उर्दू व्यंग्य : मूल रचनाकार – मुज्तबा हुसैन
अनुवाद – अख्तर अली
पुण्य तिथि पर स्मृति लेख
जब जब उनकी पुण्यतिथि आती है वह बहुत याद आते हैं । जब जीवित थे तो उन्हें देखकर भाग जाता था आज नहीं है तो याद कर कर के उनकी बातें लिख रहा हूं । शायद इसीलिए कहा गया है कि जीवित आदमी खाक का – मर गया तो लाख का ।
मेरे को अच्छे से याद है स्वर्गीय के बाल बहुत लंबे थे , चोटी बांधते थे इसलिए चोटी के शायर कहलाते थे । स्वर्गीय की विशेषताएं उंगली पर गिनाना शुरू करो तो प्रकृति का यह नियम बहुत नापसंद लगता है कि उसने हाथों में इतनी ज्यादा उंगलियां क्यों दी यह ऊपर वाले की फजूल खर्ची है और खराबी गिनाना शुरू करो तो यह अनुभव होता कि ऊपर वाले ने उंगलियां इतनी कम क्यों दी यह ऊपर वाले की कंजूसी है।
स्वर्गीय शायर थे और ऐसे शायर थे जो सिर्फ अपनी शायरी ही पसंद करते थे उन्होंने कभी दूसरे की लिखी ग़ज़ल को ग़ज़ल नहीं माना हमेशा गलत माना । अखबार या किसी पत्रिका में किसी की कोई रचना दिख जाती तो स्वर्गीय तुरंत पृष्ठ पलटा देते थे । दूसरों की रचना पढ़ कर वह अपना समय खराब नहीं करना चाहते थे । स्वर्गीय की आयु अस्सी वर्ष थी अस्सी वर्ष में उन्होंने आठ हज़ार गज़ले लिखी और आठ लाख लोगों को सुनाया और आठ लाख लोगों से उन्हें हूटिंग प्राप्त हुई इसे वह विश्व रिकॉर्ड मानते थे।
उनके परिवार के लोग उनकी लेखनी से भली भांति परिचित थे स्वर्गीय जब भी किसी मुशायरे में जाते तो घर के बच्चे समझ जाते कि अब कल अंडे की पुडिंग खाने को मिलेगी। एक मुशायरे में जब उन्होंने आधी ग़ज़ल सुना दी और मंच पर किसी ने भी अंडे नहीं फेंका तो उन्होंने ग़ज़ल वही रोक दी और कहा जब तक अंडे नहीं फेकोगे मैं ग़ज़ल नहीं सुनाऊंगा अतः आयोजकों ने आनन-फानन में अंडे मंगवाए और फिकवाये तब कहीं मुशायरा संपन्न हुआ । उनका कहना था कि अंडे उनका हक है और वह अपना हक लेकर रहेंगे। एक बार स्वर्गीय मुशायरे में जाने के लिए घर से निकले तो उनकी पत्नी ने कहा – अजी सुनते हो घर में अंडे बहुत हो गए हैं इस बार टमाटर नींबू और प्याज की फरमाइश करना ।
स्वर्गीय का जीवन बहुत सारी अनहोनी घटनाओं से भरा हुआ था उसमें एक बात यह थी कि स्वर्गीय जब भी अपनी नई ग़ज़ल लिखते उसे सुनाने के लिए घर से निकल कर सड़क पर आ जाते तब उनके हाथ में कागज देख कर सड़क पर भगदड़ मच जाती जिसे जहां जगह मिलती वह उधर भागने लगता । साइकिल वाला स्कूटर से और स्कूटर वाला रिक्शे से टकरा जाता । माताएं अपने बच्चे को सीने से चिपका कर घर में घुस जाती और दरवाजा बंद कर लेती । देखते ही देखते सड़क पर सन्नाटा छा जाता और बीचो बीच स्वर्गीय खड़े होकर कहते कि यह बहुत खुशी की बात है कि मेरे को सुनने के लिए सब अपने अपने ठिकाने पर पहुंच गए फिर पूरे जोशो खरोश से अपनी ग़ज़ल सुनाने लगते ।
एक बार शहर में कॉलेज के छात्रों ने हड़ताल कर दी और जुलूस लेकर कुलपति का घेराव करने के लिए निकल पड़े । पुलिस ने उन्हें रोकना चाहा और इसके लिए आंसू गैस के गोले छोड़े , पानी के फव्वारे फेंके , लाठियां चलाई गई लेकिन छात्रों पर इसका कोई असर नहीं हुआ । समूचा पुलिस विभाग परेशान था कि आखिर छात्रों को रोके तो कैसे रोके तभी पुलिस के एक आला अधिकारी ने एक अहम फैसला लिया और उसने तुरंत हमारे शायर साहब को बुलवा भेजा और माइक पर घोषणा करवा दी के अब आप लोगों के सामने श्रीमान अपनी ग़ज़ले पेश करेंगे । यह सुनना ही था कि पूरी भीड़ छठ गई लड़के सिर पर पांव रखकर भागने लगे । मतला में ही मलमा साफ़ यानि मैदान खाली हो गया और अब वहां दूर-दूर तक वीरानी थी।
