रात, कुत्ते रो रहे थे
रात, कुत्ते रो रहे थे,
पता नहीं
अशगुन होने वाला था हमारे लिए
या वे हमारे किए
अशगुन पर रो रहे थे।
कुछ घोड़े ठिठके खड़े थे,
रात वे थक चुके थे,
कुत्ते, घोड़ों की थकान महसूस कर रो रहे थे।
बिल्लियां गुस्से से देख रही थीं,
वे हमेशा से गुस्से से देख रही थीं।
कुत्ते बिल्लियों के गुस्से से दुखी होकर रो रहे थे।
रात नींद नहीं आ रही थी मुझे,
मैं कविता में एक औरत के
अधूरे प्रेम की बात लिख रही थी,
और लिख रही थी
उसके खोए सपने के बारे में,
कुत्ते उस औरत के
अधूरे प्रेम और खोए सपने पर रो रहे थे।
वे रोकर मेरे पड़ोसी की नींद खराब कर रहे थे,
पड़ोसी आधी रात में उठकर कुत्तों पर पत्थर बरसाने लगा,
वह अपने ऊपर हुए दिनभर के अत्याचार का बदला कुत्तों पर चुकाने लगा
अब कुत्ते पड़ोसी पर हुए अत्याचार पर रो रहे थे
वे रात भर रोते रहे सभी के लिए,
जब स्वयं के लिए रोने का समय आया तो,
सुबह होने को थी,
कुत्ते रो-रो कर थक चुके थे,
वे अब और रो नहीं सकते थे।
नेहल