रजोनिवृत्ति
ऐसे ही किसी ऊँघते हुए दिन में
आह्वान और विसर्जन
की तय सीमा को लाँघकर
झिँझोड़ने लगती है
हठिली यह गात
मध्यांग अवश से प्रतीत होने लगते हैं
उदर की पीड़ा
आहिस्ते से ज्वर में
तब्दील हो जाती है
जीभ क्षारीय हो उठती है
और आँखें जलने लगतीं हैं
मन खिन्नता के सात परतों में
डूबता उतरता हुआ
एकांतिक आमादा हुआ जाता है
कोई औषध काम नहीं आती
मेघ भी शीतलता नहीं बरसाते
अर्धरात्रि देह की ऐंठन में वृद्धि होती है
यकायक रुधिर का बहाव
द्रुत गति से बढ़ने लगता है
ऐसे में झुनझुनी और कदमों की सूजन
स्वस्थ चाल में
अवरोध उत्पन्न करते हैं
नब्ज़ देख वैद्य बताते हैं कि –
स्त्री के जीवन में लोहे और खनिजतत्व की
कमी पसरने लगी है
यानि स्त्री पुनः
शारीरिक झंझावातों की गिरफ़्त में
दुर्बल होने लगी है
न जाने कितने ही ऋतुओं की
पीड़ा को सहकर उसका यह शरीर
भीगता और सूखता रहा जीवनपर्यंत,
न जाने कितनी ही बार उसने
दम साधकर पूरे किये हैं
चौका बर्तन बच्चों के गृहकार्य
और दफ़्तरों की फ़ाइल्स
फिर आज विदा का कोई क्षण
यूं काहिल नहीं बना सकता अचानक उसे
आयु के इस नवीन पथ पर
अपनी ही धरा को रक्तिम होते देख
थम जाने को एक पल की मोहलत भी
उसे शायद! नहीं देगा यह संसार
अपने अदम्य साहस की ऊर्जा को
संग लिए अखिल व्योम में
उकेरने ही होंगे उसे
आशाओं के इंद्रधनुष
अस्थि मज्जाओं में
खिलाने होंगे अपनी
जीवटता के स्वर्णिम पुष्प
रजस्वला हो तुम
या की
गुज़र रही हो रजोनिवृत्ति के प्रचंड वेग से
हे स्त्री स्मरण रहे
तुम्हारा रुकना या थकना
संसार को कदापि स्वीकार्य नहीं
अनु