स्वर्गीय का जब पहला संग्रह प्रकाशित हुआ तो उसे उन्होंने अपनी प्रथम पत्नी के नाम समर्पित करते हुए लिखा था कि अपनी संपूर्ण नफरत और ईर्ष्या के साथ इसे अपनी पहली पत्नी को समर्पित करता हूं। स्वर्गीय के घर में उनकी दूसरी पत्नी भी रहती थी दोनों सौतन में दिन रात इस बात को लेकर झगड़ा होता रहता था कि मेरे को तो संग्रह समर्पित किया गया है तेरे को तो नहीं किया गया देख ले मेरा मान ज्यादा है तेरा मान कुछ भी नहीं।
घर में शांति व्यवस्था बनी रहे इसके लिए उन्होंने अपना दूसरा संग्रह प्रकाशित कराया । इस महंगाई के दौर में एक संग्रह निकालना ही कितना महंगा काम है यह तो वही जानते हैं जो हर माह अपना एक संग्रह प्रकाशित करवाते हैं। संग्रह निकलवाने के लिए पर्याप्त रचनाएं होना ही काफी नहीं है आपके पास पेंशन होना भी जरूरी है जिसकी जितनी मोटी पेंशन उसका उतना मोटा संग्रह । दूसरा संग्रह उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी को यह लिख कर कि जो तुम मेरे जीवन में ना आती तो मैं इतनी खराब ग़ज़ले नहीं लिख सकता था समर्पित किया तब कहीं जाकर घर में शांति स्थापित हो सकी । स्वर्गीय बहुत दूरदर्शी थे इसलिए जब उनका तीसरा संग्रह प्रेस में गया तो लोग कहने लगे तीसरी शादी की तैयारियां शुरू हो गई है । मेरी जानकारी के अनुसार स्वर्गीय एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे जिनके पास रचनाओं का ही नहीं बल्कि पत्नियों का भी संग्रह था ।
एक बार स्वर्गीय के जीवन में बड़ी मजेदार घटना घटी जब उन्हें अपनी शायरी सुनाने के लिए कोई नहीं मिला तब उन्होंने राह चलते एक अनजान व्यक्ति को अपने साथ एक होटल में ले गये उसके लिए चाय और नाश्ता मंगाया और अपनी ग़ज़ल सुनाने लगे । जब बहुत गजलें सुना लिए भरपूर चाय नाश्ता आ गया तब उन्होंने उस व्यक्ति से अपनी ग़ज़लो से संबंधित राय जानना चाही तब उस व्यक्ति ने स्वर्गीय की तरफ देखते हुए कहा कि यदि आप मेरे से कुछ पूछना चाह रहे हैं तो कृपया कागज पर लिखकर बताएं क्योंकि मैं पैदाइशी बहरा हूं । जानकारों का कहना है कि पूरी दुनिया में यही शख्स एक ऐसा शख्स था जिसे स्वर्गीय की शायरी से कुछ लाभ पहुंचा वरना स्वर्गीय दरवाजे पर आए फकीर को भी अगर रूपये दो रुपये देते तो पहले अपनी दो ग़ज़ल सुनाते । इसका प्रभाव यह पड़ा कि पिछले कई वर्षों से लोगों ने स्वर्गीय के दरवाजे पर कभी कोई फकीर को नहीं देखा ।
साथियों यह स्वर्गीय की कुछ यादें थी जो उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर मैंने आपके सामने रखी अगले वर्ष अगर मैं खुद किसी की स्मृति नहीं हुआ तो फिर स्वर्गीय की कुछ ख़ास ख़ास बातों को याद कर कर आपके सामने पेश करूंगा तब तक के लिए आज्ञा दीजिए ।
अखतर अली
निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल
आमानाका , रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
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