लघुकथा: एक सवाल
‘मैंने कोई गलती नहीं की इनसे शादी करके। आखिर हम दोनों ने मनपसंद शादी की है।’ अनुराधा मीटिंग में बड़ी हिम्मत के साथ अपनी बात रखते हुए बैशाखी के सहारे खड़ी हुई।
‘मुझे भी कोई ऐतराज नहीं है अपने किये पर। मैंने अच्छी तरह सोच-विचार करके ही अनुराधा का हाथ थामा है।’ बचपन में ही अपनी एक आँख व एक पैर खो चुके सुधांशु ने कहा।
दोनों की बातें सुन दोनों के परिवार वाले व मीटिंग में उपस्थित में से किसी ने कुछ नहीं कहा। सब एक-दूसरे का मुँह ताकते रह गये। तभी अनुराधा बोली- ‘आज मुझे अपाहिज होने का कोई दुख नहीं; सुधांशु जैसा जीवनसाथी जो मिला है। मुझे अपने माँ-बाप और भाइयों से भी कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। पर मेरी वजह से उन्हें दुःख हुआ होगा, तो मैं उनसे क्षमा चाहती हूँ। लेकिन आज इस जाति-बिरादरी व समाज के लोगों से मेरा एक सवाल है कि इनमें से; या फिर यूँ कहूँ कि आप सब में से किसी ने भी मुझसे ब्याह करने के लिए सिर्फ इसलिए तैयार नहीं हुआ कि मैं एक अपाहिज लड़की हूँ। पर मैं सुंदर भी तो हूँ। पढ़ी-लिखी हूँ। मेरे अपंग होने में मेरा क्या कसूर है ? अगर आप में से कोई यह नेक काम कर लेता तो, यह नौबत नहीं आती। जब आज मैं अपने ही जैसे एक एजुकेटेड शख्स; जो दूसरी जाति से सम्बंध रखता है, को अपना जीवनसाथी बना लिया तो मुझ पर हर तरफ से उँगलियाँ उठ रही है।’ जोर-जोर से बोलते हुए अनुराधा का गला भर्राने लगा। आत्मविश्वास से भरी हुई अनुराधा अपनी जगह पर बैठ गयी।
अनुराधा की बातों पर किसी ने भी चूँ नहीं किया। तभी सुधांशु ने अनुराधा को उसकी बैशाखी थमायी। दोनों एक साथ अपनी-अपनी बैशाखी लिये चलने लगे। मीटिंग में बैठे लोग अनुराधा के सवालों का हल ढूँढ पाने में असमर्थ थे।
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टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”
व्याख्याता (अंग्रेजी)
घोटिया-बालोद (छ.ग.)
सम्पर्क : 9753269282.