सरोगेसी….सरोगेट मदर….!!
कहा जाता है कि मातृत्व एक खूबसूरत एहसास है,बच्चे की तोतली जुबान से पहली बार माँ शब्द सुनना, किसी भी स्त्री के लिए सबसे सुखद एहसास होता है,जिसे एक स्त्री कभी भूल नहीं सकती है।
मातृत्व पर कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा,जन्मदात्री और पालनहार के रूप में विभेद अवश्य हुए,जैसे देवकी कृष्ण की जन्मदात्री और यशोदा पालनहार माँ के रूप में जग में विश्रुत हैं।
आज के आधुनिक समय में समाजिकता को दरकिनार कर वैज्ञानिकों ने माँ जैसे पावन रिस्ते को धन के माध्यम से इसप्रकार परिवर्तित कर दिया है कि बच्चे के जन्म की प्रक्रिया पूरे तरीके मेकेनिकल हो गई है।
डॉ यशोदा महात्रे कहती हैं-“गर्भ एक oven की तरह है,इसमें काला केक बेक करना है या सफेद वनीला केक यह आपकी मर्जी पर है।अब गहरे श्याम वर्ण की लड़कियां भी विदेशी नाम-नक्श के गुलाबी बच्चे को जन्म दे सकती हैं”।
सरोगेसी लैटिन भाषा के शब्द सबरोगेट से बना है,जिसका अर्थ है किसी दूसरे को अपने काम के लिए नियुक्त करना।
परिभाषिक रूप से कहें तो सरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसमें एक स्त्री किसी अन्य स्त्री के बच्चे को अपने कोख में नौ महीने पालती है एवं जन्मोपरांत उसे उसके माता-पिता को सौंप देती है।
सरोगेसी का प्रारम्भ महाभारत काल में ही हो चुका था,कृष्ण के भ्राता बलराम का जन्म भी इसी प्रक्रिया से हुआ था,जब कंश के डर से देवकी ने रोहिणी के गर्भ में उनका प्रतिरोपण कर दिया।
बाइबिल में भी इस सरोगेसी की प्रक्रिया का वर्णन मिलता है।अब्राहम औऱ सारा ने अपने बच्चे के लिए अपनी दासी हैगर की कोख किराये पर ली।
आधुनिक समय मे सरोगेसी का प्रारम्भ सर्वप्रथम 1976 में अमेरिका में हुआ,भारत मे 2004 में यह विधि सामने आई जब एक 47 वर्षीय माँ ने अपनी बांझपन से पीड़ित बेटी के लिए उसके बच्चे को अपनी कोख में रखकर,दो जुड़वा बच्चों की नानी बनी।
एक प्रश्न हमेशा सुना जाता है,बचपन में हम सब इसपर लेख भी लिख चुके हैं,,,, विज्ञान वरदान या अभिशाप…
हाँ विज्ञान की खोज सरोगेसी कुछ हद तक यदि बांझ स्त्रियों के लिए वरदान साबित हुई है तो कुछ दंपतियों के लिए अभिशाप भी।
आजकल सेरोगेसी जरूरत नहीं बल्कि फैशन बनते जा रहा है। एक वक्त था कि जरूरत पड़ने पर या मजबूरी में ही जब कोई स्त्री मां नहीं बन पाती थी तब सरोगेसी का सहारा लिया जाता था। आज स्त्री अपना समय और शरीर खराब नहीं करना चाहती हैं। मोटे रकम की एवज में जरूरतमंद स्त्रियां इस काम को और भी सुलभ करती जा रहीं हैं।
सरोगेसी जहां एक बांझ स्त्री को माँ होने का एहसास प्रदान कर रही वही,कुछ सेलेब्रिटीज़ इस विधि को मात्र अपने शौक और फिगर को बिगड़ने से बचाने के लिए प्रयोग कर रही,इससे कई दम्पतियों का वैवाहिक जीवन भी अशांत होता जा रहा है,रिस्ते टूटने के कगार पर आते जा रहे हैं।
सरोगेसी में सरोगेट माँ का शोषण भी हो रहा है,समाजिक छींटाकसी का सामना भी उन्हें करना पड़ रहा है,साथ ही लड़की पैदा करने पर कई बार ऐसा होता है कि उसके असली माता पिता बच्चे को अपनाने से भी मना कर देते हैं,क्लीनिकों द्वारा दम्पतियों से मोटी रकम ली जाती है,और जिस स्त्री की कोख किराये पर ली जा रही होती है उसे कम मूल्य देंने वाले केसेस भी सामने आ रहे हैं।
यदि इस विषय पर विचार नहीं किया गया तो धीरे-धीरे
मातृत्व बिकाऊ हो जाएगी। इसलिए इस पर भी एक कानून बनना चाहिए। आज जरूरी है कि मातृत्व को नजरअंदाज ना करके सेरोगेसी को मात्र समस्या के निदान के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिए,न कि फैशन के रूप में।
नव्या मिश्रा….