‘दिनकर’ के गाँव में एक दिन..
30 अक्टूबर, 2022 को नालंदा में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास नई दिल्ली द्वारा आयोजित हुए सूर्य महोत्सव और कवि सम्मेलन में शामिल होना मेरे जीवन की याद BHगार घटना बन गई। इस दौरान अनेक साथियों से मुलाकात हुई लेकिन दो विभूतियों का विशेष उल्लेख करना चाहूँगा : एक थे जलपुरुष के नाम से विख्यात अलवर राजस्थान के राजेंद्र सिंह और दूसरे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के सुयोग्य पुत्र केदार बाबू । कार्यक्रम दूसरे दिन ऐसा अद्भुत संयोग बना कि मुझे दिनकरजी के गांव सिमरिया जा कर उनकी चौखट को प्रणाम करने का सौभाग्य मिल गया। केदार बाबू सूर्य महोत्सव में शामिल होने सिमरिया से नालंदा आए थे । दूसरे दिन नीरज कुमार उन्हें और उनकी धर्मपत्नी को छोड़ने नालंदा से अस्सी किलोमीटर स्थित सिमरिया तक गए। वहाँ से मैं रायपुर के लिए और नीरज कुमार दिल्ली के लिए रवाना हुए।
सिमरिया दिनकर जी का गाँव है। यह गाँव का भी सौभाग्य है, जहां राष्ट्रकवि ने जन्म लिया। यही कारण है कि पूरा सिमरिया दिनकर जी को मानता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि गाँव की अनेक दीवारों पर दिनकर जी की कुछ काव्य-पंक्तियां स्थाई रूप से लिखी गई हैं। यह मेरे लिए अनोखा अनुभव था । कहीं ‘हुंकार’ की कविता की पंक्तियां, कहीं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ तो कहीं कुछ और पंक्तियां दीवारों पर लिपिबद्ध नज़र आईं। ऐसा सौभाग्य बहुत कम कवियों को मिल पाता है। मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी कवि को उसके जन्म स्थान में, उसके महाप्रयाण के बाद, इस तरह का सम्मान प्रदान किया गया हो। दिनकरजी के सुयोग्य पुत्र केदार बाबू के साथ 30 अक्टूबर को भी काफी देर बातचीत होती रही, और दूसरे दिन गेस्ट हाउस में भी उनका सानिध्य मिला। उनके श्रीमुख से मैंने उनकी कविताएं सुनीं, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया। उन्होंने अपनी पुस्तकें भी मुझे भेंट कीं। उनकी सूरज पर लिखी प्रभावशाली कविता सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया ।उनके आग्रह पर मैंने भी अपना एक गीत सुनाया। दूसरे दिन हम उनके साथ सिमरिया पहुँचे। जैसे ही उनके गाँव आने की सूचना मिली, लगभग दस लोग उनसे मिलने उनके घर पहुंच गए।फिर साहित्य की चर्चाएं शुरू हो गई। एक सज्जन बता रहे थे कि चौदह खण्डों में प्रकाशित दिनकर रचनावली की निरंतर खरीदी हो रही है । इसका मतलब यह है कि लोग रचनावली को चाव से पढ़ना चाहते हैं। अतिथियों को केदार बाबू ने स्वल्पाहार कराया तब उन्हें विदा किया। फिर हम और नीरज कुमार घर के भीतर प्रवेश करके राष्ट्रकवि के उपयोग में आने वाली चीजों को ध्यान से देखते रहे। उनकी तस्वीरें भी हमने खींची। घर के आँगन में दिनकर जी की भव्य बहुरंगी प्रतिमा देखकर मन प्रसन्न हो गया। स्वाभाविक है कि हमने उसके साथ तस्वीरें भी खिंचवाई। उसके बाद हम नीरजकुमार के साथ पटना के लिए रवाना हुए। हमारे साथ क्षेत्र के लोकप्रिय जनकवि स्वर्गीय भगवान प्रलय की बेटी डॉ नित्यप्रिया प्रलय भी मौजूद थी। उसे हमने बरौनी स्टेशन पर छोड़ा और आगे बढ़ गए। इस तरह 31 अक्टूबर मेरे लिए यादगार दिन बन गया क्योंकि मुझे राष्ट्रकवि के घर जाकर उनके परिजनों से मिलने का सौभाग्य जो मिला। इसका पूरा श्रेय दिनकर स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरजकुमार को जाता है,जिन्होंने मुझे सूर्य महोत्सव में शामिल होने के लिए एक बड़ी रकम खर्च करके बुलवाया। बड़ी रकम इसलिए कि ट्रेन में जगह नहीं मिल रही थी इसलिए नीरज ने रायपुर से दिल्ली और दिल्ली से पटना का एयर टिकट कटाया,जिसमें छब्बीस हजार लग गए । मुझे लगा वापसी में फिर इतनी ही राशि खर्च होगी इसलिए मेरे आग्रह पर उन्होंने पटना से साउथ बिहार ट्रेन का टिकट कटाया, वो भी फर्स्ट एसी का, जिसका किराया लगभग साढ़े तीन हजार था। एक लेखक की यात्रा के लिए ही तीस हजार खर्च कर देना यह नीरजकुमार जैसे व्यक्तित्व के लिए ही संभव है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि नीरज ही मेरे उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की एक लाख प्रतियां छाप रहे हैं।
गिरीश पंकज
संपादक सद्भावना दर्पण