November 21, 2024

भारतीय सांस्कृतिक चेतना के मूल की पहचान है पयोधि का काव्य

0

– जयप्रभा भट्टाचार्य
पीएचडी शोधार्थी
चक्करगाँव,अंडमान

कविता यथार्थ और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण होती है।कवि अपने अनुभव को कल्पना-तत्व के संयोग से एक दृश्य में रूपांतरित करता है,जो भावक की आँखों से होता हुआ हृदय में उतरकर उसके ज्ञान-तंतुओं को स्पंदित करता है।कविता वास्तव में मनुष्य की भावनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति होती है।वह मनुष्य को सृजित करने के क्रम में उसे बुनियादी रूप से बदलना चाहती है। कविता में सुख-दुख,आनंद और हर्ष संवेदना के गहन रेशों से बुने जाकर अपने पूरे प्रभाव के साथ निखरते हैं।यद्यपि यह प्रभाव कवि के अनुभव,संवेदना की तीव्रता,अनुभूति की गहराई,काव्याभ्यास से अर्जित कौशल पर निर्भर करता है।कविता में भाव के अनुरूप रस की निष्पत्ति होती है।
कवि लक्ष्मीनारायण पयोधि के अनुसार, “कवि प्रकृति के स्पंदन में मनुष्य की संवेदना का अन्वेषक और सर्जक होता है।वास्तव में वह कविता में निसर्ग के क्रिया-कलापों के माध्यम से मनुष्यता के सबूत खोजता और उन्हें सत्यापित करता है।(‘सत्य का अन्वेषण और शब्द के रूपाकार’/कला समय,जून-जुलाई 2022,पृष्ठ-65)।
श्री पयोधि कहते हैं कि “कविता मेरे लिये आत्मानुसंधान का माध्यम है।नेपथ्य से परम भाव की खोज का निमित्त भी।”(वही/पृष्ठ-64)।इसलिये वे शब्दों से आह्वान भी करते हैं,*”मेरे सपनों का बाना पहन/उतर आओ आँखों में/मैं तुमसे जीवन रचूँगा/तुम्हारे नादवीर्य से/मैं गुँजा दूँगा दिक्काल/शब्द,तुम मंत्र बन जाओ!”*(अंत में बची कविता/पृष्ठ-37)इस कवि का विश्वास है कि किसी भी सच्ची कविता का मन पर प्रभाव मंत्र की तरह होता है।वे अभ्यास से कविता को सिद्ध करना चाहते हैं।इसीलिये वे शब्द को पुकारते हैं,*”अपनी समस्त शक्तियों के साथ/ मेरी कविता में आ विराजो शब्द/मैं तुम्हें सिद्ध कर लूँ!”*(वही)।कविता के बारे में कवि पयोधि का दृष्टिकोण और मत-दोनों स्पष्ट हैं।वे साफ़-साफ़ कहते हैं कि *”शब्द नहीं केवल भूख का घोषणा-पत्र/मंत्र रोटियों का/पसीने की गंध में भींगी/ फ़सलों का सामगान/×××/शगल नहीं/दुनिया को बचा लेने की/आख़िरी कोशिश है/कविता।* (वही/पृष्ठ-38)।
श्री पयोधि यह मानते हैं कि “सार्थक काव्यशब्द के बिना कोई वाक्य कविता की आत्मा के साथ प्रकट हो ही नहीं सकता।” (सत्य का अन्वेषण…./कला समय/जून-जुलाई 2022/पृष्ठ-64)।वे यह भी मानते हैं कि “कविता शब्दरूप और नाद-सौन्दर्य की समन्वित अभिव्यक्ति है।” (वही/पृष्ठ-66)।जैसे- *”फूल की आत्मा सुगंधित/हैं अधर पर अर्चनाएँ/एक दुख हो तो कहे मन/अनगिनत हैं वेदनाएँ/×××/पाँखुरी की मौन भाषा /भेद सारे खोलती है/×××/कामना की इन्द्रधनुषी/एक तितली डोलती है।”*(उजालों की तलाशी/पृष्ठ-75)।
लक्ष्मीनारायण पयोधि के काव्य का समग्रता में अध्ययन और अनुशीलन करने पर यह निष्कर्ष उभरता है कि इस कवि की कविताएँ अपनी सहज बुनावट और बनावट के साथ हमें गहरे दर्शन की ओर ले जाती हैं।पयोधि जनजातीय जीवन की सहजानुभूतियों और अंतर्क्रियाओं के माध्यम से हमें उन सांस्कृतिक मूल्यों की वास्तविक समझ से परिचित कराते हैं।इसलिये एक वाक्य में कहें तो अपने वस्तुगत,भावगत और रूपगत वैविध्य के साथ भारतीय संवेदना के स्तर पर सांस्कृतिक चेतना के मूल की पहचान है पयोधि का समग्र काव्य।
प्रख्यात आलोचक डॉ. धनंजय वर्मा के अनुसार,”पयोधि की कविताओं में चेतना का यह विस्फोट सुखद है।” कविता संग्रह ‘अंत में बची कविता’ की कविताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा भी- “यह महज संयोग नहीं है कि पयोधि की कविताओं में ऋषि, मंत्र,आरण्यक आदि शब्द आते हैं और कोई भी शब्द अपनेआप में संपूर्ण नहीं होता,उसके पीछे एक चेतना विद्यमान होती है।” (वही/पृष्ठ-64)।वे आगे यह भी कहते हैं कि “शब्द को कामधेनु बनाकर उसके थनों से इच्छित अर्थ-ध्वनियाँ दुह लेने की कामना महज संयोग नहीं है।यह एक साधक की सृजन-सामर्थ्य है।” (वही/पृष्ठ -64-65)।और कवि पयोधि के लिये तो कविता का जन्म किसी पुष्प के खिलने जैसी घटना लगता है।उनकी मान्यता है कि “कविता हो,या पुष्प – दोनों ही अपनी आत्मा की सुगंध से जीवन को आनंदमय बना देते हैं।” इस कवि के अनुसार – *”फूल को सूँघने का अर्थ/अपनी सुगंध को पहचानना है।”* (समय का नाद/पृष्ठ-12)।
लक्ष्मीनारायण पयोधि के काव्य का कथ्य,विचार,भाव,रूप और शैली के आधार पर वर्गीकरण करना चाहें तो वह निम्नानुसार हो सकता है :
1. दार्शनिक चिंतन और आध्यात्मिक भावभूमि का काव्य।
2. प्राकृतिक सौन्दर्य और प्रतीकों के मानवीकरण का काव्य।
3. सामाजिक और व्यवस्थागत विसंगतियों के प्रतिरोध का काव्य।
4. जनजातीय भावलोक का काव्य।
सार रूप में कहा जा सकता है कि लक्ष्मीनारायण पयोधि जीवन की समग्रता के कवि हैं।इसलिये इनकी प्रत्येक कविता भावसंपूर्णता का बोध होता है।■

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *