‘समय जो रुकता नहीं ‘ के लोकार्पण और परिचर्चा की रिपोर्ट –
मुंबई विश्वविद्यालय के प्रांगण में 18 दिसंबर 2022 को जे पी नाईक भवन, मुंबई विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका “शोधावरी” के सौजन्य से
कवयित्री एवं लेखिका रीता दास राम की कथा संग्रह “समय जो रुकता नही” का लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन हुआ।
आदरणीय कला समीक्षक, कवि प्रयाग शुक्ल जी एवं उनकी भतीजी सुजाता (कविताएँ लिखती हैं), अनभिज्ञ पत्रिका के संपादक व समीक्षक डॉ रतन कुमार पांडेय, प्रोफेसर डॉ बिनीता सहाय, रंगकर्मी विभा रानी जी, पत्रकार व कवि हरि मृदुल जी एवं कई अन्य साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाया।
कार्यक्रम की शुरूआत शोधावरी के प्रधान संपादक डॉ हूबनाथ पांडेय सर ने शोधावरी पात्रिका की गतिविधियों और कार्य क्षेत्र की चर्चा करते हुए की।
आदरणीय प्रयाग शुक्ल जी ने आशीर्वचन में “जीवन गाथा आगे निकल जाती है रचना उसका पीछा करती है।” बहुत महीन बात कही। कहानी के एक पैराग्राफ का पाठ कर शब्दों और वाक्यों में दृश्य का संयोजन की बात कही, जो उन्हें बेहद अच्छी लगी। कहानी में “यार” शब्द का व्यावहारिक प्रयोग पर अपने विचार और कहानियों की सरसता की बात कही।
डॉ रतन कुमार पांडेय सर ने कहा, “मेरी दृष्टि में कोई बड़ा ना छोटा नही होता है उसका कर्म बड़ा या छोटा होता है।
गुरु की पहचान शिष्यों के माध्यम से होती है।” आशीर्वाद स्वरूप कहा ‘चलते रहो बढते रहो।’
डॉ बिनीता सहाय मेम ने कहानियों में विवाह के प्रति झलकती नाराजगी और विरोध पर प्रश्न करते हुए और अपवाद का होना भी स्वीकारते हुए कहानियों की नायिकाओं को सशक्त बताया कि संघर्षशील है और आगे बढती है। ‘गे’ जैसे विषय पर भी कहानी है।
विभा रानी जी रीता में कार्य के प्रति लगन और उत्साही होने की बात कही और कहा कुछ नया करने के लिए हमेशा लगी रहती है. साथ में थियेटर भी किया, का जिक्र किया। कहानियों के संदर्भ में स्त्रियों पर अपनी बात रखते हुए विभा जी ने कहा, “महिलाएं सबके बीच पहुँचती है और अपने निचोड़ को ले कर आती है.”
हरि मृदुल जी ने कहानियों को बनावट से दूर बताया और कहा, पढ़ कर 3 से 4 घंटे में खत्म कर देने वाली कहानी संग्रह है। कहानियाँ पठनीय है। कमियों का संज्ञान लेते हुए आगे और अच्छी कहानियां लिखने की आशा जताई।
अंग्रेजी की प्रोफेसर डॉ भाग्यश्री जी ने यूरोपीय लेखकों के बारे में चर्चा करते हुए ” समय जो रुकता नही ” की कई कहानियों की चर्चा कर अपनी बात रखी।
हूबनाथ सर के कहने पर रीता दास राम ने संग्रह की एक कहानी का पाठ किया।
मंचासीन के अलावा कई अन्य ने अपनी बात रखी।
उनमें रंजना पोहनकर जी ने पेंटिंग में रूचि को पहचानते हुए पेंटिंग के लिए प्रेरित किया।
अवधेश राय जी ने बताया, रीता ने राष्ट्रीय स्तर पर कवयित्री की छाप छोड़ी है, उत्साही हैं और कहा, जिजीविषा है साहित्य के चिंतन मनन और उसे समृद्ध करने को लेकर. स्त्री-दर्पण में कुछ अलग करने का संज्ञान लिया। ‘समय जो रुकता नही’ के ऑनलाइन लोकार्पण होने की बात कही।
रोहित राजीव जी ने ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को पुनः पढने के लिए जोर दिया। परिंदे पत्रिका में छपी कहानी “उस बच्चे का बाप था मै…” का जिक्र किया।
अशोक जी ने दृश्य को किताब के रूप में रेखांकन करना उनका अतुलनीय कार्य है, कहा।
कार्यक्रम का सधा और सफल संचालन अंजू गुप्ता और आभार पुष्पा चौधरी ने व्यक्त किया।