“GOLDEN VOICE OF INDIA”:
‘GOLDEN VOICE OF INDIA’ प्रताप शर्मा 71 वर्ष की आयु में 30 नवम्बर 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. ब्रीचकैंडी अस्पताल के पास ही उनका निवास और इंडो-स्टूडियो था,जहाँ रिकॉर्डिंग के दौरान अक्सर उनसे मुलाक़ात होती रहती थी.प्रताप विज्ञापन की दुनिया मे मुझसे क़ाफी सीनिअर थे. अंग्रेज़ी की वो सबसे व्यस्त आवाज़ों में से एक थे. इतने व्यस्त कि किसी क्लाइंट को हफ़्तों पहले उनसे रिकॉर्डिंग की डेट उन्ही की शर्तों पर लेनी पड़ती थी.बेहद हँसमुख, मिलनसार, मदद के लिए हमेशा तैयार वो ऐसे इंसान थे जिन से मिलते ही आपको प्यार हो जाये. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. इस GOLDEN VOICE OF INDIA ने ही विज्ञापन की दुनिया से ताल्लुक़ रखने वाली आवाज़ों को एक सम्मान जनक स्थान दिलवाया. वॉयसिंग की फील्ड के अलावा वो एक अभिनेता, नाटककार, टेलीविजन निर्देशक, बच्चों के लेखक और उपन्यासकार,वॉइस ट्रेनर क्या नहीं थे!!.यही नहीं वह एक कराटे-ब्लैक-बेल्ट-होल्डर, एक अच्छे शतरंज खिलाड़ी भी थे.
प्रताप शर्मा का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. वह डॉ बैजनाथ शर्मा और दयावती पंडित के सबसे बड़े पुत्र थे. प्रताप के पिता एक सिविल इंजीनियर थे,जिन्होंने सीलोन (अब श्रीलंका), तांगानिका और लीबिया में सरकारों के तकनीकी सलाहकार के रूप में कार्य किया और बाद में एक किसान के रूप में पंजाब में अपनी पैतृक संपत्ति में सेवानिवृत्त हुए. प्रताप शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैंडी, सीलोन और बिशप कॉटन स्कूल, शिमला और बॉम्बे (अब मुम्बई) के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हुई.
प्रताप को पहली बार यूके में उनके नाटक ‘ए टच ऑफ ब्राइटनेस’ (1965) को लंदन में वर्ल्ड थिएटर सीज़न के लिए चुना गया था, लेकिन भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था.तर्क दिया गया था कि बॉम्बे के वेश्यालयों पर आधरित ये नाटक में भारत को अच्छे संदर्भ में प्रस्तुत नहीं करता था. प्रताप ने इस प्रतिबंध को उलटने के लिए सात साल की लड़ाई लड़ी, जो अंततः सफल रही.
ब्रिटेन में प्रकाशित उनकी बच्चों की किताबें ‘द सुरंगिनी टेल्स’ (1974), ‘डॉग डिटेक्टिव रांझा’ (1978), ‘द लिटिल मास्टर ऑफ द एलीफेंट’ (1984) और ‘टॉप डॉग’ (1985) थीं.उनका उपन्यास, डेज़ ऑफ़ द टर्बन (1986), अस्सी के दशक में प्रताप के गृह राज्य, पंजाब में संघर्ष के बारे में था.उन्होंने चैनल 4 के लिए “द राज थ्रू इंडियन आइज़’ (1990) का शोध, निर्देशन और सह-निर्माण किया.
प्रताप के अभिनय करियर में मर्चेंट आइवरी फिल्म ‘शेक्सपियर वाला’ (1965) शामिल थी; और वह ‘द ज्वेल ऑफ़ इंडिया’ (1990) और बांडुंग सोनाटा (2002) दोनों में नेहरू के रूप में दिखाई दिए.कुछ हिन्दी फिल्मों में भी उन्होंने अभिनय किया. उनका विवाह सुसान अमांडा पिक से हुआ था और उनकी दो बेटियां हैं: नमृता और तारा शर्मा.
उनकी आवाज़ दशकों तक भारत में सबसे प्रसिद्ध अंग्रेजी बोलने वाली आवाज़ों में से एक थी, विज्ञापनों पर, साप्ताहिक सरकारी न्यूज़रील और सन-एट-लुमियर रिकॉर्डिंग में…दिल्ली में ‘लाल किले’ में ‘लाइट & शैडो शो’ में अभी भी उनकी लासानी आवाज़ गूंजती है.आवाज़ की दुनिया के सिरमौर प्रताप शर्मा को उनकी 11वीं बरसी पर मेरे जैसे आवाज़ के कई शैदाइयों का प्यार और सलाम.