साथी मुकेश तुम जिंदा बाघ थे !
जो जहां है
है अगर मुखर व संवेदनशील
मारा जाएगा एक दिन
पहले ये तुम्हें प्यार से
कोशिश करेंगे खरीदने की
अगर नहीं बिके फौरन
करेंगे इंतज़ार
दिखाएंगे भ्रम
मायालोक
मायाजाल
गले में गमछा लपेटे
तथाकथित बड़े बड़े
भांडों को
जिनका गिरने का रहा है
लंबा इतिहास !
उस इतिहास पर
मिट्टी डाल
उसे देवता बना
पेश करेंगे युवाओं को
ग़र युवा जानता,
समझता है इतिहास
समझ रखता है अपनी
बातों के गोल गोल गुच्छे में
नहीं उच्चारता शब्दों को
समुद्र की लहरों की तरह
हहराता है उसका ज़मीर
गाय के कटने में उसे
पशु वध दिखता है
मनुष्य के कटने पर मनुष्य
नाम के भीड़ में
नहीं बांटता वह हर मनुष्य
जलता हुआ मणिपुर
नींद उड़ा देती है उसके रातों की
बहन बेटियों की चीत्कार
सोने नहीं देती
कोई भी स्वर्ण पठार या हो कि पहाड़
नहीं रोक पाता उसके अदम्य साहस को
नौजवानों की पीड़ा उसे सालती है
उसके मां बाप की नींद
उसकी नींद बन जाती है
जंगल कटने पर उसे दर्द होता है
नदी भरने पर शोक !
दो रोटी जो खाकर भी
दहाड़ सके शेर की तरह
अगर ऐसे युवा हो तुम
तो हो तुम खतरनाक
सफ़दर की तरह तुम्हें कभी भी
भूना जा सकता है
या कभी भी
किसी टंकी में मिल सकती है
तुम्हारी लाश !
साथी मुकेश
तुम जिंदा बाघ थे !!
© Bandana Prasad
@highlight
नोट: सोची थी फेसबुक पर नहीं लिखूंगी ..लेकिन मन विचलित है ! हम भयावह समय में जी रहे हैं साथी !!