द स्टोरी टेलर
कहानीकार को जरूर
देखना चाहिए ये फ़िल्म..
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किताबों के मामले में…प्रकाशकों की तरफ से छोड़े गए शगूफ़े ‘बेस्टसेलर’ की तथाकथित प्रतिस्पर्धा.. ज़माने के साथ कदमताल करते, नए माध्यम के साथ अस्तित्व को तालाशती कहानी विधा… कहीं रेडियो के आधुनिक अवतार एफएम पर सुनाई जाती कहानी.. कहीं पॉडकास्ट तो कहीं गोष्ठियों में कथा कहन..सिनेमा के बड़े पर्दे तो कहीं वेब श्रँखलाओं के लिए स्क्रीन राइटिंग की गलाकाट दौड़ में भागते.. पैराशूट स्टाइल कुकुरमुत्ता किस्म की जमात के अनगिनत राइटर और इनसे इतर..साहित्य में स्थापित कथाकारों और नई पीढ़ी के कहानीकारों के बीच के अनकहे लेकिन संजीदा द्वन्द्व के बीच… डिज्नी हॉटस्टार पर कल रात अवतरित / स्ट्रीम्ड एक फ़िल्म ने.. कहानी विधा को जैसे एक सर्वथा अनूठा नज़रिया दे डाला.
‘द स्टोरीटेलर’ …एक फ़िल्म जिसे हर कहानीकार को जरूर देखना चाहिए.. पौने दो घंटे की पूरी फ़िल्म सिर्फ कहानी और कहानीकार के इर्द – गिर्द रची – बुनी… कहानी पर आधारित है.. और इसके कहानीकार कोई और नहीं.. फ़िल्मकार सत्यजीत राय साहब हैं.
कहानी की उर्वरा बंगाल की धरती के ..टैगोर से लेकर शरत बाबू, बंकिम दा, ताराशंकर दा से आशापूर्णा और महाश्वेता देवी तक से खासे प्रभावित फ़िल्मकार सत्यजीत राय स्वयं एक उम्दा कथाकार बतौर अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित रहे हैं. उन्हीं की एक अद्भुद लघु कहानी पर है ये फ़िल्म ‘ द स्टोरीटेलर ‘.
पिछले एक हफ्ते से विद्या बालन, परमव्रत चटर्जी अभिनीत फ़िल्म ‘कहानी’… सतीश कौशिक अभिनीत ‘किस्सेबाज’, नाना पाटेकर की भूमिका वाली बेहतरीन फ़िल्म ‘ वेडिंग एनिवर्सरी ‘ जिसकी नायिका का नाम ही कहानी है.. और अब ये स्टोरीटेलर.. यानी गज़ब इत्तीफ़ाक़ रहा..देर रात तक लगातार इन सबके साथ कहानी विधा से साक्षात्कार का.
इस फ़िल्म के नायक कोलकाता के तारिणी बंदोपाध्याय को कहानी कहने की कला में महारत है..पत्नी से बिछड़ने के बाद..कहानी गढ़ना और.. सुनाना उनका शगल बन चुका था.. अमेरिका में बस गए बेटे के लाख बुलाने पर अपने परिवेश को नहीं छोड़ने वाले तारिणी के सामने अख़बार का एक इश्तिहार.. एक नये द्वार के खुलने सरीखा साबित हुआ..अहमदाबाद के एक कॉटन व्यापारी की तरफ से एक स्टोरीटेलर को हायर करने से जुड़े इस इश्तिहार के मुताबिक तारिणी बाबू ज़ब गुजरात के एकदम अजनबी माहौल में पहुँचते हैं तो पता चलता है.. बेहद धनी उस कारोबारी को नींद नहीं आने की बीमारी है.. वो चाहता है कोई उसे कहानी सुनाये और सुनते हुए उसे नींद आ जाये.
आगे की कहानी इस कदर दिलचस्प और अकल्पनीय है कि यहां विस्तार से ज़िक्र करना यानी फ़िल्म का जायका खराब करना होगा.
बंगाल की प्रबुद्ध रूचि के अलावा माछ / मछली प्रेम, दुर्गा पूजा जैसे कई रोचक बिम्बों का उम्दा इस्तेमाल निर्देशक ने खूबसूरती से किया है.
कहानीकारों के लिए तो सत्यजीत बाबू की इस कहानी का प्लॉट.. यक़ीनन ‘सरप्राइर्जिँग’ ही होगा.. फेलू दा सरीखे जासूसी किरदार गढ़ कर.. बेहतरीन रहस्य – रोमांच.. फ़िल्म विधा के ज़रिये दर्शकों को देने वाले अपनी तरह के अकेले फ़िल्मकार के दिमाग़ में… बंगाल की इंटलेक्चुअलिज्म और कम्यूनिज्म में आस्था और गुजरात की कैपेटलिज्म को जोड़कर आखिर ये अनोखा प्लॉट भला कैसे आया होगा..अनुसन्धान का विषय हो सकता है.
फ़िल्म के कंटेंट का पूर्वार्ध, उत्तरार्ध और क्लाइमेक्स तीनों कमाल के हैं..
नब्बे के दशक के अभिनेता.. बाद में स्क्रीन राइटर बने अनंत महादेवन के निर्देशन में फ़िल्म के खास किरदार के लिए परेश रावल और आदिल हुसैन का चयन लाजवाब है. छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका में दक्षिण की अभिनेत्री रेवती को पहले से अधिक सौम्य सौंदर्य के साथ देखना कम सुखद नहीं रहा.
समृद्ध भारतीय साहित्य के ख़ज़ाने में मौजूद बेशकीमती कहानियों से लेकर..आज तक के मशहूर कथाकारों की अनमोल कहानियों के साथ कुछ ऐसा भी हो सकता है..जानने..सतर्क रहने की गर्ज से भी ये फ़िल्म स्टोरीराइटर्स को देखना ही चाहिए. राजीव सक्सेना