नहीं रहे रमेश नैयर
छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश के दिग्गज सम्पादकों में एक रमेश नैयर अब हमारे बीच नहीं रहे। आज अपरान्ह 4 बजे उनका निधन हो गया। यह ख़बरजब सुनी तो हृदय पीड़ा से भर गया है। मैं उनके साथ जुड़े अनेक संस्मरणों को अब याद कर रहा हूं। मेरा सौभाग्य रहा कि पिछले सन 1979 से उनसे लगातार मधुर संबंध बना हुआ था। जब मैं 1979 में रायपुर युगधर्म से जुड़ा, तभी से नैयरजी से मेरा परिचय हो गया था। वे बिलासपुर से शुरू हुए अखबार लोकस्वर के प्रथम संपादक होकर वहां चले गए थे। और संयोग से मैं भी दैनिक युगधर्म का संभागीय प्रतिनिधि होकर बिलासपुर चला गया था। तब वहां अकसर मेरी मुलाकात नैयर जी से हो जाया करती थी। कभी प्रेस में तो कभी वे जिस होटल में रुके थे, वहां हो जाती। नैयर जी से मिलकर हमें कुछ न कुछ नई जानकारियां मिलती थी। उनके विनोदपूर्ण व्यक्तित्व का सानिध्य मिलता तो हम नौजवानों में अतिरिक्त ऊर्जा भर जाती थी। लोकस्वर जब जाता, तो वहां प्रबंधक के रूप में कार्य कर रहे बजरंग केडिया जी से भी भेंट होती। वही मेरी मुलाकात उस समय के नए-नए पत्रकार बने अनिल पांडेय, राजू तिवारी, सईद खान, दिनेश ठक्कर आदि से होने लगी, जो बाद में मेरे परम मित्र बन गए। दो साल बाद मैं रायपुर आ गया। फिर नैयरजी भी रायपुर आ गए। कुछ समय बाद वे लोकप्रिय अखबार दैनिक ट्रिब्यून में उप संपादक के रूप में नियुक्त होकर चंडीगढ़ चले गए। मैं व्यंग्य लिखा करता था, इसलिए ट्रिब्यून में भी अपनी व्यंग रचनाएं भेजने लगा। नैयरजी नई मेरे व्यंग्य को और अधिक तराश कर प्रकाशित किया करते थे । रचना छपने के बाद उसकी कटिंग भी भेजते और मानदेय भी भिजवाया करते थे। दैनिक ट्रिब्यून के बाद नैयर जी दिल्ली से शुरू हुए साप्ताहिक संडे आब्जर्वर में संपादक बन कर आ गए। तब जब भी दिल्ली गया तो उनसे मिलने उनके दफ्तर भी जाता रहा। उस वक्त रमेश शर्मा राष्ट्रीय सहारा में रिपोर्टर था। दिल्ली में जब गया, तब रमेश के साथ मेरा काफी समय बीतता। कभी कभी उसके घर पर भी रुका करता । कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित अंबादीप बिल्डिंग में रमेश से मिलने जाता ही था। उस बिल्डिंग के सामने संडे ऑब्जर्वर का कार्यालय था तो रमेश के साथ नैयर जी से भी मिलने पहुंच जाता था। नैयर जी बड़ी आत्मीयता के साथ हम सबका स्वागत करते थे।
