उलफ़त का तिलिस्म
ये तुम्हारी उलफ़त का तिलिस्म नहीं तो और क्या है?
तुम्हारे हसीं चेहरे को देखा करूं…
तुम्हारे लबों को चूम लिया करूं…
तुम्हें अपने आगोश में ले लिया करूं…
तुम्हारे शराबे उलफ़त का लुत्फ़ उठाया करूं…
ये तुम्हारी उलफ़त का तिलिस्म नहीं तो और क्या है?
तुम्हारे चेहरे को पढ़ लिया करूं…
तुम्हारे दिल की धड़कन को महसूस किया करूं…
तुम्हारी गैरहाजरी में होने का एहसास किया करूं…
तुम्हारी रूह की आवाज़ को सुन लिया करूं…
ये तुम्हारी उलफ़त का तिलिस्म नहीं तो और क्या है?
तुम्हारे ख़यालों में खोया रहूं…
तुम्हारे ख़्वाबों मशरूफ़ रहूं…
तुम्हारी तस्वीर को आईने में देखा करू…
तुम्हारी आवाज़ को ग़ज़लों में सुना करू…
ये तुम्हारी उलफ़त का तिलिस्म नहीं तो और क्या है?
तुम्हारे साथ तन्हाई में गुफ़्तगू किया करूं…
तुम्हारे ख़ुमार में चकनाचूर रहूं…
तुम्हारे साथ रस्मे उलफ़त किया करूं…
तुम्हारे साथ रिश्ता-ए-उलफ़त निभाया करूं…
समीर उपाध्याय उर्फ़ ‘ललित’
मनहर पार्क: 96/ए
चोटीला: 363520
जिला: सुरेंद्रनगर
गुजरात
भारत
92657 17398
s.l.upadhyay1975@gmail.com