क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारी दुआएं,आशीर्वाद और ममता..
सदा मेरे साथ हैं…
क्या तुम जानती हो मां….
तुम्हारी खुशियां,तुम्हारे गम और टीस
सदा मेरे साथ हैं…
क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारी इक्छाएं,सपने और इंतज़ार
सदा मेरे साथ हैं…
क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारा रोना,तुम्हारा गाना और हंस देना
सदा मेरे साथ है…
क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारा रिश्तों को जोड़े रखना,रिश्तों में भावनाओं को ढूंढना,संवेदनाओं को तलाशना और फिर टूट जाना
सदा मेरे साथ है…
क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारा साहस,विश्वास और दृढ़ता
तुम्हारी शक्ति,आराधना और अटलता
सदा मेरे साथ है…
मैं जानती हूं मां…
कभी तुम सबके साथ होकर भी बेहद अकेली थीं और
आज मैं सबके साथ होकर भी अकेली हूं
क्योंकि तुम मेरे पास नहीं हो मां
ये शायद तुम नहीं जानती मां…
अगर जानती तो…
इस तरह छोड़कर नहीं जाती मां…
कभी नहीं जाती…
क्या तुम जानती हो मां…
तुम्हारे जैसा मुझे कोई नहीं समझ सकता
इसीलिए मैने ख़ुद को समझाना शुरू कर दिया है मां..
आज सब कुछ है पर तुम नही हो मां…
इसलिए सब कुछ होकर भी
बहुत बड़ी कमी है मां..
सुन रही हो न मां…
वापस लौट आओ ना मां,
बस कुछ देर के लिए ही सही….
बहुत मन करता है,
तुम्हे सामने देखने का मां…
क्या तुम जानती हो मां…
कि तुम मुझे सुन रही हो
और देख भी रही हो…
बस सामने आती नहीं हो मां…
आज तो आ जाओ मां!!!
आओगी न मां!!!
डॉ.अनुराधा दुबे
08.12.2022