राहुल सांकृत्यायन / यात्रा वृतांत – आगरा यात्रा (4) लाल किला : वर्तमान में अतीत
भारतीय और समकालीन विश्व के चौदहवीं शताब्दी और उसके बाद के लगभग 300 साल तब तक अधूरे हैं जब तक उनमें भारत और भारत के मुगल वंश की चर्चा न हो और इस चर्चा का मूक परन्तु जीवित साक्षी है आगरे का लाल किला ….. भ्रमित न हों…. आगरा का किला भी लाल किला ही कहा जाता है | दोनों ही किले ( दिल्ली व आगरा ) लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण लाल किला कहलाते हैं और यह मात्र संयोग ही है कि आगरा के लाल किले की तुलना में दिल्ली का लाल किला इतिहास में इस नाम से अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर गया, बावजूद इस तथ्य के कि मुगल उत्कर्ष का गवाह आगरा का लाल किला रहा है न कि दिल्ली का लाल किला, जिसे मुगल खुद ही किले के स्थान पर हवेली बुलाते थे | ……..तो फिर अब बात आगरा के लाल किले की, जो हमारी मित्र मण्डली की आगरा यात्रा का अगला दर्शनीय स्थल बना | पूरी तरह से आरामतलब हमारी मण्डली सुबह लगभग 11 बजे आगरा के लाल किले के लिए निकली |
इतिहास की नजरों से देखा जाए तो आगरा एक प्राचीन नगर है जिसका प्रथम उल्लेख का महाभारत में अग्रबाण या अग्रवन के नाम से हुआ है | कतिपय विद्वान् इसके संस्थापक के रूप में महाराज अग्रसेन को देखते हैं । टोलेमी वह प्रथम ज्ञात व्यक्ति है , जिसने इसे आगरा नाम से संबोधित किया था | पुराणों में इसे यह ब्रह्मर्षि प्रदेश या ब्रह्मावर्त भी कहा गया है | स्थानीय परम्पराओं के अनुसार ब्रजक्षेत्र के 12 वनों और 24 उपवनों में एक अग्रवन भी था जो आज आगरा है | इसका आरंभिक राजनीतिक इतिहास बहुत ही धुंधला है | अरावली का अंतिम छोर और सदानीरा यमुना की उपस्थिति के चलते प्रागैतिहासिक संस्कृतियां तो अवश्य रही होंगी जिनके कतिपय प्रमाण भी उपलब्ध हैं, परन्तु उतना संगठित स्थायित्वपूर्ण सामाजिक विकास के भौतिक चित्र प्रायः अनुपलब्ध हैं | संभवतः बेहद सघन वन क्षेत्र होने की कारण या फिर शायद इसलिए कि निकट स्थित धार्मिक नगरी मथुरा और ब्रज का सांस्कृतिक प्रदेय व महत्त्व अधिक होने के कारण अग्रवन पिछड़ गया बावजूद इस तथ्य के कि यह भी उनके समकालीन था और जैन धर्म का एक प्रमुख केंद्र भी था |
