February 3, 2025
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कभी साँझ का दीप लगे है , कभी भोर का तारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

सौंदर्य की गढ़ती हो तुम
नित नूतन परिभाषा
इस धरती से उस अंबर तक
तुम सबकी अभिलाषा

कभी स्वर्ग की लगतीं सीढी , कभी मोक्ष का द्वारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

सिंदूरी दहकी लाली से
भोर सांझ शरमाएं
सोच रहे हैं हाय हया सा
रंग कहाँ से लाएं

कभी बर्फ सी शीतल लगतीं, कभी लाल अंगारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

गेंदा गुड़हल गुलमोहर क्या
चम्पा लिली चमेली
चूम रहे हैं बारी बारी
मिलकर अरुण हथेली

कोई आखिर हो सकता है , कैसे इतना प्यारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

तन मन जीवन को महकाती
मलय पवन सी हो तुम
पापी को पावन कर जाती
यज्ञ हवन सी हो तुम

कभी लोक की लौकिकता हो , कभी अलौकिक धारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

तुम्हीं असम का सादापन हो
तुम जादू बंगाली
तुम कश्मीरी कशिश कयामत
तुम नर्तन संथाली

तुम पर हमने एक ह्रदय यह , बार करोड़ों हारा
अदभुत अनुपम अतुलनीय है , प्रियवर रूप तुम्हारा !!

आलोकेश्वर चबडाल
नई दिल्ली ।

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