लघुकथा : भयमुक्त शिक्षा
कक्षा आठवीं में हिंदी के अध्यापक ने “आरूणि की गुरुभक्ति” वाला पाठ पढ़ाया। अध्यापक के पूछने पर पूरी कक्षा ने पाठ बहुत अच्छी तरह समझ आने की बात कही। अध्यापक ने संतुष्ट होते हुए कहा – “पाठ के अंत में अभ्यास के अंतर्गत केवल पाँच प्रश्न हैं। सभी पूरे प्रश्न का उत्तर लिख कर लाएँगे। यह गृहकार्य है।” हाँ में ही जवाब आया।
दूसरे दिन किसी ने भी पूरे प्रश्नों का उत्तर लिख कर नहीं लाया। एक छात्र ने तो एक भी प्रश्न का उत्तर लिखकर नहीं लाया।अध्यापक ने छात्र से कारण जानना चाहा- “पाठ समझ नहीं आया क्या जी ?”
“समझ आया सर।” छात्र तपाक से बोला।
“फिर…?” अध्यापक ने पूछा।
“नहीं लिखा; और नहीं लाया, बस।” छात्र निर्भयतापूर्वक बोला।
अध्यापक ने अब कुछ भी कहना उचित नहीं समझा। उन्हें भयमुक्त शिक्षा का अभिप्राय समझ आ चुका था।
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टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”
घोटिया बालोद (छत्तीसगढ़)
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