न जाने कौन हो तुम…
कि एक शाँत समंदर सी लड़की,
चुलबुली चहकती चिड़िया सी लगी,
उसके धीमे कदमों की आहट भी,
बारिशों में थिरकते मोर सी लगी,
बात बात पर मुस्कुराती थी जो,
हर पल खुल कर हँसती सी लगी,
बहुत सारे अनचाहे शोर के बीच
तुम्हारी आवाज़ में खोई खोई सी लगी,
सुकून से तुम्हें अपने गले लगाकर,
बँधे हुए बालों को खोलने सी लगी,
अब तक ख़ुदको नज़रअंदाज किया,
लापरवाह सी थी संभलने लगी,
मन के एक कोने में उदास सी थी,
खुशियों की खिड़कियों को खोलने लगी,
तुमने उसकी ख्वाहिशों को जो छुआ,
ख़ूबसूरत ग़ुलाब सी महकने लगी,
तुम्हारे सीने से कसकर लगकर,
हर उलझन सुलझाने सी लगी,
तुम्हारे आस पास न होने पर,
तड़पती मछली सी बेचैन सी लगी,
आईने में जब देखा स्वयं को,
अपनी ही छवि आश्चर्य सी लगी…।
न जाने कौन हो तुम…
एक शाँत समंदर सी लड़की, चंचल सी लगी….
~ अभिलाषा ललित भारतीय