November 21, 2024

के. पी. अनमोल को प्रयोगधर्मी ग़ज़लकार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी

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*– सोनिया वर्मा*

आप छोटे हों या बड़े, मेहनत, लगन और निरंतर अभ्यास से ही क़ामयाबी मिलती है। सतत प्रयत्न ही मात्र एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से आप उच्च शिखर तक पहुँच सकते हैं। फिर उस मुकाम पर क़ायम रहने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है। यह लिखने या सुनने में जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। आप संभल नहीं पाए, थोड़ी-सी भी चूक आपकी क़ामयाबी के रास्ते की रूकावट बन जाएगी। मुकाम पाना जितना कठिन है। उससे कहीं ज़्यादा कठिन है उस मुकाम पर क़ायम रहना। साहित्य जगत में नित नये-नये प्रयोग हो रहें हैं। आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में ख़ुद की पहचान बनाए रखना मुश्क़िल लगता है। निरन्तर ख़ुद को तराशते हुए, नये-नये प्रयोग करते हुए अपना नाम सबकी जुबां पर लाने वाले ग़ज़लकार हैं के० पी० अनमोल। क़ामयाबी पाने का हुनर इनसे ब-ख़ूबी सीखा जा सकता है।

वर्ष 2019 में के० पी० अनमोल का दूसरा ग़ज़ल संग्रह आया था ‘कुछ निशान क़ागज़ पर’ और हाल में प्रकाशित इनका तीसरा ग़ज़ल संग्रह है ‘जी भर बतियाने के बाद’। अनमोल की ग़ज़लों से अनमोल की उम्र का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इनके शेर बहुत सलीक़े से अपनी बात रखते हैं। ऐसा इनकी उम्र के बहुत कम लोग कर पाते हैं।

साहित्य की दुनिया में अपना नाम बनाने की चाह में कुछ भी कर गुज़रने वाले लोगों के लिए अनमोल का यह शेर अच्छी सीख देता नज़र आता है। अधिकतर युवा मंज़िल पाने की चाहत में बस दौड़ते ही जा रहे हैं। दो पल रूककर सही और ग़लत का विचार भी नहीं करते। अनमोल अपनी क़ामयाबी की वजह कहीं न कहीं ठहराव को ही मानते हैं-

हमारे ज़ेह्न को ठहराव है पसंद ‘अनमोल’
नशे में मस्त ये रफ़्तार हम न झेलेंगे

जीवन-रेस में दौड़ें, ख़ूब दौड़ें मगर बस इतना ध्यान रहे कि कोशिश हज़ार करे कोई हराने की मगर कभी हार न मानें। कुछ इस ही तरह की सीख देता यह शेर देखें-

अगर तू रेस में उतरे तो फिर ये ध्यान रहे
थकान लाख हो लेकिन बदन की हार न हो

रास्ते की हर एक कठिनाई को सहकर निरंतर चलने वाले व्यक्ति के क़दमों में क़ामयाबी होती है और वह जिन-जिन राहों से गुज़रता है वह औरों का मार्ग-दर्शन करती है। मेहनत वालों को इसलिए कभी हार न मानने की सीख देता शेर-

मेहनत करने वालो! मेहनत वाले का
वक़्त के पन्ने पर सिग्नेचर रहता है

दूसरों की क़ामयाबी से जलने वाले, ग़लत रास्ता बताने वाले बहुत लोग हैं पर सही रास्ता बताने वाले लोग बहुत कम। ऐसे लोगों के कारण ही इस दुनिया में थोड़ी अच्छाई बची हुई है। सभी दोष से मुक्त समाज का सपना देखना कोई ग़लत बात तो नही है, इसकी कोशिश हम में से ही किसी न किसी को करनी होगी।दोष मुक्त समाज का सपना साकार करने के लिए शायर के० पी० अनमोल का मन भी मचलता है, वे कहते हैं कि

