स्वाधीनता 75
-छत्तीसगढ़ लोक
लोक शैली में गांधी के कार्य को याद करते हुए द्वारिकाप्रसाद ‘विप्र’ लिखते हैं-
●’देवता बनके आये गांधी
देवता बनके आये
अड़बड़ अटपट काम करे तैं
घर घर अलख जगाये
देवता बनके आये गांधी…
रामकृष्ण अवतार ल जानिन
रावण कंस ल मारिन
हमर देस ल राक्षस मन सो
लड़ लड़ दुनो उबारिन
चक्र सुदर्शन धनुष बाण का
रहिन दुनो झनधारे
ते ह सोझे मुंह म कहिके
अंगेजन ल टारे
सटका धरके पटकु पहिरे
चर्चिल ल चमकाये
देवता बनके आये गांधी…
हमर देस के अन्न ल धन ल
जम्मों जम्मों लुटिन
परदेशियन के लड़वाये
भाई ले भाई छुटिन
देस ल करके निपट निहत्था
उल्टा मारय शेखी
बोहे गुलामी करत रहेन हम
उंकरे देखा देखी
तैं आँखी ल हमरे उघारे
जम्मों पोल बताएं
देवता बनके आये गांधी..
तोर करनी ल कतेक बताबो
शक्ति नइये भारी
देस विदेस गांव गांव मा
तोर चरखा है भारी
तय उपास कर करके
मौनी बनके करे तपस्या
अंगरेजी अवगुन ला मेटे
टारे सबो समस्या
साठ बछरले धरे अहिंसा
पथरा ल पिघलाये
देवता बनके आये गांधी
गांधी देवता बनके आये!’
छत्तीसगढ़ में ‘देवी जसगीत’ शक्ति उपासना का रूप है।इस गीत को यहाँ का लोक शक्ति सन्धान के भाव से गाते हैं।’राम कि शक्तिपूजा ‘में जैसे निराला ने भक्ति को देशभक्ति का रूप दिया था !यहां छत्तीसगढ़ का लोकजीवन भी गांधी के मनुष्यत्व में देवत्व को देख रहा है।गांधी को छत्तीसगढ़ का लोकजीवन देवता के रूप में याद कर रहा है।यह देवता अलौकिक नहीं लौकिक है।इसलिए अंधविश्वास का अतिक्रमण कर लोकविश्वास का रूप है।
-गांधी छत्तीसगढ़वासियों के लिए राम और कृष्ण के समान है।जिसने रावण और कंस के समान आततायी का विनाश किया।यहां रावण और कंस ब्रिटिश सत्ता का प्रतीक पात्र है जबकि राम और कृष्ण का विजय राष्ट्रीय मुक्तिसंग्राम में साधारण भारतीय के विजय का रुप है।
यह गीत अपने विस्तार में चर्चिल तक जाता है।वही ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल जिसने ‘अधनंगे फ़क़ीर ‘कह कर गांधी का मजाक उड़ाया था ।लेकिन गांधी साधारण में असाधारण को रचने वाले विरल नायक थे।गांधी द्वितीय गोलमेज में ‘सटका धरके पटकु पहिरे’बराबरी में चर्चिल से वार्ता करते हैं!छत्तीसगढ़ में ‘सटका ‘लाठी को और ‘पटकु’ गमछे को कहा जाता है।यह दृश्य सामान्य के वैभव और सत्य के गांधीवादी पाठ का अनभय रूप है।इसलिए गांधी इंसान होकर भी देवता कहलाएं।जिसका वैश्विक भावप्रसार खान अब्दुल गफ्फार खान,अल्बर्ट आइंस्टीन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, हो ची मिन्ह,आंग सान सू की,नेल्सन मंडेला,दलाई लामा ,बराक ओबामा और अनगिनत शख्सियत तक दिखता है।
‘इस गीत के अगले बन्ध में अंग्रेजों के आर्थिक शोषण और दमन का यथार्थवादी चित्रण है।’फूट डालो और राज करो’ कि नीति का भंडाफोड़ है।अहिंसा का गौरवगान है।भारतीयों को जगाने का संकल्प है। ‘पथरा ल पिघलाएं’पत्थर के समान कठोर और हृदयहीन ब्रिटिश शोषक सत्ता से आजादी की जलधार निकालने वाले महामानव थे गांधी।’ साठ वर्ष के गांधी की महिमा का दुर्लभ रूप है यह लोक अभिव्यक्ति!
जब भी इस गीत को गुनगुनाता हूं तब लगता है आजादी अतिरेक नहीं विनम्र होने का मातृभाव है।लोकबोली की यह अर्थसम्पदा बची रहे यही कामना है।
~भुवाल ~