ग़ज़ल
1
जब अरमान फलेगा तो।
मन के साथ चलेगा तो।
आँखें जी भर सो लेगी,
सूरज, शाम ढलेगा तो ।
पत्थर भी कतरा-कतरा,
आख़िरकार गलेगा तो ।
रिश्ता गिरकर संभलेगा,
गर व्यवहार पलेगा तो ।
होगा सब पर हक सच का
झूठा हाथ मलेगा तो ।
मिलकर, मिल न पायेगा,
मौका दूर टलेगा तो ।
2
कहूँ सच बात तो मुश्किल।
बता दूँ झूठ तो मुश्किल।
किसी के साथ रहकर भी,
छुपा लूँ हाथ तो मुश्किल।
कभी इक जीत के बाज़ी,
मना लूँ हार तो मुश्किल।
कहीं पहचान वालों से,
रहूँ अंजान तो मुश्किल।
सफ़र की दूरियों से डर,
करूँ आराम तो मुश्किल।
सभी के साथ अपनों सा,
रखूँ व्यवहार तो मुश्किल।
3
इतने हो बेगाने क्या।
हमसे हो अंजाने क्या।
आँख झुकाये बैठे हो,
रूठे हो दीवाने क्या ।
रुख़ पर थोड़ा गुस्सा है,
आये हो समझाने क्या।
खट्टे- मीठे जीवन की,
बातें हो पहचाने क्या ।
होश लिए हो रात ढले ,
टूट गए पैमाने क्या ।
4
चलकर भी रस्ते ठहरे हैं।
मंज़िल पर जिनके पहरे हैं।
लौट गए जो आकर खाली,
अब उनके उतरे चहरे हैं।
रखते हैं तल्ख़ी बातों में,
घाव वही देते गहरे हैं ।
हो कैसे सुनवाई उनकी,
मुंसिफ ही जिनके बहरे हैं।
जीत गए जो बाजी अपनी,
उनके ही परचम फहरे हैं।
5
हाथ वो अपने छुपा देता है।
रोज़ जो ज़ख्म नया देता है।
मैं यहाँ दोस्ती निभाता हूँ,
वो वहाँ मुझको दग़ा देता है।
होश में रहना मनाही उसकी,
जो बहकने की रज़ा देता है।
बात निकली तो पहुँच जाएगी,
क्यों ज़माने को हवा देता है ।
जो दवाओं से नहीं हो पाया,
वो दुआओं से बना देता है।
6
सहारे वो सारे चले जायेंगे।
सभी वो हमारे चले जायेंगे।
रहेंगे यहाँ जब तलक रात बाकी,
सुबह तक सितारे चले जायेंगे ।
यहाँ वक़्त अपना न ज़ाया करो,
ये सारे नज़ारे चले जायेंगे ।
नदी को पता ही रहा ये कभी भी,
कहाँ तक किनारे चले जायेंगे।
करो न हमारी कहीअनसुनी तुम,
तुम्हें हम पुकारे चले जायेंगे ।
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन454441
मो 9893119724