November 21, 2024

जापान में एक मास्टर थीफ हुआ है। एक झेन स्टोरी है। एक चोर है जो साधारण चोर नहीं है। वह मास्टर ही कहा जाता है। वह चोरी का कला-गुरु है पूरा का पूरा! और उसकी इतनी प्रसिद्धि है कि जिस घर में वह चोरी कर लेता है, उस घर के लोग दूसरों से कहते हैं कि पता है, हमारे घर मास्टर थीफ ने चोरी की है! क्योंकि साधारण चोरी वह करता ही नहीं।

हां, यह कीमत की बात है कि उनके घर में वह आदमी घुस गया। साधारण घरों में तो वह कदम नहीं रखता। तो लोग चर्चा करते हैं कि हम साधारण लोग थोड़े ही हैं, हमारे घर फलां चोर घुस गया था। और वह कभी नहीं पकड़ा गया है।

वह बूढ़ा हो गया है। उसका लड़का जवान है। वह लड़का एक दिन उससे कहता है कि अब आप तो बूढ़े हो गए, कितने दिन के हैं, कहा नहीं जा सकता। यह अपनी कला मुझे सिखा दें।

तो वह चोर उससे कहता है कि कला के साथ यही खराबी है कि उसे सिखाना मुश्किल है। वह चोर कहता है कि कला के साथ यही खराबी है। मैं कोई साधारण चोर थोड़े ही हूं जो तुझे चोरी सिखा दूं! चोरी अगर मेरा व्यवसाय हो तो तुझे सिखा सकता हूं। धंधा सिखाया जा सकता है; और कला नहीं सिखाई जा सकती। चोरी मेरी कला है, वह मेरा आनंद है। वह कोई ऐसा मामला नहीं है कि मैं सिर्फ चीजों को चुरा लाता हूं। वह जो चोरी में जो कुशलता है, बहुत मुश्किल है तुझे सिखाना। लेकिन एक कोशिश करके देखेंगे, अगर तेरे भीतर चोर होने की जन्मजात क्षमता है…सभी कलाकार यह मानते हैं कि जन्मजात क्षमता होनी चाहिए…तो वह चोर तो कलाकार है, वह कह रहा है, अगर जन्मजात चोर है तू तो कुछ निकल सकता है, नहीं तो मैं कुछ नहीं सिखा सकता। खैर, आज चल।

अंधेरी रात है, अमावस है, वह उसको लेकर, बेटे को लेकर गया है। बूढ़ा है, उसकी उम्र कोई सत्तर वर्ष है। बेटा जवान है। जब वह एक महल के पास जाकर दीवार तोड़ रहा है, सेंध बना रहा है, तब बेटा उसका कंप रहा है। और उस बूढ़े के हाथ में न कोई कंपन है, न कोई बात है, वह ऐसे दीवार खोद रहा है जैसे अपने घर की दीवार सुधारता हो।

उसका बेटा कहता है कि आप यह क्या कर रहे हैं! जरा भी घबरा नहीं रहे हैं? कोई आ जाए, कोई पकड़ ले, कोई आवाज हो जाए। उस बूढ़े ने कहा, ये सब बातें हो सकती हैं, अगर मैं घबरा जाऊं। ये सब बातें हो सकती हैं–आवाज भी हो सकती है, कोई आ भी सकता है, पकड़ा भी जा सकता हूं–अगर मैं घबरा जाऊं। ये सब बातें, बेटे, भय में घटित होती हैं। इनकी वजह से भयभीत नहीं होता कोई, भय की वजह से ये सब बातें घट जाती हैं। तू चुपचाप खड़ा रह। लेकिन वह बेटे से कहता है, तू कंप क्यों रहा है? वह कहता है, कंपूं नहीं? मेरे तो हाथ-पैर ढीले हो रहे हैं। मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा!
दूसरे के घर में प्लानिंग अपनी नहीं चल सकती। कोई प्लान नहीं है, दरवाजा कहां है, दीवार कहां है, कुछ पक्का पता नहीं है। कहां नौकर सोता है, कहां पहरेदार है, कुछ पक्का पता नहीं है। बंदूक है, तलवार है, क्या है, कुछ पता नहीं है। कब क्या हो जाए, बिल्ली कूद जाए, बर्तन गिर जाए, कुछ पता नहीं है, सब अनप्लांड है। तो सिर्फ होश काफी है। वह कहता है कि सिर्फ होश काफी है कि क्या हो रहा है, उसके साथ हम रिएक्ट कर सकें।

यह जो सारे जीवन की जो सिचुएशन है, वह भी ऐसी ही है, अगर बहुत गौर से हम देखें। वहां कहां क्या हो जाए, क्या पता है! अभी हम यहां बैठे हैं, एक क्षण में क्या होगा, क्या पता है! कुछ भी पता नहीं है। अभी क्या हो जाए, क्या पता! यह मकान गिर जाए, कोई भूकंप आ जाए, क्या हो जाए, क्या पता! अभी कल्याण जी प्रेम से बुला लिए हैं, उनका दिमाग खराब हो जाए, वह सबको निकाल बाहर कर दें, क्या पता है! यह सब हो सकता है न!

तो हम कोई ऐसे जी ही नहीं सकते कि हम पहले से सब बना-बना कर जीएं। और जो बना-बना कर जीएगा, वह आदमी जीता ही नहीं। उसका जीना एक तरह का बारोड और उधार और बासा है। जीने के लिए पूरी अगर बात हो, तो जिंदगी की पूरी स्थिति में हमें सजग होकर जीना चाहिए। और एक-एक स्थिति की चुनौती का सामना करना चाहिए और जो उससे निकल आए।

तो ठीक कैरेक्टर के आदमी को मैं यह मानूंगा कि वह हरेक सिचुएशन में सजग होकर जी रहा है। जो भी समय आए, जो भी जिंदगी मौका लाए, वह जागा हुआ जी रहा है। जो होगा, वह करेगा। न उस करने के लिए कोई पछतावा है पीछे। पछतावा सिर्फ सोए हुए आदमी को होता है, क्योंकि वह यह सोचता है कि इससे अन्यथा भी मैं कर सकता था। जागा हुआ आदमी कहता है, मैं जागा हुआ था, अन्यथा कुछ हो ही नहीं सकता था। जो हुआ है वह हुआ है, बात खत्म हो गई है। जो हो सकता था वह मैंने किया, क्योंकि मैं पूरा जागा था। इससे ज्यादा मैं हूं ही नहीं। इससे ज्यादा कोई उपाय ही नहीं है।

इसलिए जागा हुआ आदमी न पीछे लौट कर देखता है, न पछताता है, न दुखी होता है। न जागा हुआ आदमी आगे के लिए बड़ी योजना बनाता है, हिसाब करता है, सब तय करके चलता है, ऐसा कुछ भी नहीं है। जागा हुआ आदमी जीता है। और तब जीने में जो सघनता आ जाती है उसकी, क्योंकि न वह अतीत में होता है, न भविष्य में होता है। वह यहीं होता है, अभी होता है। तो पूरी की पूरी जो इंटेंसिटी चाहिए जिंदगी की, सघनता, वह उसको उपलब्ध हो जाती है। और उस क्षण में वह जो जानता है–वह जो आप पूछते हैं कि सब सापेक्ष है–उस क्षण में जिसे वह जानता है वह निरपेक्ष है। उस निरपेक्ष पर ही सारे सापेक्षों का आवर्तन, आना-जाना है।

ओशो
Osho

(Ajay Singh की वॉल से)
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