November 25, 2024

*राजेन्द्र ओझा*

“आप पर बहुत ज्यादा कर्ज है। लेनदार आपको परेशान कर रहे हैं। आपकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि आप कर्ज चुका सके। पूरे परिवार की नींद हराम हो गई है। बस एक काम किजिए, मेरी बात याद रखिए- एक लोटा जल, सारी समस्या का हल। लोटे में जल भर लीजिए।”

उतने में महाराज जी ने देखा दूर एक हाथ उठा हुआ है। उन्होने स्वयंसेवकों से कहा – हां, देखो वो दूर बैठे एक भगत जी हाथ उठा रहे हैं। उन्हें माइक दीजिए। हां, बोलिये।
महाराज जी, प्रणाम।
जी, खुश रहो।
महाराज जी, लोटे में जल कितना भरना है।
महाराज जी के साथ पूरी भीड़ हंसी। भगत जी, अब पानी में भी कंजूसी करेंगे क्या आप ? महाराज जी ने कहा।
महाराज जी, अब बीस रूपये लीटर जो हो गया है, तो थोड़ा सोचना तो पड़ेगा ना।
सभा में हंसी फैल गई। महाराज जी समझ गए कि यह हंसी भगत जी के समर्थन में है। बोले – तो बेटा निगम के नल का ले लेना।
महाराज जी, वहां भी मीटर लगा दिया अधिकारियों ने। पइसा वहां भी लग जाता है।
सभा में हंसी छूटे उसके पहले ही महाराज जी ने कहा – कोई बात नहीं बेटा, सार्वजनिक नल से ले लेना।
अब क्या बताएं महाराज जी, सुबह इतनी सुबह नल आता है कि उठ नहीं पाते और शाम को इतनी जल्दी नल आता है कि तब तक घर नहीं लौट पाते।
बिना देर गंवाए महाराज जी ने कहा – घरवाली से कह देना।
संभव नहीं है ना महाराज जी।
अरे, क्यों भई ?
आप तो जानते ही है कि एक की कमाई से कहां घर चलता है इस महंगाई के जमाने में। वो भी —
अच्छा – अच्छा, ठीक है। बैठो भाई बैठो। आपकी इस जल समस्या का कुछ न कुछ तो हल निकालना पड़ेगा। तालाब – वालाब है पास में ?
हां, है ना महाराज जी, लेकिन —
बस, बस। अब यह मत कहना कि तालाब का पानी साफ नहीं है। पीने तो क्या छूने लायक भी नहीं है। छूना तो दूर इतना बदबूदार है कि तालाब के पास तक नहीं जा पाते। आप कैसे भी हो उस पानी को ही ले लीजिए। अब बैठ जा। महाराज जी का तेवर थोड़ा उग्र हो गया था।
स्वयंसेवकों ने उसे बिठा दिया। वह बैठा लेकिन फिर खड़ा हो गया। अब क्या है भई बोलो, केवल एक प्रश्न। महाराज जी, लोटा स्टील का चलेगा क्या ? एल्युमीनियम आदि का भी चलेगा —
अरे, तु इतना भी नहीं जानता कि पूजा आदि के काम में तांबे का ही लोटा चलता है। बडे बे—–। गुस्से का मीटर बहुत ऊंचाई पर पहुंच गया था, लेकिन महाराज जी ने खुद को सम्हाल लिया।
अच्छा महाराज जी एक आखिरी सवाल।
अरे माइक छिनो उससे और बाहर निकालो। हां तो भगतों मैं कह रहा था कि –
क्या गुप्ता जी, बड़े मगन होकर सुन रहे हैं। क्या चल रहा है। अब यह मत कहना कि ‘फोग चल रहा है।’
मैं दुकान में खड़ा था और उनका ध्यान केवल मोबाइल पर था। ऐसे मैं भी उस प्रवचन को आंखे बंद किए कान लगाकर सुन रहा था और लगभग रम गया था उसमें, मजा जो आ रहा था। देर होते देख बोला तो मेरी आवाज सुनकर नींद से अचानक जागने की स्थिति हो गई थी उनकी।
अरे नहीं नहीं आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं। वो टोने – टोटके वाले महाराज जी है ना उन्हीं को सुन रहे थे खाली बैठे बैठे। हां, कहिए क्या दूं।
दूं नही ये मोहन भइया ने दे दिया है। बावन रूपय्ये का दूध हुआ। दो रूपय्ये छूट्टे हम दे दिये हैं। बाकि पांच सौ में से पचास काटकर साढ़े चार सौ दे दीजिए। नहीं तो आपको भी कहीं एक लोटा जल, सारी समस्या का हल न करना पड़ जाए।
हम दोनों एक साथ हंस पड़े।
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राजेन्द्र ओझा, रायपुर, छत्तीसगढ़
9575467733
8770391717

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