ हो सुंदर और मृदु व्यवहार
शोषण और अन्नाय का जम कर करे प्रतिकार
शब्द जब दिलों-दिमाग पर करे हथौड़े सा प्रहार
मानवता का जब समूचे विश्व में हो विस्तार
सच में कविता की ऐसी होती है धार…

किसी के दुःख-दर्द में हम काम आएं
इंसानियत का हम कर्तव्य निभाएं
सद्मार्ग पर हम आगे बढ़ते जाएं
धैर्य और साहस से अवरोधों से पार पाएं
व्यथित और दुःखीजनों के साथ खड़े हो जाएं
जीवन में हम नित नई सफलता लाएं
सच में कविता से हम ऐसा सबकुछ कर जाएं…

खुद पर जब होने लगे हमें विश्वास
जीवन मूल्यों का हम न होने दें ह्रास
हम भी अच्छा इंसान बन जाते काश!
हम सतत दौड़ते रहें, भले ही टूट रही हो सांस
सपनों को पूरे होने की मन में जगी हो आस
हमारे अहंकार का हो जाता है नाश
जीवन में खुशहाली का होने लगे आभास
सच में कविता दिखने लगती, हमें अपने आसपास…
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★★★★★★

कठिन साधना…

कड़े परिश्रम और कठिन साधना से
विपरीत दिशा में बह रही धारा का
रुख अपनी ओर मोड़कर
पत्थरों को छेनी हथौड़ी से तोड़कर
हम पथ निर्माण कर सकते हैं
निश्चित ही हम सफलता का
मुकाम हासिल कर सकते हैं
पर इसके लिए रखना होगा
हमें धैर्य और खुद पर करना होगा विश्वास
और लगाना होगा अर्जुन की तरह
चिड़िया के आँख पर सटीक निशान
तभी बन सकेगी हमारी पहचान
और तब सूरज की तरह चमकेगा
आसमान में हमारा नाम
इतिहास में दर्ज होगा हमारा काम…

कभी कुपथ पर चलने की कोशिश न करें
अनीति पर चलने से
बहुत जल्द मिलती है कामयाबी
पर असत्य पर मिली सफलता के पश्चात
जीवन में आती है खराबी
इसीलिए मंजिल पाने में बनना न हमें बहुत अधीर
शनैः-शनैः बढ़ाते रहने है हमें कदम
अवरोध उत्पन्न करने लोग पहाड़ खड़े करेंगे
हम अपने लक्ष्य पाने को हर चक्रव्यूह काट कर बढ़ेंगे…

हम सत्य का अनुगमन करते चलेंगे
समय भी हमें देगा अवसर
हम बता देंगे बिल्कुल न हैं हम कमतर
और एक दिन सफल लोगों में
मेरा भी नाम होगा शुमार
कदम में खुशियाँ आएंगी अपरंपार
सफलता आएगी हमारे घर-द्वार
हमारा सुखी होगा घर-संसार
बस! कड़े परिश्रम और कठिन साधना पर
करना होगा ऐतबार…
★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★

जब हम गाँव में रहते थे…

जब बचपन में हम गाँव में रहते थे
हम भाई-बहन छोटे-छोटे थे
दादा-दादी, चाचा-चाची
बाबू जी व माँ के साथ रहते थे
हमारे गाँव में अधिकतर घर
खपरैल और छप्पर के थे
न पक्की सड़कें थी
न ही पक्के मकान थे

वर्षा ऋतु में कई कई दिनों तक
घनघोर बरसात होती रहती थी
खेत-ताल-पोखरे सब लबालब भर जाते थे
हर घर में महीनों के राशन पानी का
इंतजाम पहले ही कर लिया जाता था
अरहर की दाल और परवर-गोभी
आदि की सब्जियां
मेहमान के आने पर ही बनते थे
चार-पाँच किलोमीटर पैदल चल कर
हम भाई-बहन पढ़ने जाते थे
ढिबरी की रोशनी में ही
गणित के सवाल लगाते थे
और अन्य विषय की
पूरी कॉपी याद कर जाते थे…