कुछ वर्ष तक सन्डे ऑब्जर्वर में काम करने के बाद नैयरजी रायपुर आ गए क्योंकि यहां से नवभास्कर नामक अखबार शुरू होना था। जो बाद में भास्कर बन गया। उस वक्त मैं नवभारत रायपुर में सिटी चीफ था । नैयर जी चाहते थे कि मैं भास्कर ज्वाइन कर लूँ। अंततः मैं नवभारत छोड़कर भास्कर से जुड़ गया। पहले मैं यह सिटी चीफ था। बाद में किसी कारणवश भास्कर छोड़ दिया तो नैयरजी हमेशा यह सोचते रहे कि मैंने उनके कारण छोड़ा है। लेकिन मैंने उन्हें हमेशा स्पष्ट किया कि आप नहीं, कोई और कारण था। इस बीच मैंने अपनी पत्रिका सद्भावना दर्पण का प्रकाशन भी शुरू कर दिया था।फिर उसी पत्रिका में पूरे प्राणपण से भिड़ गया। नैयरजी मेरी पत्रिका के आजीवन सदस्य भी बने। नैयर जी से मेरी मुलाकात निरंतर होती रही। अनेक आयोजनों में हम दोनों मिलते रहे। जब सद्भावना दर्पण को मध्यप्रदेश का पहला रामेश्वर गुरु पत्रकारिता सम्मान मिला, तो इसकी सूचना मैंने नैयरजी को दी तो वे बड़े प्रसन्न हुए । भास्कर में रहते हुए मुझे बेस्ट रिपोर्टिंग के लिए भिलाई का केपी नारायण पत्रकारिता सम्मान मिला। उस कार्यक्रम में रमेश नैयर जी भी उपस्थित थे । व्यंग्य लेखन में मेरी गहरी रुचि देखकर नैयर जी ने एडिट पेज में प्रति सप्ताह मेरा साप्ताहिक स्तम्भ ही शुरू कर दिया। कहने का मतलब यह है कि नैयरजी ने मेरी प्रतिभा को दबने नहीं दिया। नैयर जी खुद व्यंग्यप्रेमी थे और भास्कर के अंतिम पेज पर अकसर व्यंग्य लिखा करते थे।
शिक्षकीय कर्म से पत्रकारिता में
नैयरजी का प्रारंभिक जीवन देखें तो पढ़ाई करने के बाद वे भिलाई में शिक्षक हो गए थे ।तब उन्हें तीन सौ रुपये प्रति माह मिला करते थे। लेकिन पत्रकारिता के शौक के कारण वे एक सौ साठ रुपये के वेतनमान में 1965 में युगधर्म में काम करने के लिए राजी हो गए। यह अपने आप में एक अनोखी बात थी। माता-पिता नाराज तो हुए लेकिन अंततः उन्हें बेटे की इच्छा का सम्मान करना पड़ा। पत्रकारिता करते हुए नैयर जी ने कुछ अच्छी रिपोर्टिंग भी की। जिसमें ट्रेन हादसे की जानकारी मिलने पर किसी तरह वहां पहुंच कर रिपोर्टिंग की। सन 1966 में जब प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या हुई तो जगदलपुर जाकर रिपोर्टिंग करने को नैयर जी खुद गए।
नैयरजी का जन्म 10 फरवरी, 1940 को कुंजाह (अब पाकिस्तान) में हुआ था। विभाजन की त्रासदी भोगते हुए उनका परिवार भारत आया। और विभिन्न स्थानों में रहते हुए अंततः उनके पिता और परिजन छत्तीसगढ़ आ कर स्थायी रूप से यहीं बस गए। आपने एम.ए. (अंग्रेजी) सागर विश्वविद्यालय, एम.ए. ( भाषा विज्ञान) रविशंकर विश्वविद्यालय किया। युगधर्म ‘, ‘ देशबंधु ‘, ‘ एम.पी. क्रॉनिकल ‘ और ‘ दैनिक ट्रिब्यून ‘ में सहायक संपादक रहे । ‘ दैनिक लोकस्वर ‘, ‘ संडे ऑब्जर्वर ‘ (हिंदी) और ‘ दैनिक भास्कर ‘ और समवेत शिखर का संपादन किया । आकाशवाणी, दूरदर्शन और अन्य टी.वी. चैनलों से अनेक वार्त्ताओं, रूपकों, भेंटवार्त्ताओं और परिचर्चाओं में सक्रिय भागीदारी रही। अपने कुछ टी. वी. सीरियल और वृत्तचित्रों का पटकथा लेखन भी किया । पत्रकारिता और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में आपकी भागीदारी होती रही ।
