April 18, 2025
IMG-20220930-WA0042

आज एक टुकड़ा धूप मेरे हिस्से में आई है,
मैंने फिर दिल की ज़मीं पर ख़्वाबों की फसल उगाई है।

ज़मीं सख़्त बहुत है, धूप तेज़ बहुत है;
बहते अश्कों से इस ज़मीं में नमी आई है‌।

हौंसले की खुरपी से खोदा है मन का आँगन,
फिर छोटे-बड़े ख़्वाबों से क्यारी सजाई है।

एक टुकड़ा ही सही धूप, उजाला तो हुआ।
ख़ुद को सालों तक जलाया तो, ये सुबह पाई है।

एक तिनका भी न जाने दूँगी बेकार इसका,
ज़िंदगी की साँस बनके ये रोशनी आई है।

अपने हिस्से की धूप भर लो दामन में,
उम्र भर अँधेरों ने बहुत बेरहमी दिखाई है।

आज एक टुकड़ा धूप मेरे हिस्से में आई है,
मैंने फिर दिल की ज़मीं पर ख़्वाबों की फसल उगाई है।

आज एक टुकड़ा धूप …..

-डॉ कविता सिंह’प्रभा’©️
स्वरचित मौलिक रचना

कृपया हमारे #कविता_प्रभा #kavitaprabhaa काव्य समूह से जुड़ें।https://www.facebook.com/groups/kavitaprabhaa/?ref=share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *