November 24, 2024

साहित्य वाचस्पति पं.लोचनप्रसाद पांडेय की पुण्यतिथि पर डाँ. बलदेव जी का आलेख

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राष्ट्र को समर्पित पं . लोचनप्रसाद पाण्डेय की
पद्म पुष्पांजलि
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अन्य समकालीन साहित्यकारों की अपेक्षा पाण्डेय जी की मुश्किलें कुछ ज्यादा दिखाई देती हैं । पहले दो भाषा को ही लें । वे पहले ब्रजभाषा में लिखते थे । तब छत्तीसगढ़ के दो साहित्यकार जगमोहन सिंह ठाकुर और आचार्य जगन्नाथ भानु पूरे हिन्दी प्रदेश में ख्यात हो चुके थे । इनमें प्रथम पाण्डेय जी प्रेम और सौंदर्य के रसिकराज कवि थे , तो दूसरे पिंगलाचार्य । दोनों की भाषा ब्रज आचार्य भानु को गुरुवर मानते थे , उनके सानिध्य का लाभ भी उन्हें मिला , लेकिन ब्रज छोड़ कर उन्होंने हिन्दी में प्रवेश किया , यह एक जोखिम भरा काम था । जबकि ब्रज और हिन्दी का झगड़ा उग्र रूप धारण कर चुका था । इतना ही नहीं , आगे बढ़कर पाण्डेय जी ने उड़िया ही नहीं , छत्तीसगढ़ी में भी लिखने का साहस किया । इसके पीछे उनका उद्देश्य समझ में आता है निम्न पंक्तियों दृष्टव्य हैं –

सुनत हव निंद के घोर
हांड़ा अटावा ले ए कोड़

शायद यह दृष्टि उन्हें भारतेन्दु से मिली हो – भारतेन्दु ने कहीं लिखा है जिन श्रोतों का ग्रामीणों से संबंध है , वे गांव में ऐसी पुस्तक भेज दें , ऐसे गीत सुने , उसका अभिनन्दन करें । इस हेतु ऐसे छोटे – छोटे छन्दों में और साधारण भाषा में बने , परंच गंवारी भाषाओं में अब लोग जानते हैं , जो बात साधारण भाषा में बने , लोगों में फैलेगी , उसी का प्रचार सार्वदेशिक होगा । पं . मुरलीधर पाण्डेय की 14 , 15 और सन् 16 की डायरी मेरे हाथ लगी थी , वे अत्यंत जीर्णशीर्ण अवस्था में मिली लेकिन उससे पता चलता है , पाण्डेय परिवार ने जन जागरण के लिए , राष्ट्रभाषा के विकास के लिए ‘ मंडली ‘ की स्थापना की थी जो नाटक , रामायण और कीर्तन के सहारे चन्द्रपुर जमीदारी के समस्त अंचल को ‘ रतजगा ‘ कराने में समर्थ थी ।

भारतेन्दु युग , द्विवेदी युग की पूर्व पीठिका है , भारतेन्दु के अनुसार ( संवत 1973 के बाद ) हिन्दी नयी चाल में ढली । पांडेय जी के जन्म संवत के समय संयोग है श्रीधर पाठक जैसे स्वच्छन्द प्रवृत्ति के व्यक्ति ने खड़ी बोली में कविता कही । अयोध्यासिंह के नेतृत्व में खड़ी बोली आगे बढ़ी और आचार्य द्विवेदी की कलम है वह मंजी । आचार्य द्विवेदी ने उसे परिमार्जित ही नहीं किया , बल्कि उसे वैज्ञानिक समझ भी दी । जिसका प्रमाण है संपत्ति शाष्व इसका प्रकाशन सन् 1908 में हुआ , पं . लोचनप्रसाद पाण्डेय के शब्दों में मातृभाषा हिन्दी तब सर्व सिद्धी प्रकाशिनी हुई ।

पाण्डेय जी को आचार्य द्विवेदी से न केवल भाषा संस्कार मिले अपितु वैज्ञानिक समझ भी मिली ।

पाण्डेय जी साहित्यकार के साथ ही समाजसेवी भी थे । रूढ़ियों को तोड़ने में उनका ब्राम्हणत्व कहीं बाधक नहीं हुआ । वे किसानों के बीच पले थे । उन्होंने रूढ़ियों एवं कोढ़ियों के सहायतार्थ भी बहुत कुछ किया था । राजनीति के शिकार ‘ मीर ‘ जैसे प्रसिद्ध कवि को खद्दरापोष लेकर दी । हर तरह की मदद की । लेकिन शोषक वर्ग से भी उनको टकराना पड़ा , जब चंद्रपुर इलाके में 53 56 संवत् में अकाल पड़ा , किसान तबाह हो रहे थे , ऊपर से लगान ड्योड़ी- दुगुनी हो रही थी। तब उन्होने हितवाद और लोकमत में लेख लिखा , जिसके प्यारे लाल गुप्त के शब्दों में सरकार चौकन्नी हुई , लेकिन इस घटना के 15-16 वर्ष पहले के पाण्डेय जी ने तत्कालीन परिस्थितियों पर हिंदी प्रदीप , प्रजा सुधा , सरस्वती , इंदु , आनंद , कादंबिनी आदि में ठीक उसी प्रकार की कविताएं लिखी जो भारतेन्दु युग में पहले कवि वचनसुधा , ब्राम्हण और हिंदी प्रदीप में प्रकाशित होती थी । तब द्विवेदी युग के सभी कवि उन्हीं उन्हीं विषयों पर लिखकर अपनी शक्ति भर जन साधारण का काम कर रहे थे । पाण्डेय जी की ‘ मेवाड़ गाथा ‘ और बाद में उनका पुरातत्व प्रेम यदि उनके अतीत गौरव का परिचायक है तो पद्म पुष्पांजलि तत्कालीन समस्याओं से उत्प्रेरित रचनाओं का संग्रह जो राष्ट्र को एक विनम्र श्रद्धांजलि है ।

देश की परतंत्रता का असली कारण फूट , सामाजिक रुढ़ियों को बताते हुए पाण्डेय जी ने स्पष्ट रूप से भारतीयों को एक सूत्र में बंध जाने के लिए उत्प्रेरित किया । आगे पाण्डेय जी खूनी क्रांति का समर्थन करते हुए नजर आते हैं,-

जब तक तन में प्राण वायु हो वीर तुम्हारे
तब तक विमुख न कभी समर से होना प्यारे
मारो अथवा मरो अन्यथा पग न हटाओ
आज धर्म करि वीर हर्ष युत् सुरपुर जाओ

यह रचना पहले कमला में सं . 1964 माघ में प्रकाशित हुई थी , बाद में सन् 1915 में प्रकाशित पद्म पुष्पांजलि में संग्रहित हुए । राणा प्रताप और शिवाजी के समान ही उनके आदर्श चरित्र हैं शिक्षक और कर्मवीर गांधी जब गांधी भारत को अपने राजनीतिक जीवन में कार्यक्षेत्र बनाने का उपक्रम कर रहे थे तब उनकी रणनीति को पहचानते हुए पं . लोचन प्रसाद पाण्डेय तिलक के साथ कर्मवीर गांधी का स्तवन पद्म पुष्पांजलि में किया । पद्म पुष्पांजलि की भूमिका उस जमाने की देश भक्ति कवि राय देवीप्रसाद पूर्ण ने लिखी थी ।

जिस प्रकार मेवाड़ में अतीत गौरव के द्वारा भारतीयों के स्वाभिमान को बचाने का उपक्रम पाण्डेय जी ने किया है उसी प्रकार उन्होंने पद्म पुष्पांजलि द्वारा भारत की वर्तमान दीन अवस्था की ओर ध्यान केंद्रित करने का उपक्रम किया है । भारत भूमि की प्रथम तीन कविताएं भारत स्तुति , मेरी जन्म भूमि और जय हिन्दुस्तान जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामला भारत के स्तवन गान हैं । वर्तमान दशा की चर्चा करते हुए पाण्डेय जी का ध्यान दुखदारिद्र्य , धन – विद्या से हीन कृषकों की ओर गया ।