नैयर जी ने चार पुस्तकों का संपादन किया। अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी की सात पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। आप ‘ दैनिक भास्कर ‘, अंग्रेजी दैनिक ‘ द हितवाद ‘, रायपुर के सलाहकार संपादक भी रहे। ‘साधो जग बौराना’ उनके द्वारा संपादित पुस्तक है जिसमें विभिन्न व्यंग्यकारों की रचनाओं का संकलन। सौभाग्य से मेरा भी एक व्यंग्य उसमें समाहित है । ‘बुक ऑफ चारा रिकॉर्ड्स’ में उनकी व्यंग्य रचनाएँ हैं। ये व्यंग्य समय-समय पर उन्होंने भास्कर में रहते हुए लिखे थे। इस पुस्तक के फ्लैप में नैयर जी के बारे में सटीक लिखा गया है कि “श्रेष्ठ स्तंभकार के रूप में चर्चित श्री नैयर ने सदैव वैचारिक गरमाहट का वातावरण बनाए रखा । दृष्टि की मौलिकता, विश्लेषण की क्षमता और व्यंग्यपूर्ण चुटीली भाषा के कारण उनके लेखन को गंभीरता से लिया जाता है । स्थितियों की पड़ताल, विसंगतियों के पर्दाफाश और समाज में फैले पाखंड को उघाड़ने में इस संग्रह की रचनाएँ पूरी तरह सफल हैं । ये रचनाएँ छोटी हैं, चुटीली है, नावक के तीर की भांति गहरी चोट करती हैं । जहाँ एक ओर इनमें सहज हास्य दिखाई देता है वहीं व्यंग्य की गंभीरता और मारक क्षमता में ये रचनाएँ दक्ष हैं । अपने समय की उथल-पुथल, आम आदमी का कठिन संघर्ष, दोगली राजनीति और मुखौटों से भरे समाज को अच्छी तरह समझने के लिए इन रचनाओं से गुजरना जरूरी है । हास्य-व्यंग्य, ‘ विट ‘ और लालित्य की हिंदी तथा उर्दू की मिश्रित परंपरा का एक साथ रसास्वादन इन रचनाओं से होता है।”
नैयर जी को सुनना अपने आप में एक अनुभव होता था। उर्दू मिश्रित उनकी नफासत पूर्ण भाषा का आनंद हम लोग प्रायः लेते रहे हैं। उनके भाषण बड़े रोचक होते । उनके भाषण में चुटकुले और शेरोशायरी का अद्भुत समावेश होता इसलिए वे खूब सुने जाते थे। नैयर जी कुछ वर्षों तक फेसबुक में भी सक्रिय रहे ।फिरस्वास्थ्य कारणों से घर पर आराम करने लगे। लेकिन समय-समय पर लिखने पढ़ने की कोशिश करते रहे। प्रायःफोन करके मुझसे और कुछ मित्रों से बात करते थे। मैं भी उनसे बातचीत करता रहता । कुछ वर्ष पहले उन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से पत्रकार भूषण का सम्मान मिला था। 2022 में मुझे साहित्य भूषण का सम्मान प्राप्त हुआ, तो नैयर जी ने फोन करके मुझे बधाई दी। मेरी हर उपलब्धि पर वे फोन करके बधाई देते रहे। यही उनका बड़प्पन था। दिल्ली जाने से पहले एक बार फिर मैं उनसे बात करना चाह रहा था लेकिन दोनों उनके दोनों नंबरों पर लंबी घंटी गई । उन्होंने उठाया नहीं। मैं समझ गया कि वे इस समय स्वास्थ्य लाभ लेरहे होंगे। मैं उनसे मिलने घर जाने वाला था लेकिन मुझे क्या पता था कि अब उनकी अंतिम यात्रा में मुझे शामिल होना पड़ेगा। उनको शत शत नमन।