मध्यकाल में आगरा पहली बार महमूद गजनवी के आक्रमण के समय सामने आता है जब यहाँ जयपाल का शासन था | 11वीं शती के ख्वाजा मसूद विन साद विन सलमान ने अपनी पुस्तक में इस आक्रमण का उल्लेख किया है | इस समय उसने किले को लूटा था जो एक टीले के उपर बना था | यह मूलतः एक ईंटों का किला था, जो सिकरवार वंश के राजपूतों के पास था | बादल सिंह ने आगरा के किले की जगह पर बादलगढ़ का निर्माण कराया था | सिकंदर लोदी वह प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया और यहाँ मौजूद किले की मरम्मत करवाई और यहीं से शासन किया | उसकी मृत्यु भी इसी किले में 1517 ई में हुई थी | उसके पुत्र इब्राहिम लोदी ने गद्दी नौ वर्षों तक संभाली, जब तक कि वह पानीपत के प्रथम युद्ध में मारा नहीं गया |
अकबर ने इस स्थान की भौगोलिक स्थिति देखते हुए रणनीतिक रूप से अपनी राजधानी के रूप में आगरा को चुना और उसने इस किले को 1565 ई में बनवाना शुरू किया | गौर तलब है कि जहाँ एक ओर आगरा गुजरात के बंदरगाहों और गंगा के मैंदानों के मध्य की व्यापारिक कड़ी था , वहीँ दूसरी ओर वह राजपूताना , उत्तरी भारत, दक्कन, और पश्चिमी भारत के मध्य केन्द्रीय संपर्क बिंदु भी था |
लीजिये बातों बातों में हम लोग आ पहुंचे आगरा के किले के दाखिनी दरवाजे या अमरसिंह गेट पर | टिकट लिया, गाइड महोदय को साधा और चल पड़े अंदर को | गाइड साहब हम लोगों को एक एक करके नए नए अनसुने अनजाने किस्से सुनाते रहे और हम सुनते रहे लोग मंत्रमुग्ध से सुनते हुए किले में घूमते रहे…….. “ ये देखिये ! किले के बाहर 10 मीटर गहरी और 10 मीटर चौड़ी सुरक्षा खाई है जिसमें दरिन्दे पले हुए थे……..ये अमरसिंह गेट है जहाँ अमर सिंह की हत्या धोखे से की गयी थी | अमरसिंह एक राजपूत राजकुमार थे जिन्होंने भरे दरबार में अपने अपमान का बदला लेने के लिए बादशाह के साले की हत्या कर दी थी………आपको बताता चलूँ कि इस किले में 4 दरवाजे हैं…. दिल्ली दरवाज़ा जो सेना के कब्जे में है, खिजड़ी दरवाजा यमुना नदी की ओर खुलता है …. दक्खिनी दरवाज़ा जिससे हम लोग अंदर आये हैं और ये सामने देखिये हाथी पोल “ उन्होंने हाथ से दिखाया … हमारे सामने लाल प्रस्तर के दो पूर्णाकार हाथी अपने महावतों के साथ खड़े थे….. अद्भुत प्रस्तर कला का नमूना | यहाँ से आगे बढे ……“अकबर ने यह किला 1565 ई में बनवाना शुरू किया और लगभग डेढ़ लाख कारीगरों और मजदूरों ने 8 वर्षों में इसे पूरा किया | किला लगभग ढाई किलोमीटर में अर्धवृत्ताकार आकार में यमुना नदी के समानांतर बना हुआ है | ये दोहरी दीवारों का है जो 70 फिट ऊँची हैं …. जगह जगह सुरक्षा बुर्जियां बनी हैं | ज्यादातर किला सेना ने कब्जे में ले रक्खा है | सिर्फ एक चौथाई ही आप लोग देख पायेंगें |” उन्होंने बताया ……….
