November 24, 2024

बीत गया है जाने क्या-क्या।
और बचा है जाने क्या-क्या।

हाथ बढ़ाकर क्या मैं दे दूं,
माँग रहा है जाने क्या-क्या।

पल भर मुझकों जो सुन लेता,
बोल गया है जानें क्या-क्या।

हँसती तो है आँखे लेकिन,
दर्द छुपा है जाने क्या-क्या।

मेरे दिल के पार उतर कर,
झाँख रहा है जाने क्या-क्या।

कल के थोड़े सुकूँ की ख़ातिर,
आज सहा है जाने क्या-क्या।

धुँआ-धुँआ है आलम सारा
रात जला है जाने क्या-क्या।

ठहरो दिलवर “पूजा”कर लूँ,
ह्रदय कहा है जाने क्या-क्या।

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चूमकर पर्वत शिलाएं,
साथ ले फैली दिशाएं,
खोलकर लंबी भुजाएं,
जोड़ दे धरती गगन।
तेज चल चंचल पवन।

बाग सारा महमहाया,
शीत से उपवन नहाया,
तितलियों से पंख लेकर,
नाच उर होकर मगन।
तेज चल चंचल पवन।

रूप का विस्तार देकर,
चेतना मय सार देकर,
नाप ले सीमा उदधि की,
दौड़ बन बादल सघन।
तेज चल चंचल पवन।

हर्ष से पागल हुआ मन,
जानकर प्रिय आगवन,
राह तक बैठी हुई हूँ,
आँजकर काजल नयन।
तेज चल चंचल पवन।

कु. पूजा दुबे

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