“मिशन फैट टू फिटनेस” 100 डेज : सुबोध श्रीवास्तव एक परिचयात्मक आलेख -मनोज जैन
नर्मदा के कछार में बसा एक छोटा सा गाँव अलीगंज, तहसील बरेली, जिला रायसेन मध्यप्रदेश में आता है। दक्षिण की तरफ सतपुड़ा की सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं में बसी पचमढ़ी यहाँ से मात्र 55 किलीमीटर दूरी पर है, जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विश्वभर में जानी जाती है। पास में ही लगभग 15 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर छींद मन्दिर, जहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा के कछारों से सटे इस छोटे क़स्बे से मेरा यों तो कोई सीधा सम्बंध नहीं जुड़ता पर हाँ, यहाँ मेरे आत्मीय मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी जो, अलीगंज से आते हैं और इन्हीं के साथ तक़रीबन डेढ़ दशक पहले इस छोटे से गाँव आने और यहीं से सटकर गुजरती, इतराती, बलखाती, इठलाती नर्मदा नदी में, स्नान करने और यहाँ की पावन धूलि सर माथे पर लगाने का सुअवसर ज़रूर प्राप्त हुआ है।
सुबोध जी से हमारे परिचय के तार तब से जुड़े हैं जब हम दोनों ही अपने करियर की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहे थे। आज से तक़रीबन 23 वर्ष पहले हमारी पहली भेंट ज्ञानदीप शिक्षा समिति बरखेड़ी भोपाल, द्वारा आयोजित एक साक्षात्कार के दौरान हुयी। तब सुबोध जी अँग्रेजी साहित्य के स्नातकोत्तर की उत्तरार्द्ध और हम पूर्वार्द्ध कक्षा के विद्यार्थी थे। यद्धपि वह मुलाकात क्षणिक थी पर उस पहली भेंट से हमारा परिचय प्रगाढ़ता में कब बदला पता ही नहीं चला।
तब से लेकर अब तक हजारों लोगों से सम्पर्क रहा लेकिन जो आत्मीयता हम दोनों में, वह अन्यत्र विरल है। सुबोध जी मेरे आदर्श हैं, हमारे सुख-दुख सब उनके हैं।
मित्र होने के नाते मैं उनकी अनेक स्वाभाविक प्रवृत्तियों को उनसे कहीं ज़्यादा जानता हूँ। अत्यंत संवेदनशील, कुशाग्र बुद्धि के धनी अल्पभाषी, सूक्ष्मावलोकी, दत्तचित्त और सहयोगी स्वभाव जैसे गुण सुबोध जी ने अपने आदर्श पिता से ग्रहण किए साथ ही उन्हीं से उन्होने सैकड़ों की सँख्या में लोकोत्तियाँ जस की तस आत्मसात भी कीं। जिसका प्रयोग वह भाषाई टूल की तरह अक्सर अपनी बात-चीत में किया करते हैं। जिनके मायने बहुत गहरे होते हैं; और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वह इन लोकोत्तियों और कहाबतों की दार्शनिक गहराइयों को जीते भी हैं। गीता को आदर्श ग्रन्थ और लार्ड कृष्णा को अपना आराध्य मानने वाले हमारे सनातनी मित्र की आरम्भ से ही चातुर्मास में अनन्य श्रद्धा रही है और वह पिछले सत्रह वर्षों से चार महीनों के इस विशेष काल में अपने लिए हर बार कुछ नया करते आ रहे हैं।
इस बार इनके प्रेरणास्रोत रहे मोटिवेशनल स्पीकर विवेक विन्द्रा जी !