कब तक समझ न पाएँगे इक-दूसरे को हम
कब तक जड़े रहेंगे अंधेरे उजास पर

पसरी हैं आसपास में जितनी बुराइयाँ
मिलकर अगर लड़े तो उन्हें मार देंगे हम

अपना काम निकालने के लिए लोग इधर-उधर की बातें, दूसरों की चापलूसी करने से भी बाज नहीं आते। इन्हीं लोगों के लिए अनमोल ने कहा है कि

हमारे कान कोई डस्टबिन हैं
जो इनमें फेंक दो बेकार बातें

यह कुछ ऐसा समय है जहाँ जीवन में थोड़ी-सी कठिनाई आते ही लोग आत्महत्या कर लेते हैं या करने की सोचने लगते हैं। आजकल ऐसा हर उम्र के लोग करते नज़र आ रहे हैं। वर्तमान में यह समस्या एक भयावह रूप लेती जा रही है। छोटी-सी अनबन हो, माता-पिता की डांट, टीचर की डांट हो या कोई हार; लोग अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। यह दर्शाता है कि वर्तमान में लोगों की मानसिक स्थिति कितनी कमज़ोर होती जा रही है और सहनशक्ति बिल्कुल ख़त्म हो गयी है। इसलिए लोगों को हर समस्या का समाधान आत्महत्या ही लगता है। यह बात अनमोल के मन को किस तरह आहत करती है, उनके शेर से आप समझ सकते हैं-

सहसा यूँ क्या हुआ कि ये मरने के फ़लसफ़े
जितने कठिन थे उतने ही आसान हो गये

उक्त शेर शायर की मार्मिक स्थिति का परिचय करवाता है। अपने मन की बात, अपनी उलझनें किसी को कह न पाने की अवस्था अवसाद को जन्म देती है। अकेले रहना इसकी सबसे बड़ी वजह है। भागती-दौड़ती ज़िंदगी से अपने या अपनों के लिए दो पल का समय निकालना बहुत मुश्क़िल है। यह बात हम सभी जानते हैं, समझते हैं और कहीं न कहीं महसूस भी करते हैं। वक़्त रेत की मानिंद फिसलता जा रहा है और हम कुछ कर भी नहीं सकते। अनमोल चाहते हैं कि थोड़ा रुकें और विचार करें अपने रिश्तों के बारे में-

आजकल वक़्त की चाहत के हैं मारे रिश्ते
किसको फ़ुरसत कि घड़ी भर को निहारे रिश्ते

हम सभी समाज में रहते हैं तो हमारा संबंध समाज की हर एक चीज़ से होता है, चाहे वे जीव-जंतु हों या पेड़-पौधे। आप इन संबंधों को मानें या न मानें, निभाएँ या न निभाएँ पर संबंध तो बन जाता है। हम अपने आसपास को कितनी बारिकी से देखते हैं। अपनी प्रकृति को कितना समझते हैं और इसका कितना और किस तरह से ध्यान रखते हैं। अनमोल के शेरों से यह तो ज्ञात होता है कि वे प्रकृति प्रेमी, जीव प्रेमी तो हैं ही साथ ही उनके रख-रखाव व बचाव का पूरा ध्यान भी रखते हैं। जंगल और जीव-जंतु किस तरह गमलों और जंगल सफारी, चिड़ियाघरों में सिमटकर रह गये हैं, इन शेरों में देखें-

काश कभी हम दो पल फ़ुरसत में सोचें
हाल धरा का क्या से क्या बन रक्खा है

कैसे गज भर छाँव सड़क तक आयेगी
गमलों में जब सारा ही वन रक्खा है

एक रिश्ता और है समाज में मालिक और नौकर का, जो सदियों से वैसे के वैसा ही है। चंद रुपयों की ख़ातिर कैसा भी काम मालिक अपने मुलाज़िम से करवा लेता है। नौकर चाहे या न चाहे उसे करना ही होता है। एक नौकर का दर्द बयान करता शेर-