बमुश्किल किसी के यहाँ
लालटेन की रोशनी दिखाई पड़ती थी
घुघरी खा कर कितने खुश रहते थे
पर कितने सुकून से जीते थे
बड़े होने पर शहर आ गए
ईंट, गारे, सीमेंट आदि से बड़े घर बन गए
पर वो सुकून और चैन
न जाने कहाँ गायब हो गए…
★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★

नई परिभाषा…

शनैः-शनैः संवेदना की पीठ पर
नागफनी उग आएगी
संस्कृति और संस्कार के क्षेत्रफल में
दूब घास का कब्जा हो चुका होगा
जिसे कितना भी नष्ट करना चाहे
वो फिर पनप जाएगी
हम एक नई परिभाषा गढ़ रहे होंगे
जिसमें मानवतावादी दृष्टिकोण को
रेतीले मरुस्थल में घसीट कर
रिश्तों को लहूलुहान कर
नई फसल का उत्पादन होगा
जिसमें सिर्फ़ खुद को
बढ़ने और स्थापित करने
का अचूक नुस्खा लिखा होगा
कविताओं की एक नई विधा जन्म लेगी
जिसमें समर्पण, त्याग और तपस्या की पौध
बौने से नजर आएंगे
तात्कालिक व्यवस्था में
लोकतंत्र की खुशबू महकने की बजाय
कंपकंपाती महसूस होगी
हमारे विचारों की रंगत
काली पड़ चुकी होगी
ज्ञान के सारे केंद्रबिंदु धन लोलुपता से
संक्रमित होकर एक नई परिभाषा गढ़ेंगे
शब्दों का पैनापन शायद कहीं गुम हो चुका होगा…
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मौलिक एवं अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★★★★★

उक्त मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ हैं।

सादर
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
ग्राम-कैतहा, पोस्ट- भवानीपुर
जिला-बस्ती 272124 (उ. प्र.)
मोबाइल 7355309428
【साहित्यिक परिचय】
नाम– लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
पिता–स्व. श्री अमर नाथ लाल श्रीवास्तव
माता–स्व. श्रीमती लीला श्रीवास्तव
स्थायी पता–ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर, जिला-बस्ती
272124 (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा–बी. एससी., बी. एड., एल. एल बी., बी टी सी.
(शिक्षक, साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता)
व्यवसाय– शिक्षण कार्य
सामाजिक कार्य-
सचिव–जॉगर्स क्लब बस्ती (अवैतनिक)
सदस्य–प्रगतिशील लेखक संघ-बस्ती
लेखन की विधा–कविता/कहानी/लघुकथा/लेख/व्यंग्य/बाल साहित्य

मोबाइल 7355309428
ईमेल laldevendra204@gmail.com

रचनाओं का प्रकाशन–
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पत्रिका– (अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय)

