ग़ज़ल
मैंने तुझे ज़मीं से फ़लक तक उठा दिया
तूने नज़र से भी मुझे अपनी गिरा दिया
बदनाम हो न जाए मुहब्बत की बेबसी
हर राज़ मैंने दिल की तहों में छुपा दिया
उफ़! फिर भी रोशनी न तिरी दिल से मिट सकी
यादों के तेरी सारे दियों को बुझा दिया
फिर एक शक्ल ज़ख़्म की सूरत हुई अयाँ
फिर तेरे कुछ ख़्यालों ने मुझको रुला दिया
मैं तुझसे मिलके हो गयी वाकिफ़ जहान से
जीने का तूने मुझको तरीक़ा सिखा दिया
संतोष श्रीवास्तव