November 21, 2024

काग़ज़ की नाव थी
तुमने जो भेजी थी
मेरे लिए,,,
अच्छा हुआ
तुमने पानी पर,
पानी से
बनाया था आशियाना,
मुझे डूब कर ही तो
पहुँचना है न
तुमतक,,,,,,,
सुनो
निराले हो तुम
और तुम्हारा प्यार,,,,,

शुचि ‘भवि’
01.09.2022

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