कहानी : दलाल
विश्वजीत:” कल्याण पढ़ाई महत्वपूर्ण है ज़िंदगी में।”
कल्याण:” हां। सही है विश्वजीत तुम्हारा। लेकिन परिस्थिति पढ़ाई करने जैसी नहीं है। थोड़ी पढ़ाई हुई है अच्छा,बुरा समझने इतनी। व्यवसाय करने जितनी।”
विश्वजीत: “स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद तू स्पर्धा परीक्षा की तयारी करके अच्छा पद हासिल कर सकता है।”
कल्याण: “विश्वजीत मुझे व्यवसाय में रुचि है।”
विश्वजीत: “कौन-सा व्यवसाय करेगा।”
कल्याण:”तुम्हारे मन में है कोई कल्पना हो तो बता दो।”
विश्वजीत:”तुझे जो अच्छा लगे वही कर। लेकिन व्यवसाय की शुरुआत कम पैसों से कर।”
कल्याण: “मेरे पास पैसे नहीं है ज्यादा। परिवार में बड़ा मैं ही हूं। मां,बाप की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है। जमीन भी नहीं है मुझे। लेकिन मुझे ज़िंदगी में बदलाव करना है।”
विश्वजीत: “व्यवसाय की शुरुआत कैसे करेगा?”
कल्याण: “फाइनेंस करके रिक्शा लेना चाहता हूं।”
विश्वजीत: “अच्छा है, लेकिन हफता समय पर भरना होगा, नहीं तो फाइनेंस के कर्मचारी रिक्शा लेकर जाएंगे। सोच-समझकर निर्णय ले।”
कल्याण: “हां।”
रिक्शा लिया, व्यवसाय की अच्छी शुरुआत हुई। सब ठीक-ठाक चल रहा था, ज़िंदगी अच्छी गुज़र रही थी।जो सपने देखे थे,वे नज़दीक दिख रहें थे। लेकिन कुछ ही दिनों में समस्या से सामना हुआ। क्या करे समझ में नहीं आ रहा था। उसी समय फोन।
“हॅलो। कौन-है ?”
“पहचाना नहीं।”
“आवाज तो सुनी हुई है, पहचान की है, लेकिन नाम याद नहीं आ रहा।”
“मैं हूं विश्वजीत।तुम्हारा मित्र।”
“अच्छा। पहचाना। बहुत दिनों बाद फोन।”
“हां।काम की व्यस्तता की वजह से नहीं कर पाया। कैसे चल रहा है रिक्शा तुम्हारा।”
“जो है अच्छा है…।”
“क्या हुआ ? परिशानी में हो, पैसों की जरूरत है क्या तुम्हे ?”
“पैसों की जरूरत नहीं। लेकिन मानसिक परिशानी में हूं।”
“क्या हुआ?”
“जाने दो भाई,बताकर क्या फायदा,जो होना है वह हो रहा है।”
यह गलत है तेरा कहना कि दु:ख बताकर क्या फायदा।दु:ख बताने से मन का बोझ हल्का होता है। नए रास्तें निकल सकते हैं।
“विश्वजीत व्यवस्था बहुत बुरी ओर भ्रष्टाचारी है। हर गरीब का शोषण कई माध्यम से करती हैं।”
“कैसे? मैं नहीं समझा।”
मेरा ही उदाहरण लो, मैंने रिक्शा लिया फाइनेंस निकालकर। कुछ दिनों बाद कोरोना महामारी के कारण वश लाॅकडाऊन पड़ा। बहुत दिन घर के बाहर निकलना मुश्किल था। एक साल बाद चंद घंटो की मुद्दत मिली। रिक्शा चलने लगा। थोड़ा पैसा मिलने लगा। घर का खर्चा, रिक्शा का हफता इसी में था। उसी समय ट्रैफिक पुलिस हर गाड़ी से पैसे वसूल करने लगे।
“नहीं दिए तो ?”
“कुछ भी कारण बताकर दो हजार रुपये की फाईन बिठाते थे। गाड़ी पुलिस स्टेशन लेकर जाते थे और दूसरे दिन कोर्ट में तारीख। इसमें बहुत पैसा खर्च होता था और दुश्मनी भी। इस लिए उन्हें पैसा देते थे।”
“उनके खिलाफ़ शिकायत क्यों नहीं दर्ज़
करते।”
किन-किन पर शिकायत दर्ज़ करे। सभी की मिली भगत हैं। सब मिल बाटकर खाते है ऊपर से लेकर नीचे तक। सौ में से एकाद अधिकारी ईमानदार है उन्हें भी भ्रष्टाचारी बनने के लिए मज़बूर किया जाता है। वह भ्रष्टाचार में शामिल नहीं हुआ तो उनके साथ षड़यंत्र रचाकर उन्हें बदनाम किया जाता है। तबादला भी। बहुत से अधिकारी दलाल है दलाल!