उनके साथ उनके ही अंदाज़ में आगे बढ़ते हुए हम लोग किले के अंदर जा रहे थे | ये देखिये ….. “ सामने जहाँगीरी महल जो अकबर ने अपने बेटे जहाँगीर के लिए बनवाया था …… ये देखिये मोती मस्जिद, ये देखिये मीना मस्जिद, ये देखिये शीश महल, ये देखिये मुसम्मन बुर्ज, ये देखिये दीवान ए आम…. यह बेहद खूबसूरत है | सफ़ेद संगमरमर की इमारत में पच्चीकारी और पित्र दुरा का काम देखा जा सकता है, ये देखिये दीवान ए ख़ास , ये देखिये गजनी के दरवाजे , ये देखिये नगीना मस्जिद, ये देखिये ख़ास महल, ये शाही बुर्ज है इस कसौटी पत्थर के चबूतरे पर शाहजहाँ अपने ख़ास लोगों के साथ बैठते थे | गदर में गोला गिरने से ये टूट गया है , ये देखिये मच्छी भवन, ये देखिये रंग महल, ये आपको बताता चलूं कि अबुल फजल ने अपनी किताब में यहाँ अकबर की बनाई 500 से अधिक इमारतों का ज़िक्र किया है | शाहजहाँ जब राजा बना तो उसने इनमें से कई इमारतों को तुडवा दिया और उनकी जगह संगमरमर की इमारतें बनवाई …….. ये देखिये यहाँ से मुगल वास्तुकला की खूबी दिखती है … यहाँ आभासी निर्माण से दृष्टि भ्रम पैदा किया गया है …… “ बात उनकी सही थी | इसी तरह ये देखिये, वो देखिये , ये ऐसा है , यहाँ ये हुआ, ये यहाँ हुआ था वगैरह, वगैरह, वगैरह…… सुनते सुनाते लगभग दो- ढाई घंटे तक अप्रैल की कड़ी धूप में वो हम लोगों को घुमाते रहे और हम लोग घूमते रहे जब तक कि थक कर एक जगह साए में बैठ नहीं गए |
बाकी सभी तो बैठे रहे, पर हमको चैन कहाँ ……पैरों में चक्कर ठहरा, या फिर इतिहास को वर्तमान में अधिक से अधिक जी लेने की इच्छा, जो भी कहिये …. निकल पड़े अकेले इधर उधर ताक झाँक करने, दुसरे पर्यटकों के साथ घूम रहे गाइडो को सुनते हुए उनके आगे पीछे अलग अलग भटकते हुए शरीर से भी और दिमाग से भी …. कानों में आवाजे गूँज रही थीं …..
ये देखिये ………..
यही वो किला है जहाँ हुमायूं का राज्याभिषेक हुआ था और जिसको जीतने पर मुगलों के हाथों बेशकीमती खजाना लगा था जिसमें कोह ए नूर भी शामिल था………ये वही जगह है जहाँ बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को अपनी वसीयत सुनाई थी और निर्देश दिया था कि
……याद रखना कि हम एक नए मुल्क में अजनबी भूमि पर हैं …. यहाँ के लोग हमसे हमारे रहन सहन से भिन्न हैं ….. दुश्मनी सिर्फ राजा से होती है …. प्रजा को कभी मत सताना ….. याद रखना कि प्रजा को, आम लोगों को कोई कष्ट न हो, उनको लूटा न जाए, उनके मजहबी विश्वासों और आस्था में कभी हस्तक्षेप मत करना ….. उनका शोषण कभी मत करना …..
यही वो दरबार है जिसमें बैठने वाले मध्यकाल के एक अशिक्षित शासक ने हिन्दू मुस्लिम एकता का अद्भुत प्रयोग करके देश को लम्बे समय बाद एक स्थायी शासन प्रदान किया था और समकालीन विश्व का सबसे भव्य और सम्पन्न साम्राज्य बना दिया था | यही वो अदालत है जहां सलीम को अकबर के सामने हथकड़ियों में जकड़ कर लाया गया था, उसी सलीम को जो अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर के नाम से गद्दी पर बैठा |
जी हाँ ! वही जहाँगीर जिसने इसी जगह से सिंहासन पर बैठते ही पहली घोषणा ज़ंजीर ए अदल ( न्याय की ज़ंजीर ) लगाने की की थी | 80 फीट लम्बी और 60 घंटियों वाली यह ठोस सोने की बनी ज़ंजीर शाह बुर्ज से लटकी हुई थी जिसका उल्लेख विलियम हाकिंस ने किया है | यह ज़ंजीर उसी ज़हांगीर ने लटकाई थी जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने इसी दरबार में कहा था कि “ मैंने एक प्याला शराब और आधी रोटी के एवज़ में अपना राज अपनी रानी को दे दिया है ..।” यह भी लोकश्रुति है कि इसी जंजीर के माध्यम से एक धोबिन की फरयाद पर ज़हांगीर ने खुद को मृत्यु दंड के लिए उसके सामने खड़ा कर दिया था जिसके पति की मृत्यु नूर ज़हां का तीर लगने से हो गयी थी …..