एक ओर साम्राज्यवादियों के शोषण से देश के उद्योग धंधे ठप्प हो रहे थे , लोग गरीब हो रहे थे तो दूसरी ओर महामारी के शिकार हो रहे थे , भाग्य को दोष देते , मौन भारतवासी दुःख के कारणों को न समझ पाते , इसे समझा भारतेन्दु और द्विवेदी युग के कवियों ने भारतेन्दु , स्पष्ट शब्दों में अंग्रेजी राज्य को दोषी ठहराते हैं , उनके अनुसार रोग और दुष्काल इन दोनों के मुख्य कारण अंग्रेज ही हैं , द्विवेदी जी आगे बढ़कर उसकी वैज्ञानिक चिन्तन से व्याख्या करते हैं- चाहे रैयतवारी हो , चाहे जमीदारी , हर हाल में जमीन पर इजारा तो अंग्रेज का था जहां यह नीति है , वहां की भी रियाया खुश नहीं है । सरकार अपना लगान लेने से नहीं चुकती , पर जमीन सुधारने के लिए प्रायः कुछ भी खर्च नहीं करती । जमीन को उपजाऊ बनाने या न बनाने के जिम्मेदारी काश्तकारों के हिस्से रहती है पर उनको यह डर लगा रहता है कि सरकार जब चाहेगी लगान बढ़ा देगी या जमीन से बेदखल कर देगी । जब पैदावार बहुत कम हो जाती है और लगान नहीं बेवाक होता तब कर्ज लेना पड़ता है । क्रम – क्रम से कर्ज की मात्रा बढ़ जाती है और एकदम घर – द्वार , बैल – बछिया नीलाम हो जाते हैं । खेती ही प्रधान व्यवसाय ठहरा । उसकी यह दशा होने से लोगों को भीख मांगने की नौबत है … यदि किसी साल पानी नहीं बरसा तो भयंकर दुर्भिक्ष पड़ता है और लाखों आदमी मृत्यु के मुंह चले जाते हैं । अन्यत्र शायद पाण्डेय जी ने भारतीयों के करुण क्रन्दन को इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है-

भूख – भूख कह बिलख बिलख बालक रोते हैं
जिसे न सकते देह प्राण धीरज खोते हैं

पं. लोचनप्रसाद पाण्डेय ने त्यागी जैसी शीर्षक रचनाएं लिखकर स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और संदेश दिया-

‘ यह भ्रष्ट विदेशी चीनी तुम त्यागो ।

‘ स्वदेशी पुकार शीर्षक उनकी एक कविता अभी भी अप्रकाशित उनके ज्येष्ठ पुत्र पं . प्यारेलाल पाण्डेय के पास पड़ी है जिसमें ज्यादातर क्रांतिकारी रचनाएं हैं । पद्म पुष्पांजलि की अत्यंत हृदयाद्रा युक्त कविता है । स्वतंत्रता के प्रति भारत माता भी उनकी अत्यंत प्रेरक करुणापूर्ण रचना है । राष्ट्र चेत्ता कवि प . लोचनप्रसाद पाण्डेय निराश नहीं थे वे एक आस्थावान कवि थे । सन् 1913 की प्रभा में उन्होंने भविष्यवाणी की थी वह 34 वर्षों बाद पूर्ण हुई-

देवों के हस्त द्वारा हम पर फिर भी
पुष्ट की दृष्टि होगी भाई है न देवी
भारत वसुमती सौख्य की वृष्टि होगी

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प्रस्तुति:-बसन्त राघव
नगर,मकान नं. 30
कृषि फार्म रोड,बोईरदादर, रायगढ़,
छत्तीसगढ़,basantsao52@gmail.com मो.नं.8319939396

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