तेरी यादों से बातों से मुझे फुरसत नहीं मिलती
तेरी यादों से बातों से मुझे फुरसत नहीं मिलती।
मेरे ख़्वाबों में उभरी जो वही मूरत नहीं मिलती।
कई चेहरे तलाशे है तुम्हारी चाह में मैंने
कही सीरत नहीं मिलती कही सूरत नहीं मिलती।
परिंदों की तरह मैं भी शहर भर भटकता हूँ,
शजर(वृक्ष) उनको नही मिलते मुझे भी छत नहीं मिलती।
मैं बातें भी बुजुर्गों की तरह करने लगा हूँ अब,
मेरी हमउम्र लड़को से कोई आदत नहीं मिलती।
मैं जिनकी याद को महफिल में अक्सर बेंच देता हूँ,
मुनाफा छोड़िए साहब मुझे लागत नहीं मिलती।
मेरे अंदर भी कोई है जो मुझसे रूठ जाता है,
मैं उससे बात कर पाऊँ मुझे मोहलत नहीं मिलती।
R.N.Kabir