छत्तीसगढ़ मित्र, राजभाषा, भाषा, अक्षरा, संवाद, संकल्य, हिमप्रस्थ, साहित्य अमृत, सरस्वती सुमन, मुद्राराक्षस उवाच, शैलसूत्र, हरिगंधा, समय सुरभि अनंत, समीरा, शोधादर्श, वीणा, नागफनी, ग्रामीण चहल पहल, विश्वगाथा, पॉवर ऑफ वन, स्पर्श समकालीन, गौरवशाली भारत, छत्तीसगढ़ स्पेक्ट्रम, प्रगतिशील साहित्य, साहित्य परिक्रमा, सेतु, नव निकष, संवदिया, सर्वभाषा, साहित्य प्रीत, अभिनव प्रयास, चाणक्य वार्ता, आलोक पर्व, साहित्य समय, नेपथ्य, हिंदुस्तानी ज़बान, दूसरा मत, साहित्य सरोज, चंद्रदीप्ति, हिंदुस्तानी युवा, आत्मदृष्टि, साहित्य संस्कार, प्रणाम पर्यटन, लोकतंत्र की बुनियाद, सत्य की मशाल, क्षितिज के पार, हिन्दी कौस्तुभ, आरोह अवरोह, यथार्थ, उजाला मासिक, संगिनी, सृजन महोत्सव, साहित्य समीर दस्तक, सुरभि सलोनी, अरुणोदय, हलन्त, कंचन वर्ल्ड, मेरी निहारिका, हॉटलाइन, फर्स्ट न्यूज़, गुर्जर राष्ट्रवीणा, कर्मनिष्ठा, नया साहित्य निबंध, शब्द शिल्पी, साहित्य कलश, कर्तव्य चक्र, हॉटलाइन, देव चेतना, प्रकृति दर्शन, टेंशन फ्री, द इंडियन व्यू, साहित्य वाटिका, गोलकोण्डा दर्पण, अपना शहर, पंखुड़ी, अविरल प्रवाह, ध्रुव निश्चय वार्ता, कला यात्रा, आर्ष क्रांति, कर्म श्री, मधुराक्षर, साहित्यनामा, सोच-विचार, भाग्य दर्पण, सुबह की धूप, अरण्य वाणी, नव किरण, तेजस, अक्षय गौरव, प्रेरणा-अंशु, साहित्यञ्जली प्रभा, कविताम्बरा, मरु-नवकिरण, संपर्क भाषा भारती, सोशल संवाद, राष्ट्र-समर्पण, रचना उत्सव, मुस्कान-एक एहसास, साहित्यनामा (द फेस ऑफ इंडिया), खुशबू मेरे देश की, प्रकृति मंथन, माही संदेश पत्रिका, हिंदी की गूँज, पुरुरवा, समर सलिल, सच की दस्तक, रजत पथ, द अंडर लाइन, जगमग दीपज्योति, साझी विरासत, आदित्य संस्कृति, इंडियन आइडल, साहित्य कुंज, सृजनोन्मुख, सोशल संवाद, समयानुकूल, अनुभव, परिवर्तन, चिकीर्षा, मानवी, सहचर, राष्ट्र समर्पण, प्रतिध्वनि, शबरी, शालिनी, विश्वकर्मा वैदिक समाज, कौमुदी, साहित्यरंगा, साहित्य सुषमा, काव्य प्रहर, काव्यांजलि कुसुम, संगम सवेरा, हिंदी ज्ञान-गंगा, एक कदम, संगम सवेरा, स्वर्णाक्षरा काव्य धारा, अविचल प्रभा, काव्य कलश, नव साहित्य त्रिवेणी, भावांकुर, अवसर, पृथक, तमकुही राज, विचार वीथिका, लक्ष्य भेद, साहित्य अर्पण, सुवासित, तेजस, युवा सृजन, जय विजय, जयदीप, नया गगन आदि पत्रिकाओं में 500 से कविताएँ, कहानियाँ व लघुकथाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और सतत प्रकाशित हो रही हैं।

बाल साहित्य (पत्रिका एवं समाचार पत्र)–अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय

अक्षरा, साहित्य अमृत, सोच विचार, देवपुत्र, बाल किलकारी, उजाला मासिक, बच्चों का देश, चिरैया, बच्चों की प्यारी बगिया, आलोकपर्व, बाल किरण, बचपन, किलोल, चहल पहल, पायस, नटखट चीनू, बाल मंथन, प्रेरणा-अंशु, कला यात्रा, माही संदेश, खुशबू मेरे देश की, सृजन महोत्सव, साहित्य अर्पण, भावांकुर, तेजस, नव त्रिवेणी साहित्य, साहित्य उदय, रजत पथ, जिज्ञासा, हरिभूमि, पंजाब केसरी, जनवाणी, दैनिक नवज्योति, विजय दर्पण टाइम्स, हम हिंदुस्तानी, लोकोत्तर, बाल पत्रिकाओं में 100 से अधिक बाल कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं व लगातार प्रकाशित हो रही हैं।

समाचार पत्र–(अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय)

(साप्ताहिक समाचार पत्र)

हिंदी एब्रॉड (कनाडा), हम हिंदुस्तानी यूएसए (अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया), सत्य चक्र, आकोदिया सम्राट, निर्झर टाइम्स, हिलव्यू समाचार, रविपथ, कोलकाता सारांश, भदैनी मिरर, स्वैच्छिक दुनिया, अमर तनाव, शाश्वत सृजन, प्रिय पाठक, देवभूमि समाचार, बलिया एक्सप्रेस,
सच की तोप, घूँघट की बगावत, राइजिंग बिहार, मार्गोदय।

(दैनिक समाचार पत्र)

