मुम्बई में कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति सभा
हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि जब दर्शक सिनेमा हॉल से बाहर निकलता है तो उसके चेहरे पर आंसुओं के दाग़ होते हैं मगर होठों पर मुस्कान होती है। यह कथन डॉ हरिवंश राय बच्चन का है। #बच्चन जी ने ऐसा इसलिए कहा कि पहले की हिंदी फ़िल्में सुखांत होती थीं। मगर मन्नू भंडारी के उपन्यास #आपका_बंटी पर बनी फ़िल्म #समय_की_धारा सुखांत नहीं है। पति पत्नी के बिखरते रिश्ते के टकराव में दस वर्ष के बंटी का मासूम मन बार-बार छलनी होता है। बंटी अंततः घर से भाग जाता है और अप्रत्याशित ढंग से उसकी मौत होती है। फ़िल्म का यह अंतिम दृश्य देखकर दर्शकों का भी कलेजा छलनी हो जाता है। उनके चेहरे आंसुओं से तरबतर हो जाते हैं।
सन् 1986 में शिशिर मिश्रा के निर्देशन में बनी फ़िल्म ”समय की धारा’ का क्लाइमैक्स दर्शकों के लिए एक आघात जैसा था। इसलिए यह फ़िल्म व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हुई। हालांकि इस फ़िल्म में शत्रुघ्न सिन्हा, शबाना आज़मी, विनोद मेहरा, टीना मुनीम और मास्टर रवि ने सराहनीय अभिनय किया था। एक और कमी यह थी कि फ़िल्म को मनोरंजक बनाने के लिए जो गीत इसमें डाले गए वे कथा के प्रवाह में अवरोध बनकर सामने आते हैं।
‘आपका बंटी’ उपन्यास के बारे में कई बार यह सुनने को मिला कि इसने कई घरों को टूटने से बचाया। इसे पढ़कर कई दंपतियों ने तलाक़ का विचार त्याग दिया।
मन्नू भंडारी की कहानी #यही_सच_है पर आधारित फ़िल्म #रजनीगंधा में बासु चटर्जी ने जिस तरह गीत संगीत का इस्तेमाल किया है वह फ़िल्म का एक ख़ूबसूरत पक्ष है। गीतकार योगेश के गीत आज भी हमें अच्छे लगते हैं। फ़िल्म रजनीगंधा के गीत कथा को आगे बढ़ाते हैं। मन्नू की नायिका को दो प्रेमियों में से एक का चुनाव करना था। अपने अंतर्द्वंद से बाहर निकल कर नायिका जब दूसरे प्रेमी का चुनाव करती है तो दर्शक उससे सहमत हो जाता है। दर्शक के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान थिरकने लगती है। वह गुनगुनाता हुआ सिनेमा हॉल से बाहर निकलता है। रजनीगंधा को एक तरफ़ व्यवसायिक सफलता मिली दूसरी तरफ़ सन् 1974 में इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फ़िल्म फेयर अवार्ड भी प्राप्त हुआ। सिनेमा के लार्जर दैन लाइफ की इमेज़ के विपरीत बासुदा ने दिनेश ठाकुर, अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा जैसे सामान्य किरदारों को सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर स्थापित किया। इस कामयाबी ने न्यू वेब सिनेमा में जीवंतता का संचार किया।
विश्व हिंदी अकादमी मुम्बई और अबीर इंटरटेनमेंट की ओर से कालजयी कथाकार मन्नू भंडारी ( जन्म 3 अप्रैल 1931 : निधन 15 नवंबर 2021) की स्मृति सभा का आयोजन किया गया। लोखंडवाला, मुम्बई में बुधवार 17 नवम्बर को आयोजित सभा में साहित्यकारों, पत्रकारों और कलाकारों ने उनके रचनात्मक योगदान को याद किया।
मन्नू भंडारी हमेशा सहज और सरल कथाकार के रूप में सक्रिय रहीं। पारंपरिक दिखने वाली उनकी नायिकाएं अपने विचारों में बेहद आधुनिक हैं। राजनीति और अपराध के गठजोड़ पर ‘महाभोज’ जैसा अद्भुत उपन्यास लिखकर उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दी। हिंदी कथा साहित्य में उनका ज़िक्र पहली क़तार के लेखकों के साथ आदर के साथ किया जाता है और हमेशा किया जाता रहेगा।
हिंदी जगत की लोकप्रिय कथाकार आदरणीया मन्नू भंडारी की स्मृति को सादर नमन।
आपका : #देवमणि_पांडेय