नींद
आधी रात बाद जागते हुए
ऑनलाइन देखकर
पूछता है दोस्त,
जाग क्यों रहे हो ?
कैसे बताऊं उसे
टूटन और बेचैनी में,
नहीं आती नींद मुझे,
‘जागो तो जिंदगी है ‘का भरम
जगाता रहता है,
और यह डर भी कि
सोने से खो न जाए,
आखिरी आस का विचार,
आप तो जानते हो कि कैसे ?
आता है मन का करार,
किसका है बेफिक्र नींद पर अधिकार,
और अपने लिए तो थकने-टूटने
बिखरने-नाउम्मीदी तय होने के पार,
नींद की गोद होती है यार।
– उमेश मिश्र