विजय दर्पण टाइम्स, प्रभात खबर, पंजाब केसरी, लोकोत्तर, हरियाणा प्रदीप, प्रभात दस्तक, दैनिक जनकर्म, दैनिक किरण दूत, दैनिक क्रांतिकारी संकेत, नवीन कदम, राष्ट्रीय नवाचार, मयूर संवाद, प्रखर पूर्वांचल, दैनिक अश्वघोष, दैनिक युगपक्ष, दैनिक स्वर्ण आभा, कर्म कसौटी, डॉटला एक्सप्रेस, दिन प्रतिदिन, इंदौर समाचार, दैनिक नव ज्योति, घटती घटना, श्री राम एक्सप्रेस, दैनिक संपर्क क्रांति, स्टार समाचार, द वूमेन एक्सप्रेस, दैनिक कर्मदाता, दैनिक इमोशन, आप अभी तक, दैनिक अयोध्या टाइम्स, बिंदू प्रकाश, वेलकम इंडिया, जनमत की पुकार, युग जागरण, पुष्पांजलि टुडे, सहजसत्ता, हमारा मेट्रो, आधुनिक राजस्थान, स्वतंत्र दस्तक, गर्वित भारत, एक्शन इंडिया, अक्षर विश्व, अग्निवर्षा, दिव्य हिमगिरि, लोकसदन, उज्जैन सांदीपनि, संजीवनी समाचार, तरुण प्रवाह, विनय उजाला आदि साप्ताहिक व दैनिक समाचार पत्रों में 500 से ज़्यादा कविताएँ, कहानियाँ व लघुकथाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं व लगातार प्रकाशित हो रही हैं।

काव्य संग्रह—

(साँझा काव्य संकलन)

“साहित्य सरोवर”, “काव्यांजलि”, “बंधन प्रेम का” “अभिजना”, “अभीति”, “काव्य सरोवर”, “निभा”, “काव्य सुरभि”, “अभिजना”, “पिता,”कलरव वीथिका” “इन्नर”, “आयाति”, “नव किरण”, “चमकते कलमकार”, “मातृभूमि के वीर पुरोधा”, “रंग दे बसंती”, “शब्दों के पथिक”, “कलम के संग-कोरोना से जंग” प्रकाशित व लगभग छह साँझा काव्य संकलन, एक लघुकथा साँझा संकलन प्रकाशनाधीन।

(एकल काव्य संग्रह)–

1- “मृत्यु को पछाड़ दूँगा” (काव्य संग्रह – प्रकाशनाधीन)
2- “वो सुबह तो आएगी” (काव्य संग्रह – प्रकाशनाधीन)
3- “सूरज की नई जमीन” (कहानी संग्रह – प्रकाशनाधीन)

बाल कविता संग्रह–
1- “प्यारा भारत देश हमारा” (प्रकाशित)
2- “बच्चे मन के सच्चे” (प्रकाशनाधीन)

सम्मान– राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कलमकार मंच द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित 2019-20 के ‘कलमकार पुरस्कार’ में तृतीय स्थान के लिए चयनित, “साहित्य सरोवर”, साहित्य साधक अलंकार सम्मान-2019, “काव्य भागीरथ सम्मान”, “अभिजना साहित्य सम्मान”, “अभीति साहित्य सम्मान”, “मधुशाला काव्य सम्मान”, “वीणा वादिनी सम्मान-2020″, ” काव्य श्री सम्मान-2020″, “काव्य सागर सम्मान” सहित तीन दर्जनों से अधिक साहित्यिक सम्मान व प्रशस्ति पत्र व कई सामाजिक संस्थाओं व संगठन द्वारा सम्मानित।

संपादन–

(पत्रिका)

1- “नव किरण” मासिक पत्रिका का संपादन।
2- “बाल किरण” मासिक पत्रिका का संपादन।
3- “तेजस” मासिक पत्रिका का सह-संपादन।

(पुस्तक)

1- राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन–
“नव किरण”, “नव सृजन” व “सच हुए सपने” का संपादन।
2- एकल काव्य संग्रह–
“प्रेम पीताम्बरी”, “दरख़्त की छांव”, “अनूठे मोती”, “जीवन धारा”, “अनुभूति-1”, “अनुभूति-2,” व “देहरी धरे दीप” का संपादन।
3- एकल कहानी संग्रह- “प्रेम-अंजलि” का संपादन।

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