चीते का नामीबिया के चीतों को खुला पत्र!
सबसे पहले सभी जन से हाथ जोड़कर माफी! माफी! माफी!
जानता हूं,पत्र देर से लिख रहा हूं। क्या करूं, टाइम ही नहीं मिला। बस यह समझ लो कि सांस लेने की फुरसत ही नहीं थी। आज कुछ टाइम मिला तो लिख रहा हूं। वो तो अच्छा हुआ कि हमारे नामकरण संस्कार का कोई अलग से समारोह नहीं हुआ,नहीं तो पत्र लिखने की फुरसत महीने दो महीने बाद मिलती!
तुम सबको एक बात बताता हूं! जानोगे तो खुशी से झूम उठोगे!
यहां हमारी इतनी आवाभगत हुई कि मैं क्या कहूं! मैं तो यहां के पीएम सर का समझो कट्टर भक्त हो गया हूं। और उससे ज्यादा यहां के लोगों का,जिन्होंने ऐसा पीएम अपने लिए चुना। एक महान देश का अतिव्यस्त पीएम अपना बर्थडे न मनाकर हम चीतों की अगवानी कर रहा है। और कोई देश होता तो कोई टुच्चा-सा अधिकारी आनन-फानन में शिफ्ट करा देता और किसी को पता भी नहीं चलता। घंटे-दो घंटे में काम फिनिश। लेकिन नहीं यहां के लोगों की कर्मठता देखिए कि हमारे आने की खबर पूरे देश में ही नहीं विश्व में फैल गई। अगर एलियंस होते होंगे तो मैं हंड्रेड टेन पर्सेंट स्योर हूं कि उन्हें भी हमारे आने की खबर मिल गई होगी। जय हो!
एक बात बताऊं तुम लोगों को… हंसना नहीं!
शुरू-शुरू में तो पीएम सर को मैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर समझा। आदरणीय पीएम सर हम सब जन की खुद फोटो उतार रहे थे और मीडिया आरती। लेकिन जब चहेरे की चमक देखी तो मैं देखता रह गया। वे चिर युवा जैसे दिख रहे थे और उनके सामने हम सत्तर साल के लग रहे थे! मैं सोच भी नहीं सकता था कि हमारे जैसे तुच्छ प्राणी के लिए कोई पीएम इतना समय देगा। और खासतौर से तब जब देश इतना बड़ा हो और जहां की जनसंख्या एक सौ तीस करोड़ से ज्यादा हो!
अभी तुम लोग सब कैसा है! सब मस्त न!
हमारी टेंशन बिलकुल भी मत लेना भाई लोग। हम सब बहुत मजे में हैं। जलवे है हमारे। टीवी से लेकर न्यूज पेपर तक हम छाए हुए हैं। यहां आए हुए हमें कितने दिन हो गए, फिर भी हमारी चर्चा हो रही। इतनी चर्चा तो संसद भवन में आम आदमी की नहीं होती! मेरे को मालूम है। इधर कुछ लोग ऐसी बातें कर रहे थे। उन्हें अब मैं क्या समझाता कि अपनी-अपनी किस्मत है।
एक बात बताऊं! ए तुम लोग जलना नहीं! हैं!
वो उर्दू में बोलते हैं न, फकत.. तो हम फकत चीता नहीं रहे, वो शुद्ध हिंदी में बोलते हैं न,देव तुल्य… तो हम देव तुल्य हो गए। यहां अतिथि को देवता मानते हैं। पर यहां के अस्सी करोड़ गरीब नागरिकों को क्या मानते हैं,अपने को नहीं पता। कोई बताया भी नहीं इधर। पता न होने से अपने को कोई हर्जा भी नहीं! अतिथि का दर्जा पाकर अपन बहुत खुश हैं। नामीबिया के जंगलों की कसम!
सच-सच कहना तुम सब! यह सब जानकर अब तुम लोगों का मन कर रहा होगा यहां आने का! क्यों है न!
अभी तुम सबको एक और बात बताता हूं। हमें यहां हवाई जहाज से लाया गया। मस्त। यहां पार्क के एक कर्मचारी को मैं यह कहते हुए सुना कि आदरणीय पीएम साहब ने कहा था कि इस देश का हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज से चले। अपन तो हवाई चप्पल भी नहीं पहना था,फिर भी हम जानवरों को हवाई जहाज में बैठा दिया। यह सुनकर पीएम जी के लिए इधर दिल में आभार। मैं समझ गया कि वे बहुत दयालु हैं और उनको जानवरों से विशेष प्रेम है। उनके फैंस उन्हें बहुत सम्मान से शेर बुलाते हैं। मुझे खूब भाया। इससे यह फायदा हुआ कि हमें यहां का पूरा माहौल ही जंगलनुमा लगने लगा। पार्क ही नहीं हमें पूरा देश ही अपने घर जैसा फील होने लगा। आई लव दिस प्लेस वैरी मच!!!
