November 24, 2024

भारत-कल्प : हमारा संकल्प

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डा देवेन्द्र दीपक
साहित्यकार,
शिक्षाविद्,संस्कृतिकर्मी
( पूरी पोस्ट पढ़ने का अनुरोध)

पूरा देश अमृत महोत्सव
मना रहा है । सब तरफ उत्साह का वातावरण है । एक नागरिक होने के नाते मैं भी उत्साह से भरा हूँ । मेरा उत्साह कुछ अधिक ही है । कारण यह कि मैंनें पंद्रह साल पराधीन भारत में भी गुजारे हैं। छात्र जीवन में आजादी के नारे भी लगाए हैं और गुलामी के दिन भी देखे हैं । विभाजन की विभीषिका देखी,उजडते परिवार देखे । लेकिन उस समय की तुलना में देखे तो देश ने हर क्षेत्र में विकास के नये प्रतिमान रचें हैं ।और यह सब लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखते हुए हुआ । सभी पूर्ववर्ती सरकारों ने यथामति अपनी भूमिका निभाई। अनेक कमियों के रहते हुए भी मेरा भारत महान है । अभी हमारी विकास की यात्रा अधूरी है।
अमृतमहोत्सव है तो खूब आनंद से मनाएं, लेकिन थोड़ा रुक कर सोचें कि हम से कहाँ क्या चूक हुई । 15 अगस्त 1947 को हम स्वतंत्र हुए ।स्वतंत्रता को हमने स्वच्छंदता मान लिया । और स्वछन्दता का आलम यह है कि आज नियम कानून के पालन करने का संस्कार ही हम नागरिकों में नहीं है ।
आज जगह जगह छापे पड रहे है । छोटे से छोटे कर्मचारियों के पास करोडों की सम्पत्ति निकल रही है । अफसर नेता सब बेलगाम ! शासन का भय नहीं । आत्मानुशासन की स्थिति नहीं । चूक पहले दिन से ही हुई । नेहरु जी से जब किसी ने भृष्टाचार की शिकायत की तो उन्होंने उसे गम्भीरता से नहीं लिया । कह दिया – पैसा तो देश में ही रहता है।
‘मेरा देश,’ ‘ देश के प्रति मेरी जिम्मेदारी’ ,ऐसे भाव को जगाने वाली व्यवस्था हमने खडी ही नही की । अधिकार – बोध जिस अनुपात में बढा ,उससे अधिक अनुपात में दायित्व-बोध कम होता गया । एक कडवा सच — हर क्षेत्र में माफिया, हर योजना के क्रियान्वयन मे घोटाला ,हर नियुक्ति में जातिवाद और दलीय हित ! स्वदेशी की हवा निकाल दी ।कभी एच एम टी की बनी घड़ी की बड़ी धूम थी । प्रतीक्षा करनी पड़ती थी । अब विदेशी वस्तुओं के उपयोग पर गर्व!
अमृतमहोत्सव एक अवसर है कि हम अपने इतिहास से सीख लें और जहाँ जहाँ जो संशोधन देश के व्यापक हित में आवश्यक हों ,उस दिशा मैं पूरी निष्ठा और संकल्प के साथ आग बढें । देश से जुड़ी किसी भी समस्या पर निर्णय से पूर्व उस पर व्यापक समयबद्ध चर्चा हो । चर्चा में समाजशास्त्र,मनोविज्ञान, विधि, इतिहास, अर्थशास्त्र , शिक्षा और संस्कृति के विद्वानों की सहभागिता बढे।
राष्ट्र का पौरुष जगे , स्वदेशी के प्रति हम आग्रही हों । नैतिकता के शव पर खडा आर्थिक विकास भारत को नहीं चाहिए !
भारत में रहना ,भारत में खाना और भारत से ही द्रोह ! आर्थिक समृद्धि के लिए “इंडेक्स’! देशभक्ति के लिए ‘इंडेक्स ‘ क्यों नहीं । ‘गरीबी की रेखा के नीचे ‘ विषय पर बहस ,लेकिन ‘नैतिकता की रेखा के नीचे ‘ को लेकर विचार क्यों नहीं ।
देशभक्ति है तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन— ! यह लेकिन बहुत भयावह है ।ध्यान रखिए कि देशभक्ति में धर्मनिरपेक्षता
में ‘इनबिल्ट’ है ,लेकिन धर्मनिरपेक्षता का जो छद्म हम देख रहे हैं ,उसमें देशभक्ति का कोई भाव नहीं दिखाई देता ।
भारत का कल्प, अमृतमहोत्सव पर यही हमारा संकल्प! अराजकता और अराष्ट्रीयता की नुकीली कीलें देश की अस्मिता को जहाँ भी लहूलुहान कर रही हैं , यथासाध्य उन्हें हथौड़ी से ठोक दिया जाए या जम्बूर से निकाल दिया जाए । ऐसा होगा तो निहित तत्व कुपित होंगे। वह सांप की तरह फुंकारेंगे, लेकिन उसके लिए हमें गरुड बनने की तैयारी रखनी होगी ।
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डा देवेन्द्र दीपक
डी-15 शालीमार गार्डन
कोलार रोड
भोपाल -462042
फोन 9425679044

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