आप मालिक हैं कहें जो भी हमें करना है
आपके सुर में हमें सुर भी मिलाने होंगे

जमाना चाँद तक पहुँच गया पर कुछ लोगों की सोच टस से मस नहीं हुई। पुरानी परम्पराओं और धारणाओं को गाँठ बाँधे उसी पर चलने वाले लोग कूप-मंडूक बने हुए आज भी हैं। ऐसा कोई न कोई व्यक्ति आपको आसपास मिल ही जाएगा। जिस प्रकार ठहरा पानी बदबू देने लगता है, वही हाल सोच का भी है-

बहुत बेचैन करती है सड़न की बू मेरे मन को
किसी की सोच के भीतर अगर ठहराव दिखता है

आप कहीं भी चले जाइए, अपने वतन की, अपने देश की मिट्टी की महक आती रहेगी। कमाने-खाने के मोहवश लगभग हर एक इंसान ख़ानाबदोश वाला जीवन जी रहा है। केवल विदेशों में जाने वाले ही नहीं बल्कि नौकरीपेशा लोगों की भी यही दास्तान है। इस दर्द को अनमोल ने जिया है। इस टीस को दर्शाता उनका एक शेर-

गाँव को अपने भीतर हर दम पाते हैं
परदेसी बस परदेसी कहलाते हैं

उम्र की इक सीमा के बाद, जीवन की उलझनों से जुझने के बाद, दुख-दर्द सहने के बाद समाज और परिवार का मोह जाता रहता है। नश्वर शरीर इक दिन मिट्टी हो जाएगा, फिर क्या बचेगा? यह इक प्रश्न मनुष्य को आध्यात्म की और ले जाता है। के० पी० अनमोल बहुत सरल हृदय के व्यक्ति हैं। प्रकृति, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं से इन्हें कितना भी लगाव हो पर सब नश्वर है, इसका भान इन्हें रहता ही है। स्थूल देह भी साथ छोड़ देती है। इनकी इसी आध्यात्मिक सोच का परिणाम है यह निम्न शेर-

किसको होता है मोह मिट्टी से
कौन रखता है ध्यान मिट्टी का

अस्ल में चाँद-तारे मिट्टी हैं
यानी है हर गुमान मिट्टी का

साहित्य से जुड़ा व्यक्ति अपने अनुभव, अपनी व्यथा, अपनी आप-बीती, सामाजिक व्यथा और थोड़ी-सी काल्पनिकता का समावेश कर अपने शेर कहता है। अनमोल के अधिकतर शेर अनुभव वाले लगते हैं, जिन्हें वे मात्र शब्दों का जामा पहनाकर बहर में व्यवस्थित करने का काम करते हैं। अनमोल की सहृदयता और कोमलता है औरतों को समाज में पुरूषों के समान स्थान और हक़ देने की बात करना। औरतों पर होने वाले अत्याचारों पर वे कहते हैं कि

वो कर सकेगा अदब औरतों का क्या ‘अनमोल’
जो आँख ही से बदन नोंचता निकलता है
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एहसान औरतों का, मानो कभी तो मर्दो!
वरना कहाँ थे तुम यह, संसार देखने के
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अपने घरों की औरतों का एहतराम कर
इनकी वजह से ही तो तेरा ख़ानदान है

तमाम बोझ तले दबा हो इंसान पर जीवन में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति अवश्य होता है, जो उसे दो पल का सुकून दे सके। अनमोल सूक्ष्म भावों को भी शेर में ढालने का हुनर जानते हैं यह इनकी बड़ी ख़ूबी है। प्यार अनमोल के जीवन का एक अहम हिस्सा है, जो इन्हें तमाम कठिनाइयों से जूझने की ताक़त देता है। अपनी उसी ताक़त के लिए अनमोल कहते है कि

