सच्चाई
मौत के बाद का किसने ज़हान देखा है
कुछ कहा, कुछ सुना कोरा बयान देखा है।
कोई जन्नत न मैंने कोई जहन्नुम देखा
सर उठाया तो सिर्फ़ आसमान देखा है।
जैसे पंछी उड़ा बहेलिया पड़ा पीछे
उसके माथे पे चोट का निशान देखा है।
उसकी आंखें जो बोलती हैं उसे सुनिए भी
कैसे कहते हो उसको बेजुबान देखा है।
रंग रोगन लगा के खूब चमकदार किया
किंतु पल में जो ढह गया मकान देखा है।
जिसका पैग़ाम सिर्फ़ पा के लोग चल देते
किसने ऐसा महान मेज़बान देखा है।
– डॉ डी एम मिश्र