उधर क्या चल रहा है तुम लोगों का!
इधर तो सब मजे में हैं। बस एक बात की दिक्कत है। यहां पार्क के पास हमें बहुत आदिवासी दिखते हैं। वे भूखे लगते हैं। कमजोर दिखते हैं। उनको देखकर लगता है कि हमारे लिए जो भोजन का प्रबंध किया गया है,वो उनको दे दूं। पास जाकर जब उनके चहेरे को देखता हूं तो जी भर आता है। दया आ जाती है। मन करता है कि चीतल को छोड़ इनको ही अपना भोजन बना लूं। जितना पैसा हमारे ऊपर खर्च किया गया है,उतने में इनका पुनर्वास हो जाता! देखो न कहां कि फालतू बात लेकर मैं बैठ गया!
जानते हो तुम सब! सुनकर तुम्हारी छाती चौड़ी हो जायेगी!
यहां हम इतने वीआईपी हैं कि प्राइवेसी नहीं मिलती। देवता तुल्य पीएम से लेकर पब्लिक तक सब हम में खूब इंटरेस्ट ले रहे। शायद इसी वजह से कुछ लोग हम से जलने भी लगे हैं। कल ही किसी को कहते हुए यह सुना कि काले धन की जगह हमें लाया गया है। भगोड़ों को न लाकर तेज दौड़ने वालो को लाया गया है। कुछ कह रहे थे कि आजकल रुपया बहुत कमजोर हो गया है। उसको वीआईपी ट्रीटमेंट की जरूरत है। जो भी हो हम क्या कर सकते हैं! हम तो अभी परदेशी हैं, जो भी करना होगा यहां के नागरिकों को करना होगा! रुपया चाहे कमजोर होता हो, मगर हम यहां दिनोंदिन मजबूत हो रहे हैं। हमारे लिए पार्क में छोड़े गए चीतलों का हम भरपूर मजा ले रहे हैं। अभी हमें आए हुए कितने दिन ही हुए, मगर हमारा वजन तेजी से बढ़ रहा है। (भाव तो पहले ही दिन से बढ़ गए थे।) लगता है कि जल्द ही ओवर वेट हो जायेगे!
वहां का मौसम कैसा है! लोग कैसे हैं!
यहां के लोग तो बहुत मासूम है। जो कह दो,उसे मान जाते हैं। जो दिखा दो, उसे देख लेते हैं। जो बोल तो, उसे सुन लेते हैं। खड़े होकर हमें स्टैंडिंग ओवेशन दिए। मायूस हो कर नहीं जोश में ताली बजाए। अपना काम धंधा छोड़ हमे देखने का अपना रोजगार बना लिया। इनके उत्साह को देखकर मुझे लगा कि इनके जीवन में बस हमारी ही कमी थी। बस!
अरे! एक बात तो बताना भूल ही गया!
यहां हम आठ चीतों को नए नाम दिए गए। (यहां के चौकीदारों द्वारा) मेरा नाम अमृत, गोलू का नाम उत्सव, छोटू का नाम गौरव। मुनिया का नाम प्रगति। बच्ची का नाम अच्छी। झुलनी का नाम गरिमा। कनिया का नाम संस्कृति और मुन्नी का नाम उन्नति हो गया है।
यहां सब अच्छा ही अच्छा है।मेरी मानो तो तुम सब भी यहां आ जाओ! अच्छा रहेगा! यहां के पीएम सर बहुत अच्छे हैं। उनकी कृपा से हम सब अच्छे हैं। बाकी सब अच्छा है। तुम सब अपना खयाल अच्छे से रखना। हमारा खयाल रखने के लिए यहां की पूरी मीडिया है।
अच्छा,अब लिखना बंद करता हूं।
लो ये बात तो रही जा रही थी! पता है!आज सुबह के नाश्ते का तो क्या ही कहना! नर्म चीतल को खाया है जिसका नाम बिकास था।
बाय!
अनूप मणि त्रिपाठी