नमन मां शारदे
दिल पे छाएगी ख़ुमारी देखना।
अपनी भी नग़मानिगारी देखना।
शर्तिया जाएगा ये गुल जान से।
हो गई कांटों से यारी देखना।
जो मिलेगा वो तुम्हें लौटाएंगे।
क्यों रखें कोई उधारी देखना।
हाथ में पांसा है तो फेंके जनाब।
खेल क्या है अबकी बारी देखना।
मुंतजिर है बस मुनासिब वक्त के।
तुम हमारी होशियारी देखना।
हाथ ख़ाली हैं मगर इस जंग में।
हम पड़ेंगे सब पे भारी देखना।
अपने तरकश में अदा के तीर हैं।
बेहद उम्दा हैं शिकारी देखना।
मुक्ता शर्मा मेरठ
मौलिक सृजन