April 17, 2025

सेक्यूलर पाजामे मे सांप्रदायिक लंगोट

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▪️श्रीकांत आप्टे

उस दिन बाबूलाल जी आंगन में खटिया पर लेटे हुए आराम फर्मा रहे थे। काफी थके हुए लग रहे थे। नौकर उनके बदन की मालिश कर रहा था।
“बहुत थके हुए लग रहे हैं , कहां लगे रहे ?” मैंने आंगन में प्रवेश करते हुए कहा।
” क्या बताएं साहब, रोज सुबह और शाम चार-चार घंटे सेक्यूलर हो रहे हैं ।” वे कराहते हुए बोले।
जवाब में मेरे बोलने लायक कुछ नहीं था सो मैं चुप रहा।
मेरी ओर करवट लेकर कहने लगे, ” आप ही बताइए। भला ये कहां कि शराफत है कि किसी को सेक्यूलर दिखना आता हो तो उससे ये उम्मीद की जाए कि लगातार सुबह,शाम तीन-चार घंटे सेक्यूलर दिखते रहो ? ”
दरअसल , आजकल रमज़ान का महिना चल रहा है। मोहल्ले के शिव मंदिर में महिने भर रुद्राभिषेक के आयोजन के लिए इससे बेहतर समय भला और कौन सा हो सकता है? माइक पर पांच बार अजान की जवाबी कार्रवाई के लिए सुबह से रात तक माइक पर शिव भजन और आरती चल रही है। आयोजनकर्ता मोहल्ले के ही हैं जो बाबूलाल जी के ही छर्रे हैं। सुबह घंटाभर आरती के लिए जाना पडता है। शाम को रोज़ा इफ़्तार के लिए। मन मारकर ही सही लेकिन जाना पडता है रोज़ा इफ़्तार में।जैसे,तैसे उसे निपटाते हैं कि शाम की आरती के लिए छर्रे पुकार लगाने लगते हैं। बेचारे बाबूलाल जी को सुबह की आरती , फिर शाम को रोज़ा इफ़्तार उसके बाद शाम की आरती। कई घंटों तक सेक्यूलर दिखना पडता है।
जरूरी है क्योंकि चुनाव सिर पर है। हाई कमान का आदेश भी है। आदेश न होता तब भी करते। काफी जोरों की अफवाह है कि इस बार बाबूलाल जी का टिकट पक्का है।
बाबूलाल जी बोले,” मौका पडने पर दिन भर में घंटे-सवा घंटे हमें सेक्यूलर दिखने का बढ़िया अभ्यास है। राजनीति में हैं सो सेक्यूलर रहने का इतना अभ्यास तो होना ही चाहिए भाई। पर रोज कई घंटे , वह भी पूरा महिना।” उनके चेहरे पर पीड़ा साफ दिख रही थी।
” अभी तो केवल पांच ही दिन हुए हैं ” मैंने उन्हें छेड़ा।
” वही तो। पच्चीस दिन शेष हैं ये सोचकर दिल बैठा जा रहा है।” वे बोले।
मैंने कहा, ” राजनीति की खातिर पांच दिन काफी होते हैं।”
वे आवेश में आकर बोले “यहां नहीं तो वहां, इफ़्तार पार्टी भी तो रोज होती है।
फिर अपने चेलों के लिए कुछ अप्रकाशनीय शब्दों का प्रयोग कर बोले, “लौंडों ने अभिषेक भी पूरे महिने भर का रख लिया। रोज मंदिर जाओ तो इफ़्तार में भी जाना ही पडेगा। नहीं तो घुस गया आपका सेक्यूलरिजम।”
उनके जैसे नेता के लिए इतना सेक्युलरिज्म बहुत ज़्यादा और जानलेवा था। वे इस समय खटिया पर लस्तपस्त पडे थे।
पडे-पडे कहने लगे, ” देश में इतने और ऐसे बड़े वाले सेक्यूलर पैदा हो गए हैं कि भैया पूछोई मत। कीचड़ सी मचा दी है भाई लोगों ने सेक्युलरिज्म की। जिसका दिल चाहे वही अपना सेक्युलरिज्म ले उतर पडता है कीचड़ में। दिल खोलकर छप-छप चल रही है। सबके पास है सेक्युलरिज्म। तो भैया हम काहे पीछे रहें। रोज थोड़ा-थोड़ा करते हमने भी खासा सेक्युलरिज्म जमा कर लिया है।”
सेक्युलरिज्म पर इतना लंबा बोलने से बाबूलाल जी की सांस फूल गई थी।
