एक थी स्मिता
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक स्मिता पाटिल ने हिंदी और मराठी सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है।मराठी दूरदर्शन पर न्यूज रीडर के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली साधारण शक्ल-सूरत वाली स्मिता ने 1975 में श्याम बेनेगल की दो फिल्मों – चरणदास चोर और निशान्त से अपनी अभिनय-यात्रा शुरू की थी। अपने किरदार में उन्हें शब्दों से ज्यादा चेहरे और आंखों से संवाद करने की कला बखूबी आती थी। उनके संवेदनशील और भावप्रवण अभिनय ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। संघर्षशील नारीवादी होने की वजह से उन्होने उन फिल्मो में अभिनय को प्राथमिकता दी जिनके केंद्र में मध्यवर्ग की वह संघर्षशील औरत थी जो चौतरफ़ा कामुकता के बीच अपने सपनों के लिए एक रास्ता तलाश रही है। श्याम बेनेगल ने उन्हें एंटी हीरोइन का नाम दिया था।यथार्थवादी और कला सिनेमा के उस दौर के उतार के बाद उन्होंने व्यावसायिक फिल्मों का रुख किया तो वहां भी दर्शकों ने उन्हें हाथोहाथ लिया ! अपने मात्र एक दशक के छोटे फिल्म कैरियर में स्मिता ने अस्सी से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। फिल्म ‘भूमिका’ और ‘चक्र’ में अभिनय के लिए उन्हें दो-दो राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा अन्य फिल्मों के लिए पांच फिल्मफेयर अवार्ड मिले। सामंती व्यवस्था के बीच पिसती औरत के संघर्ष पर आधारित केतन मेहता की फिल्म ‘मिर्च-मसाला’ और प्रेमचंद की कहानी पर आधारित सत्यजीत रे की फिल्म ‘सद्गति’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। व्यक्तिगत जीवन में विवाहित और दो बच्चों के पिता अभिनेता राज बब्बर से उनका प्रेम, लिव इन रिलेशन तथा इस बेनाम रिश्ते से प्राप्त पुत्र प्रतीक बब्बर उनकी उपलब्धियां रही थीं। प्रतीक को जन्म देने के बाद 1986 में महज 31 साल की उम्र में स्मिता का असमय निधन हो गया।
स्मिता पाटिल के जन्मदिन (17 अक्टूबर) पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि !
लेख – Dhruv Gupt sir
चित्र – साजिद खान इब्राहिमी ( चित्र पुराना है। )