“हिम्मत मत हार कल्याण। तुझे इन भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ़ लढ़ना होगा। आवाज उठाना होगा। तेरी हार याने सब गरीब रिक्शा वालों की हार हैं।”
मैं बहुत परेशान हूं, एक तरफ फाइनेंस का हफता तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण पुलिस स्टेशन का हफता। एकाद समय फाइनेंस का हफता रूका तो चल सकता है लेकिन ट्रैफिक पुलिस का नहीं।
“ग्रामीण और शहरी पुलिस स्टेशन का हफता यानी, मुझे कुछ समझ नहीं आया।”
मैं गांव से पैसेंजर शहर लेकर जाता हूं ओर शहर से पैसेंजर गांव लेकर आता हूं। गांव का अलग ग्रामीण पुलिस स्टेशन है ओर शहर का अलग शहरी पुलिस स्टेशन।इस कारणवश मुझे दोन्हो पुलिस स्टेशन को हफता देना पड़ता है।
“यह गलत है, कानून के खिलाफ भी…।”
कानून सिर्फ़ गरीब के लिए है अमीर लोगों के लिए नहीं। हमारे साथ कुछ बड़े लोग है गाड़ी चलाने वाले।उनकी विधायक, सांसद से जान पहचान है इस कारण उन्हें हफता नहीं होता। हफता सिर्फ़ सामान्य लोगों के लिए…!
“ट्रैफिक पुलिस को सरकार से तनख्वाह मिलती है,तब भी वे नीच काम क्यों कर रहे है कल्याण?”
“वही तो समझ नहीं पा रहा हूं। उनके शोषण की वजह से कई ड्राइवर मज़बूरी में खुनी हो रहें हैं तो कोई खुद को खत्म कर रहें है।”
“मेरे भी बहुत सपने थे लेकिन सब मिट्टी में
मिले ।”
“विधायक, सांसद के पास क्यों नहीं जाते समस्या लेकर।”
“क्या फायदा? सभी विधायक, सांसद अच्छे नहीं होते।”
“मतलब”
“विधायक,सांसद को हर गंदे काम से कुछ प्रतिशत पैसा मिलता है।”
“हार मत। संघर्ष जारी रख। तुझे न्याय मिलेगा।”
“कब तक? कितनी पीढ़िया बर्बाद हुई इन समस्या से।”
कल्याण तुम्हें फूले, शाहू, आंबेडकर के विचार हारने नहीं देंगे, क्योंकि उनके विचार से प्रभावित कोई भी व्यक्ति हार नहीं सकता। तुझे महापुरुष के विचार अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। तुम्हें लोगों को संगठित करना होगा,तभी समाज में जागरूकता आएगी ओर प्रशासन में परिवर्तन संभव है अन्यथा नहीं।
“हां। विश्वजीत मैं अंत तक भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ़ लढ़ता रहूंगा। हार नहीं मानूंगा।”
“कल्याण आफ़िस में कोई आया है, मैं फोन रखता हूं।खुद का ख्याल रखना। बाय।”
“तुम भी परिवार का ख्याल रखना। कभी-कभार फोन लगाते रहना। बाय।”
संक्षिप्त परिचय
नाम: वाढेकर रामेश्वर महादेव
इमेल: rvadhekar@gmail.com
पता: हिंदी विभाग,डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय,औरंगाबाद- (महाराष्ट्र-431004)
लेखन: “चरित्रहीन” कहानी- विवरण पत्रिका में प्रकाशित।) भाषा ,विवरण , शोध दिशा, अक्षर वार्ता,गंगनाचल,युवा हिन्दुस्तानी ज़बान, साहित्य यात्रा,विचार वीथी आदि पत्रिकाओं में लेख तथा संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुति।
संप्रति: शोध कार्य में अध्ययनरत।
मो.9022561824
मौलिकता प्रमाण पत्र
नाम-वाढेकर रामेश्वर महादेव
रचना- “दलाल” शीर्षक कहानी स्वरचित, अप्रकाशित है।