मैंने कहा, ” आपको सेक्युलर का मतलब ही नहीं मालूम। ”
” आपको मालूम है?” उन्होंने पलटवार किया। ” चूतियों जैसी बात कर रहे हैं आप। सेक्युलर के मतलब से क्या लेना-देना। हम सेक्यूलर हैं तो हैं,बस्स। ”
सभी जानते हैं कि वे एक नंबर के लफंगे,भ्रष्ट, बेईमान, घोटालेबाज और लंगोट के ढ़ीले हैं।करोड़ो रुपयों के घोटालों के आरोप हैं उन पर। माफिया सरगना इनके यार हैं। खुद हिस्ट्रीशीटर हैं और हिस्ट्रीशीटरों से खूब छनती है। कितने मुकदमें उन पर चल रहे हैं ये उन्हें भी याद नहीं। वकील उनको बताते हैं कि अड़तीस नंबर वाले केस की सुनवाई आज है , बयालीसवें की पिछले महिने हुई थी और पैंतालीसवे की सुनवाई अगले महिने होगी।
ये सब करते हुए भी वे सौ फीसदी सेक्यूलर रहते हैं। उनके लिए लड़की केवल लड़की होती है और रूपयों का कोई धर्म नहीं होता। यही उनका सेक्युलरिज्म है और इस से एक इंच भी नहीं डिगते।
सामने अगर एक भी श्रोता हो तो नेता की आवाज में जोश भर जाता है।
कहने लगे, ” बाऊजी , सेक्युलरिज्म की भस्मी पोते जो बड़े बाबाजी हैं उनका हाथ है हमारे सिर पर। धरम का डमरू हाथ में लिए जितना चाहे अपराध का तांडव करो। किसी का बाप कुछ नहीं उखाड़ सकता हमारा।”
मैंने कहा, ” देश में थाना, कचहरी भी तो हैं।”
हंसते हुए बोले, ” वहां जो भी हैं वे भी तो बड़े बाबाजी के आशीर्वाद से ही वहां हैं। गुरू भाईयों पर कोई हाथ डालता है भला ? वर्दी खाकी है या कोट काला , सभी के भीतर के लंगोट का रंग…समझदार हो तो कौन सा रंग मत पूछ लेना।”
थोड़ी देर खामोशी छाई रही। वे शायद मेरी समझदारी को तौल रहे थे।
समझाते हुए बोले, ” देखो, सेक्युलरिज्म दो तरीकों का होता है। एक तुम्हारा वाला चूतियाटिक तरीका, बिल्ली के गू जैसा न लीपने का न पोतने का।एकदम खालिस। खालिस तो घी भी नहीं पचता किसी को आजकल और आप लगे हैं खालिस सेक्युलरिज्म परोसने में। कौन खा सकता है भैये। अगर खिला दो तो शर्तिया पचा नहीं सकता।”
नेता जब भाषण के मूड में आ जाए तो भलाई इसी में है कि आप चुप हो जाएं। मैं चुप था। वे चालू थे।
कोने में टंगे झोले की ओर इशारा करते हुए बोले, ” उस झोले को देख रहे हैं। एकदम हमारे तरह के डिजाइन का बनवाया है। जलसों में ले जाते हैं। एक ओर सेक्यूलर, दूसरी ओर … आप समझ ही गये होगे। जलसे के हिसाब से झोले को भीतर, बाहर पलट लेते हैं। आपके जैसा थोड़ेई कि सेक्यूलर हैं तो बस्स हैं। हमारे जैसा सेक्यूलर होना हंसी-ठठ्ठा नहीं है। फूंक सरक जाती है अच्छो,अच्छों की।”
उन्होंने कुछ भारी-भरकम शब्द हिंदी और उर्दू दोनों के रट रखे हैं। संत सम्मेलन का “शुभारंभ” करते हैं और मुशायरे का “आगाज़” करते हैं।
भारतीय प्रजातंत्र की राजनीति में यही मजे हैं । सेक्यूलर पाजामें के भीतर सांप्रदायिक लंगोट पहने रहो और जीभर के नंगई करो। मौका मुनासिब देख, चाहो तो पाजामा भी उतार दो। अब तो बड़े-बड़े भी यही कर रहे हैं। महाजनो येन गता: सो पंथा:।
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मुंबई, 13 जनवरी, 2025

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