काम के बोझे में तेरे कॉल ऐसे हैं कि ज्यूँ
रेल के लम्बे सफ़र में खिड़कियाँ रक्खी गयीं

इस शेर को आध्यात्मिक शेर भी कह सकते हैं और दूसरे अर्थ में एक प्रेमी का भाव लिए शेर भी अर्थात द्विअर्थी शे’र है यह-

हराम करके हर इक रंग ख़ुद पे दुनिया का
क़ुबूल कर लिया है इक तेरे ख़याल का रंग

अनमोल की शायरी में हर प्रकार का फ्लेवर आपको मिलेगा, जैसे प्रकृति, आध्यात्म, जीवन की जद्दोजहद, सामाजिक विद्रुपताएँ, राजनीतिक पक्ष, प्रेम इत्यादि जो यह दर्शाता है कि अनमोल एक चिंतनशील रचनाकार है। इन्होंने विडियो कॉल, ब्लैक एंड व्हाइट जैसे अंग्रेजी शब्दों का भी अच्छा प्रयोग किया है। मोबाइल के माध्यम से नयी और पुरानी पीढ़ी को जोड़ता एक शेर देखें-

ब्लैक एण्ड व्हाइट नानी हो उठती है रंगीन
जाने कितने रंग नवासी भर जाती है

के० पी० अनमोल के पहले ग़ज़ल संग्रह में जो थोड़ी प्रींटिंग की ग़लतियाँ रह गयी थीं, उसकी इन्होंने दूसरे संग्रह में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है बल्कि इसके शेर और पुष्ट और सूक्ष्म भाव लिए हुए हैं। बेहतरीन कहन और सरल सहज व आम बोल-चाल की भाषा का प्रयोग पाठक को बाँधे रखता है। अंत की छ: ग़ज़लों में अनमोल ने नये प्रयोग किये हैं अर्थात अनमोल को प्रयोगधर्मी ग़ज़लकार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नित नये प्रयोग अनमोल के नाम को ग़ज़लों की दुनिया में स्थायीत्व प्रदान करने वाले हैं। अनमोल स्वयं भी इच्छा रखते हैं कि

ज़िक्र भले छोटा हो लेकिन हो ‘अनमोल’
रामकथा में ज्यूँ क़िस्सा केवट का है

इनके नये प्रयोग ग़ज़ल की दुनिया में केवट की तरह तो नही परंतु हनुमान की तरह इन्हें अवश्य स्थान दिलाएँगे। नये सीखने वालों के लिए इस संग्रह में बहुत कुछ सीखने-समझने लायक है। कहन की सरलता आम पाठक के दिलो-दिमाग़ पर अपना प्रभाव छोड़ती है। कुछ बहुत अच्छे आज़ाद शेर भी पुस्तक के अंत में दिये गये हैं। पुस्तक की छपाई बहुत अच्छी व साफ़-सुथरी है इसके लिए श्वेतवर्णा प्रकाशन को बहुत बधाई। पुस्तक का कवर नाम के अनुरूप है, अच्छा है। पुस्तक के नाम की बात करूँ तो कुछ हद तक ठीक ही है की अनमोल या कोई भी शायर अपने शेरों से ही बात करता रहता है। पुस्तक की सभी ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं। नये प्रयोग की दृष्टि से पुस्तक सभी को एक बार ज़रूर पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक संग्रहणीय है। ‘जी भर बतियाने के बाद’ ग़ज़ल की बेहतरीन पुस्तकों में अपना स्थान बना पाए, इसी कामना के साथ के० पी० अनमोल को इस पुस्तक के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

समीक्ष्य पुस्तक- जी भर बतियाने के बाद
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार- के० पी० अनमोल
प्रकाशक- श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य- 150 रुपये
पृष्ठ संख्या- 99

रायपुर (छत्तीसगढ़) निवासी सोनिया वर्मा समर्थ दोहाकार, ग़ज़लकार एवं समीक्षक हैं।

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