यही वो दीवान ए खास है जहां खड़े होकर विलियम हाकिंस ने भारत में फैक्ट्री खोलने की अनुमति मांगी थी | यह अलग बात है कि खुद उसको भी नहीं मालूम था कि वह ब्रिटिश और समकालीन विश्व के इतिहास के कितने महत्त्वपूर्ण पल का निर्माता बनने जा रहा है ….
ये वही जगह है जहाँ विलियम हाकिंस को ज़हांगीर ने “ इंग्लिस खान “ की उपाधि से नवाज़ा था सिर्फ इसलिए क्योंकि वह जहाँगीर के लिए बेहतरीन मदिरा उपहार में लाया था और जहाँगीर के अनुसार वह जहाँगीर से ज्यादा शराब पी सकता था जो बकौल खुद ज़हांगीर दिन में वह बीस प्याला तक पी जाता था | वही ज़हांगीर कहते हैं जिसके सामने जब शराब बंदी का आदेश निकालने का प्रस्ताव आया क्योंकि यह इस्लाम के खिलाफ है तो उसने हाथ के जाम से एक चुस्की लेते हुए आदेश दिया कि “ अगर लोग कर चुका कर खरीद कर पीते हैं तो कोई उज्र न होगा ” | और फिर धीरे से बुदबुदाया ”वरना हम जैसों का क्या होगा “…..
ये देखिये ये वही सोमनाथ के कथित गेट हैं जिनके बारे में अंग्रेजों ने दुष्प्रचार किया था कि ये सोमनाथ मंदिर के दरवाजे हैं जो महमूद गजनवी उखाड़ कर ले गया था | वास्तव में ये गजनी के किले के दरवाज़े के पल्ले हैं जो वहीँ की देवदार की लकड़ी के बने हुए हैं | इतिहासकारों का यह सोचना कि अंग्रेजों ने 1857 के बाद हिन्दू मुस्लिम विभाजन की राजनीति अपनाई, संभवतः एक भ्रम है क्योंकि यह काम तो 1842 ई में लार्ड एलेनबरो के द्वारा फैलाये इस सोमनाथ गेट काण्ड से ही साफ दिखता है कि, पहले ही शुरू हो गया था और यदि यह 1842 में धरातल पर उतारा गया तो निश्चित ही नाग के दांतों के बीज और भी पहले बोये गए होंगें।
ये वही दीवान ए आम है जहाँ विश्व के सबसे कीमती ढाई गज चौड़ा और पांच गज लम्बा सिंहासन “ तख़्त ए ताउस “ रखा रहता था जिस पर दुनिया के सबसे शक्तिशाली और भव्य साम्राज्यों में से एक पर शाहजहाँ ने शासन किया | हीरे, मोती, पन्ने, मानिक , नीलम, पुखराज, आदि रत्नों से भव्य्तापूर्वक अलंकृत वही तख़्त ए ताउस जिसके शीर्ष पर दुनिया का सबसे कीमती रत्न कोह ए नूर लगा था | कबूतर के अंडे के आकार के इस गुलाबी हीरे को पौराणिक स्म्यन्त्क मणि माना जाता है और इसी मान्यता के चलते डलहौजी को घबराहट हो रही थी कि रंजीत सिंह कहीं इसे जगन्नाथ पुरी के उन पुजारियों को न दे दें जो उनसे इसे श्री अगन्नाथ जी को भेंट करने के लिए अनुरोध कर रहे थे …….