विन्द्रा जी से प्रेरणा लेकर इस वर्ष 10,जुलाई 2022 की अघोषित तिथि से “फैट टू फिटनेस” पूरे सौ दिनों के लिए विशेष अभियान के तहत 16,अक्टूबर 2022 तक सोशल मीडिया से दूरी रखने वाले सुबोध भाई सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय दिखे।
इस बीच उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति सजगता सम्बन्धी अपने ही बनाये कुछ पुराने कीर्तिमान तोड़े और नए कीर्तिमान रचकर अपने मित्रों सहित समाज को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया है।
उनके इस मिशन पर यदि पारिभाषिक दृष्टि डालें तो अमूमन ‘फैट’ शब्द ही अपने आप में शारीरिक मोटापे की ओर इंगित करता है। वहीं उनके शीर्षक के अर्धवाक्य का दूसरा शब्द है “फिटनेस” फिटनेस के तहत उनका अपडेट कोई क्रांतिकारी डाइट प्लान या वर्क आउट करने की सलाह नहीं देता।
फिटनेस का अर्थ यहाँ स्लिम ट्रिम दिखना या वेट लॉस जैसे किसी विशेष टर्म में नहीं बंधता सुबोध जी की मानें तो फिटनेस आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करती है जैसे आपका एनर्जी लेवल नींद की क्वालिटी पाचन शक्ति ध्यान और स्फूर्ति के साथ वह सब कुछ जो एक स्वस्थ्य तन मन के लिए बेहद ज़रूरी है। इसी पावन उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उन्होने सोशल मीडिया पर अपनी सुबह की सैर के वीडियो अपलोड कर साझा करने आरम्भ किए।
रेस्पॉन्स में मिली अपने मित्रों की इमोजियों ने उन्हें वैसे ही मोटिवेट किया जैसे खेल के मैदान में खिलाड़ी को दर्शकों की तालियाँ !
रोज़मर्रा के उनके छोटे-छोटे वीडियोज़ क्लिप शहर की भीड़भाड़ से दूर प्राकृतिक रमणीक स्थलों के होते जिन्हें देख कर अनेक स्वास्थ्य प्रेमी उनसे प्रेरणा लेते और उन स्थलों के बारे में अपनी जिज्ञासाएँ प्रकट करते।
फ्रेंड-फॉलोइंग से मिले पॉजिटिव रिस्पॉन्स ने सुबोध जी के इस मिशन में चार चाँद लगा दिए। इस दौरान हुए शारीरिक श्रम से उन्होंने अपने शारीरिक वजन को एक दम नियंत्रण में कर लिया 85 kg से 72 kg तक आने का श्रेय वह अपनीआत्मीय सखी सुप्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ.फाल्गुनी तिवारी जी को देते हैं,जिन्होंने उनकी साधारण सी भोजन की थाली से शर्करा को सिरे से कट ऑफ कर दिया।
है ना कमाल की बात ! मीठा खाने वाले की थाली से मीठा उठाकर गायब कर देना।
दरअसल यह कमाल डॉ. फाल्गुनी तिवारी जी का कम,पर उनके आपसी तालमेल और सखी भाव का ज्यादा है।
वर्ना किसकी मज़ाल जो सुबोधानन्द जी की थाली से उनका मन पसन्द आइटम बाहर कर दे!
देश के प्रख्यात राजनेता और चर्चित शल्यचिकित्सक डॉ अभिजीत देशमुख जी सुबोध जी के परम सखा भी हैं और परम आदर्श भी! दोनों की स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग देखते ही बनती है। कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में देशमुख सर की प्रेरणादायक सोच भी सुबोध जी के इस मिशन से जुड़ी रही।
अपने सखा डॉ. देशमुख जी के सुझाव को सिरमौर मानते हुए सुबोध जी ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम सुबोध आनन्द रखा वैसे यदि शाब्दिक विग्रह ना भी किया जाता तो भी नाम परफेक्ट होता “सुबोधानन्द” कहते हैं की जहाँ सुबोध है वहाँ तो परम्परा से आनन्द होगा ही।
यक़ीन मानिए चैनल में आपको अनेक रोमांचित और प्रेरणा से भर देने वाले शार्ट वीडियोज़ क्लिप मिलेंगे जिनमें हमारे ज़ुनूनी मित्र की अनेक छवियाँ आपको देखने मिलेंगी।
कौतूहल वश कहीं वह बालसुलभ चेष्टाएँ करते दिखे तो कभी पानी की छपाक से ताल मेल मिलाते !