यही वह जगह है जहाँ पर शाहजहाँ ने कांधार के हाथ से निकल जाने का समाचार पाया था | वह अंतिम बादशाह जिसके समय में भारत से कांधार और काबुल अंतिम बार अलग हो गए और फिर कभी नहीं जुड़े …..और यही वह जगह है जहाँ से मुग़ल कला के सबसे बेहतरीन, भव्य और खूबसूरत शाहकार ताजमहल के निर्माण का आदेश दिया गया था……|
और ये देखिये ! यही वो मुसम्मन बुर्ज है जहां दुनिया का सबसे समर्थ और शक्तिशाली बादशाह 8 वर्षों तक कैद रहा, और सिर्फ और सिर्फ अपनी बीबी की कब्र को निहारता हुआ मर गया । सुनते हैं कि महान मौर्य सम्राट अशोक को जीवन के अंतिम तीन वर्षों में मात्र आधा उबला आंवला ही प्रतिदिन भोजन के रूप में मिलता था …..लगभग उतने ही शक्तिशाली और बड़े साम्राज्य के इस मालिक को तो पानी तक नहीं मिल सका ।
यही वो मुसम्मन बुर्ज है जहां से शाहजहां ने औरंगजेब को उलाहना देते हुए उसकी भर्त्सना की थी और लिखा था कि –
“ तुझसे तो वो काफ़िर लाख गुना बेहतर हैं जो अपने मरे हुए बाप को पानी देते हैं । तूने तो अपने जिंदा बाप का पानी बन्द कर दिया है । “
…… और यही तो है वो जगह जहां रह कर एक कुंवारी बेटी जहां आरा अपने बूढ़े, टूटे हुए, थके और लाचार पिता की सेवा करती हुई जिंदगी बिता देती है …… ये देखिये …. ये ख़ास महल है जहाँ शाहजहाँ अपने ख़ास मंत्रियों के साथ मंत्रणा करता था और पत्राचार का उत्तर देता था | इसी जगह पर बैठ कर उसने औरंगजेब के विरुद्ध दारा को युद्ध करने के लिए आदेश दिया था | ये देखिये …….. …………
ये देखिये यही वो दीवान ए ख़ास है जहाँ शिवाजी को पीछे के मनसबदारों में खड़ा करके औरंगजेब ने अपमानित करने का प्रयास किया था और वो दरबार से चले गये थे …….. यही वह जगह है जहाँ से औरंगजेब ने आपसे परदादा की सहिष्णुता की प्रशासनिक नीति को पूरी तरह उलट कर मुगल साम्राज्य की जड़ों को खोखला करने का वह काम पूरा किया था जिसका आरम्भ उसके पिता के समय हुआ था………………..ये देखिये ये ………
……ओये …………… चलो …… चलना नहीं है क्या ……आज यहीं रहोगे क्या तुम …….. तंद्रा भंग हुई मेरी | मेरे मित्र ने मुझे आवाज़ दी और मैं अपनी अतीत की दुनिया से बाहर वर्तमान में आ गया…. जहांगीरी महल के सामने रक्खे हौज़ ए ज़हांगीर के सामने चारबाग पद्वति के बाग़ में खड़ा हुआ मैं ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल काल्विन की कब्र देख रहा था जो 1857 ई में यहाँ मार दिया गया था और उसकी कब्र यहीं दीवान ए आम के सामने बनी हुई है |
मैं मित्रों की और बढ़ गया….. वापस अपने वर्तमान में …… आगरा के किले को छोड़ कर बाहर आते हुए घूम कर एक बार फिर जी भर कर उस इमारत को देखा, जिसका जिक्र समकालीन विश्व इतिहास में सर आर्थर कॉनन डायल, प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यास लेखक के शरलौक होम्स के रहस्यपूर्ण उपन्यास “द साइन ऑफ फोर “ तक में मिलता है और जो बताता है कि तत्कालीन विश्व में यह शहर और यह किला कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था…….
और अगले स्थान की ओर दोस्तों के साथ चल पड़ा………अगले दर्शनीय स्थल की ओर जाने के लिए जो था सिकंदरा में मौजूद अकबर का मकबरा …एक ऐसा कब्रिस्तान जो आज भी दफनाए जाने के लिए लाशों की बाट जोह रहा है । जिसकी कहानी अगले और अंतिम भाग में ………….
© राहुल सांकृत्यायन
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