छोटी-छोटी क्लिप्स के स्लो मोशन में सारी हरकतें कैद हैं। वे कभी किसी ग्रोइंग ट्री पर लटकते तो कभी उसे आलिंगन करते। शहर की शायद ही ऐसी कोई लोकेशन हो जहाँ इस प्रकृति प्रेमी मानुष ने अपना वीडियो शूट ना किया हो।
घुम्मकड़ी प्रकृति के हमारे मित्र के अनेक आसन एक विशेष स्टोन स्लैब (पत्थर की एक सिला ) पर देखकर आप दंग रह जाएंगे। कभी यह नदी के किनारे खड़े दिखाई देते हैं तो कभी नदी के बीचों बीच लहरों से अटखेलियाँ करते हुए इन्हें देखा जा सकता है। कभी पहाड़ पर तो कभी झरने के समीप कुल मिलाकर समूची प्रकृति के प्रेमीमन को देखकर आपका मन भी प्रसन्नता से भर जाता है।
आइए हम भी सुबोधानन्द जी के मिशन से प्रेरणा लें और अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। सुबोध जी केवल सपने ही नही देखने बल्कि उन्हें पूरा करने में भी यक़ीन करते हैं! वे शायराना अंदाज़ में कुछ यूं बयान करते हैं।
“सपने मेरे बड़े हैं
जो मुझे
सोने नहीं देते।”
चलते चलते अपने स्वभिमानी मित्र की एक बात और साझा करने का मन है। सुबोध जी कहते हैं;- माँगने से जो मिले वह पानी जैसा, जो स्वतः मिले वह अमृत तुल्य और जिसे छीनना पड़े उस चाह की प्रकृति रक्त के समान !
मैं इस तथ्य का प्रत्यक्षदर्शी हूँ मित्रों पर अपना सब कुछ लुटाने वाले हमारे इस मित्र को ईश्वर की असीम अनुकम्पा से अब तक जो मिला वह अमृत-तुल्य ही है।
अपने इस मिशन के समापन पर मिशन की सफलता का श्रेय वह अपनी पत्नी श्रीमती तनु श्रीवास्तव जी के आत्मीय सहयोग को देना नही भूलते! जिनसे सुबोध जी हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते हैं।
इस अवसर पर वह वीडियो शूट और उनके साथ पैदल सैर करने वाले साथी अखिलेश जी और सूरज सिंह जी का भी शुक्रिया अदा करते हैं।
एक शख्स और है जो सुबोध जी के जीवन में खासी जगह रखता है,जिसे वह दिल से चाहते हैं और उस पर अपना स्नेह अनुजवत लुटाते है वह कोई और नही वह हैं डॉक्टर देशमुख जी के रथ ( ऑडी AUDI ) के सारथी भाई दलभान सिंह यादव ऐसा कोई चैप्टर नहीं जिसमें यह भी शामिल ना हो!
खैर, यह तो मिशन का एक पड़ाव भर है आगे-आगे देखते हैं होता है क्या!
एक निजी प्रश्न पूछने पर सुबोधानन्द जी की आँखें अपनी माँ को याद करते हुए छलक पड़ीं अपनी सफलता का सारा श्रेय अम्मा और बाबू जी को देते हैं।
महानगर में रहते हुए भी सुबोध जी का मन शहरी चमकदमक से कोसों दूर है। उन्होंने अपनी जड़ों से नाता नहीं तोड़ा। वह आज भी हर-तीज त्योहार पर अम्मा और बाबू जी का आशीर्वाद लेने अलीगंज जाते हैं।
हम लोगों ने अपने निजी अनुभवों से, अपनी समानांतर चलने वाली ज़िंदगी को बड़े निकट से जाना है। हम दोनों ही क्रम संख्या में चौथे नम्बर के भाइयों में गिने जाते हैं।
सुबोध जी भले ही स्वयं को सफल व्यापारी कहते रहें पर उनकी संवेदनाएँ उन्हें कभी भी व्यापारी नहीं बनने देंगी।
हाँ! सुबोध श्रीवास्तव एक अच्छे और सच्चे इन्सान जरूर हैं। यही भाव उन्हें और आगे ले जाएगा!
सादर
@ मनोज जैन “मधुर”
106 विट्ठलनगर गुफामन्दिर रोड
भोपाल
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